खबर लहरिया Blog पैतृक समाज में आज़ाद महिला का जीवन कैसा होता है?

पैतृक समाज में आज़ाद महिला का जीवन कैसा होता है?

पैतृकता विकासशील देश में भी महिलाओं को जकड़ी हुई है। विकास के हर क्षेत्र में महिलाओं को पैतृकता का सामना करना पड़ता है।

How is the life of a free will woman in a paternalistic society

                                                                                              (Graphics by Jyotsana for Khabar Lahariya)

एक पैतृक समाज में एक आज़ाद महिला की तरह जीना कैसा होता है? यह बस ख्याल है क्योंकि इसे कभी आज़ादी से जीया ही नहीं गया। जिन महिलाओं ने हिमाकत की, उन्हें या तो बिगड़ी हुई कह दिया गया या तो ये की, ‘अरे! ये लड़की तो बड़ी असंस्कारी है। माँ-बाप ने कुछ नहीं सिखाया।’

अब वह जब इन सब बातों से लड़कर एक कदम और अपने जीवन को व्यवस्थित करने और कार्यक्षेत्रों में रखती है तो वहां भी उसे पितृसत्ता के पहलुओं से लड़ना पड़ता है। विकासशील देश में कहा गया, लड़कियां आज़ाद हैं। वह पीछे नहीं आगे हैं पर यह पितृसत्ता वाला समाज उनका पीछा ही नहीं छोड़ता। वह जहां जाती हैं, ये उन्हें दबोचने की कोशिश करता है।

स्कूल में दाखिला कराना हो तो पिता का नाम ज़रूरी। कार्यक्षेत्र में नौकरी के लिए अप्लाई करो तो ऑप्शन और बढ़ जाते हैं, पिता व पति। आप शादीशुदा हैं या आप सिंगल हैं, सिंगल माँ हैं या शादी हो चुकी है, या अभी होना बाकी है। आपका डाइवोर्स (तलाक) हुआ है? इत्यादि, इत्यादि…..

आह! हर जगह पुरुषों की सत्ता, कहीं भी पीछा ही नहीं छोड़ रही। अगर कार्य करने की क्षमता है तो नौकरी के फॉर्म में पिता, पति के नाम की भला ऐसी भी क्या ज़रुरत है?

वह पुरुषों से जुड़े अपने सारे रिश्तों की इज़्ज़त करती है, चाहें वह भाई का रिश्ता हो, पिता, पति, भतीजा, चाचा, दोस्त इत्यादि। लेकिन इज़्ज़त व सम्मान का मतलब कतई ये नहीं होता कि इन रिश्तों का महिलाओं के जीवन पर अधिकार है। उसके जीवन के हर पड़ाव में इन नामों के दाखिले की क्या ज़रुरत है, क्या मतलब है? अब इसे पैतृकता की जकड़न न कहें तो क्या कहा जाए?

महिलायें घर में पिता की मंज़ूरी, उनकी ख़ुशी जिसमें न हो वह कार्य नहीं कर सकती। क्यों? क्योंकि पिता की इच्छा के विरोध जाकर काम करना पिता का निरादर करना है।

अब पिता के घर से निकल महिला अपने पति के घर जाती है। अब यहां उसे अपने पति और ससुर की तो सुननी है। अगर बात नहीं सुनी तो वह बुरी बहु, बुरी पत्नी है। माँ-बाप की परवरिश गलत है, क्यों?

फिर आखिर महिलाएं अपनी इच्छा से अपना जीवन कब, कैसे जीएं? क्या कोई टाइम टेबल बनाये? घर भी पिता का, शादी के बाद पति का फिर महिला का अपना घर कौन-सा? लोग कहते, ये उसके पिता का घर है, ये उसके पति का घर है तो उसका आखिर कोई घर है भी या नहीं?

पैतृकता ने उसे किसी भी चीज़ को अपना कहने ही नहीं दिया।

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जब महिलाएं स्वनिर्भर होती हैं तो समाज…..

                                                                                                credit – pinterest

आज महिलायें लंबी लड़ाई के बाद इस समाज में खुलकर जीने की कोशिश कर रहीं हैं। अपनी आय से अपना जीवन अपनी मर्ज़ी से जीतीं हैं। अपने खुद के घर में रहती हैं। अपनी चाहतों को पूरा करने में विश्वास रखती हैं। इस महिला को ये पैतृक समाज क्या कहता है?

अरे! देखो घर से दूर अकेली रहती है। देर-देर रात को घर आती है। पता नहीं घर से दूर रहकर क्या-क्या करती होगी? लड़की है दूर भेज दिया तो हाथ से निकल जायेगी।

महिलायें क्या किसी की जागीर है, जिसके दस्तावेज़ इस समाज के पास है और वह उनके खिलाफ़ जाकर तो कुछ कर ही नहीं सकती। अगर कुछ किया तो वह गुनहगार है। क्यों? यही समाज कहना चाहता है न? या वो कोई चीज़ है जो हाथों से फिसली जा रही है?

अपरिचित Matriarchy

                                                       credit – Image: iStock / Getty Images Plus

समाज में patriarchy यानि पितृसत्ता शब्द का इतना बोलबाला है कि यह खुद में ही पुरुषों के स्वामित्व को दर्शाने के लिए काफ़ी है। काफ़ी है ये दिखाने के लिए कि पुरुषों के हाथों से अभी भी सत्ता कहीं गयी नहीं है।

Patriarchy है तो इसके साथ-साथ मातृतंत्र यानी matriarchy भी तो होनी ही चाहिए न। पर पितृसत्ता की तरह matriarchy शब्द को उतना नहीं जाना जाता या जानने की कोशिश की जाती या इसके बारे में हर कोई नहीं जानता। मतलब साफ़ है कि महिलाओं की सत्ता को समाज ने अभी भी स्वीकारा नहीं है या समाज ने इससे अंजान बनने की ज़िद्द कर ली है।

जो चीज़ें समाज में ट्रेंड करती हैं यानि प्रचलित होती हैं, वह लोगों की भाषाओं और उनके विचारों में आ जाती है और कल्चर का हिस्सा बन जाती हैं। Matriarchy अभी भी कल्चर से काफ़ी दूर नज़र आती है। शायद कहीं हाशिये पर खड़ी है, शायद!

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महिलाओं को नेतृत्व का नाम देने वाली पैतृकता

                                                                                                                   credit – Dreamstime

महिलाओं को नेतृत्व देने वाली राजनीतिक सत्ता में बैठे पुरुष उन्हें समानता देने की बात करते हैं। हाल ही में, राष्ट्रपति पद के लिए एक दलित महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति उम्मीदवार हेतु चयनित किया गया। जिंदल कंपनी की सुमित्रा जिंदल का नाम भारत की सबसे अमीर महिलाओं के रूप में सामने आया जो matriarchy को दर्शाती है पर इन्हें या इस नाम को कितने ही जानते हैं? जो पैतृकता को खत्म करने का दम रखती हैं?

कोई इनकी सफलता को matriarchy में नहीं गिनता। महिला का खुलकर जीना, आगे आकर नाम बनाना सामान्य काम नहीं है क्योंकि महिलाओं के लिए सामान्य कार्य पैतृक समाज के अनुसार चलना माना गया है।

महिलाओं की आज़ादी प्रचारित करती पैतृकता

                                                                                                                   credit – Freepik

महिलाओं के आज़ाद जीवन को लेकर प्रचार किये जाते हैं। “बेखौफ़ आज़ाद है जीना मुझे”, गानें की ये लाइनें दोहराती हुई महिला खुद से बार-बार बिना किसी डर के जीने के लिए कह रही है। देश-समाज कहता है कि वह उसकी सुरक्षा कर रहा है फिर उन्हें आखिर डर क्यों लग रहा है? कहीं ये पैतृक समाज द्वारा देने वाली सुरक्षा ही तो उनका डर नहीं? यही नाम की दोगली सुरक्षा, महिलाओं को कहीं न कहीं बांधे हुई हैं।

महिलाओं का पूरा जीवन पैतृक समाज के अनुसार, उनके इर्द-गिर्द बीत जाता है। सिर्फ पागल, बिगड़ी और बुरी औरतें ही पैतृकता की जकड़न से निकलकर जी पातीं हैं।

इन नामों से महिलाओं को कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्यूंकि कहीं न कहीं इस पैतृक समाज के खिलाफ़ ये शब्द चुनौती देने वाला काम करते हैं। महिलाएं अपना पूरा जीवन सिर्फ संघर्ष करती हैं……जीने के लिए। आखिर में फिर वही सवाल, एक पैतृक समाज में आज़ाद महिला की तरह जीना कैसा होता है।

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