महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं हेतु कानूनी तौर नियम हैं भी और नहीं भी, जैसे आईपीसी की धारा 375, जहां शादी के बाद ज़बरदस्ती किये गए रेप को मैरिटल रेप ही नहीं कहा जा रहा। वहीं यह मामले जो ग्रामीण क्षेत्रों से निकल कर आते हैं, वहां महिलायें इस तरह से रिपोर्ट ही नहीं लिखवा पाती क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती। उन्हें उनकी सत्ता व अधिकार के बारे में मालूम ही नहीं होता। मामला मूलतः हिंसा या मारपीट तक सिमट कर रह जाता है या वहां तक भी नहीं पहुँचता क्योंकि महिला के पास न तो उस तरह की सहायता है और न ही जानकारी। यहां समाज की सत्ता इस तरह से काम करती है। रेप के मामले भी ऐसे ही दब जाते हैं। परिवार की आर्थिक रूप से कमज़ोरी और समाज में आरोपियों को मिली आर्थिक व सामाजिक पहचान उन्हें उससे बचा लेती है।
“एक महिला का शरीर लोगों के लिए क्या है?”,“एक बच्ची का शरीर लोगों के लिए क्या है?”, “एक नाबालिग लड़की का शरीर लोगों के लिए क्या है?” इतनी क्रूरता? अमानवीयता? असंवेदनशीलता? क्यों? क्या समाज या समाज को सुधारने की बात करने वाली राजनैतिक सत्ताएं या उस सत्ता के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले लोग इसका जवाब देंगे?
ये कौन-सी दुनिया में जी रहें हम, जहां एक महिला के शरीर को हिंसा, सत्ता के आधिपत्य या भोग के अलावा देखा ही नहीं जाता। महिला आवाज़ उठा दे तो समाज की सत्ता घबरा जाती है फिर वह उसे अपनी दकियानूसी इज्जत में बांध धीरे-धीरे मारती है या खुदखुशी का नाम लगा उसकी हत्या कर देती है। समाज में जन्मी और पली-बड़ी ये सत्ता जो पितृसत्ता तो कभी पौरुषत्व के नाम पर अपना दम दिखाती है और फिर उस पर ऐंठती भी है। इस सामाजिक सत्ता की दुनिया में कहां है कानून का राग अलापने वाले कर्ता-धर्ता? हिंसा को खत्म करने की बड़ी बातें करने वाले लोग? इस देश में क्या महिलाओं के सौभाग्य में बस प्रताड़ना, हिंसा व मौत लिखी गई है?
हर दिन महिलाओं के साथ हिंसा,क्रूरता, बलात्कार की खबरें। यूपी के हमीरपुर में अभी जनवरी 2024 से मार्च में तीन जघन्य हिंसा के अपराध सामने आए। ऐसे मामले की कहीं भी अपराधी को हत्यारा ही नहीं कहीं जा रहा क्योंकि वह अपना पौरुषत्व दिखा रहा था। अपनी सत्ता दिखा रहा था। वहीं कोई व्यक्ति किसी का साथ न मिल पाने से, हिंसा के खिलाफ लड़ते-लड़ते खुद प्रताड़ित हो जाने से खत्म हो गया, क्योंकि समाज ने कभी उसे उसकी सत्ता का इस्तेमाल ही नहीं करने दिया।
वो सत्ता जो किसी को उसके मौलिक अधिकार, गलत के खिलाफ आवाज़ उठाकर बिना भय लड़ने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, इत्यादि प्रदान करती है। इसकी एक वजह यह भी है कि उन्हें हमेशा इस सत्ता से दूर रखा गया है। उन्हें यह बताया ही नहीं गया कि ये सब वे अपनी ताकत के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। ये सब उनकी सत्ता है।
एक असहाय पिता,पहुँच से दूर एक गांव के एक घर में हिंसा से प्रताड़ित पत्नी जिसने आवाज़ तो उठाई लेकिन उसे सुना नहीं गया। एक नवविवाहिता जिसे नए बंधन के नाम पर मार दिया गया, हत्या कर दी गई। यहां कोई भी अपनी सत्ता, आवाज़ या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाया। वहीं जिसके पास सत्ता है, जो आवाज़ उठा सकते हैं, कहां हैं वह इंसाफ देने वाले कानून और लोग, इसकी दलीलें देने वाले लोग, समाज के ठेकेदार, जनता के नेता जो देश को बदलने चले हैं? जो अपनी सत्ता और ताकत का इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटते, कहां हैं ये लोग?
ग्रामीण इलाकों में सत्ता और अधिकार अलग-अलग तरह से काम करती हैं पर कभी उन्हें सत्ता या ताकत के रूप में व्यापक तौर पर नहीं देखा जाता। वह बस सामाजिक विचारधारा के अंदर आकर खत्म हो जाती है। वहीं समाज की विचारधारा ही लोगों/ विशेष लोगों को उनकी सत्ता का इस्तेमाल करने का अधिकार देती है व देती आई है। वह सत्ता जो अलग-अलग मामलों,परिवेश,स्थान व समय के अनुसार बदलती रहती है।
खबर लहरिया ने हमीरपुर जिले में हुए इन तीनों मामलों पर गहराई से रिपोर्टिंग की जिसके बारे में ऊपर बताया गया है। यह देखने का प्रयास किया कि कहां पर क्या चीज़ें हावी रहीं, कहां-किसके पास ज़्यादा सत्ता व ताकत दिखाई दी व इसका इस्तेमाल कैसे किया गया।
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नाबालिगों के साथ बलात्कार के बाद पिता की हत्या
पहला मामला, 28 फरवरी 2024 हमीरपुर जिले के सिसोलर थाने का है। हमारी रिपोर्ट के अनुसार, सिसोलर थाने के अंतर्गत एक गाँव में दो चचेरी बहनों के साथ बलात्कार किया गया। समाज में इज्जत के भय से दोनों ने फांसी को गले लगा लिया या ये कहूं कि समाज ने उनकी हत्या कर दी। समाज की झूठी इज्जत व सत्ता की ताकत ने दो नाबालिगों की जान ले ली। उनका यौवन, उनकी ज़िन्दगी जीने से पहले ही छीन ली। इससे पहले कि वो अपने लिए इंसाफ की मांग कर पातें। अपनी सत्ता का इस्तेमाल कर आवाज़ उठा पातें, आवाज़ ही मिटा दी गई।
मामले में परिवार ने तीन आरोपियों राम निषाद जोकि पेशे से ईंट-भट्ठे में ठेकेदार है, उसके बेटे व भतीजे राजू व संदीप के खिलाफ थाने में मुकदमा लिखवाया। रिपोर्ट्स में राम निषाद की उम्र 48, राजू व संदीप की 18 व 19 साल बताई गई। अपराध के बाद भी आरोपियों के पास इतनी हिम्मत रही कि उनके घर की महिलाएं आकर नाबालिग के पिता पर झूठा आरोप लगाने के नाम पर धमकाने लगी। उनसे धमकाते हुए कहा कि वे केस वापिस ले लें।
मृत नाबालिगों में से एक के पिता ने डर और धमकी की वजह से 6 मार्च 2024 को जंगल में जाकर फांसी लगा ली। उनकी भी हत्या कर दी गई। आरोपियों के पास इनके पेशे व आर्थिक ताकत की सत्ता देखी गई कि गलत होने के बाद भी वह धमकाने पहुंच गए।
मामले में, सभी आरोपियों सहित राम निषाद की पत्नी (43) व बेटी (18) को पुलिस द्वारा शुक्रवार 8 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों महिलाओं पर आपराधिक धमकी व आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर मामला दर्ज़ किया गया।
मृतक के बेटे व नाबालिग के भाई ने खबर लहरिया को बताया,”आरोपियों ने हमारी बहनों के साथ बदतमीज़ी की। दारू पिलाया, छेड़छाड़ की। समाज के डर की वजह से दोनों ने सुसाइड कर लिया”।
मृतिका की माँ ने बताया, दोनों नाबालिग लड़कियां उनसे यह कहकर निकलीं कि वे शौच के लिए जा रही हैं। जब उन्हें ढूंढ़ा जाने लगा तो वह उन्हें देखने खेत की तरफ गए। वहां वे उन्हें पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दीं। “एक साथ, एक दुपट्टे में। ये नहीं पता चला कि आत्महत्या की है या टांग कर गए हैं”।
बताया, एक लड़की और थी जिसे नशा दिया गया था लेकिन वह उसे फेंककर भाग गई थी। उसी ने पूरी घटना के बारे में उन्हें बताया।
अगर नाबालिग लड़कियों का परिवार आर्थिक रूप से व सामाजिक तौर पर मज़बूत होता तो शायद यहां उनके पिता द्वारा आत्महत्या का कदम नहीं उठाया जाता। ग्रामीण क्षेत्रों में यह सत्ताएं इतनी जकड़ी हुई हैं कि जिसे इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वही सबसे ज़्यादा ग्रसित हैं। उन्हीं के साथ हिंसा होती है और उन्हें ही इसके बारे में पता नहीं होता। वहीं अन्य या आरोपी इस सत्ता का इस्तेमाल करते हुए नज़र आते हैं। खबर लहरिया द्वारा की गई इन मामलों से जुड़ी रिपोर्टिंग में यह देखा भी गया है कि किस तरह से समाज में ताकतवर व्यक्ति द्वारा आर्थिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति पर दबाव बनाया जाता है कि वह पीछे हट जाए। अपनी सत्ता न दिखाये।
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मौत नहीं ‘हत्या’, सेक्स नहीं ‘मैरिटल रेप’
दूसरा मामला, 10 फरवरी 2024 यूपी के हमीरपुर जिले का है। शादी की पहली रात पर कथित पति अपने पुरुष होने की सत्ता का इस्तेमाल करते हुए सुहागरात के नाम पर मर्दानगी बढ़ाने वाली गोली खाता है। क्रूरता व अमानवीयता के साथ अपनी पत्नी के साथ हिंसक तरह से संभोग करता है, क्योंकि यह उसकी सत्ता के अधीन है जो समाज ने दी है, जिसका एक कारण उसका ‘लिंग’ भी है।
पत्नी ने इस दौरान अपनी सत्ता का इस्तेमाल करते हुए कई बार “मना” भी किया लेकिन कथित पति और हिंसात्मक होता रहा। उसे शारीरिक व मानसिक तौर पर वह चोटें दी जिससे उसकी जान पर खतरा हो सकता था, अतः वही हुआ। महिला को इसके बाद अस्पताल में भर्ती तक होना पड़ा और अंत में कथित पति की इस क्रूरता ने महिला की जान ले ली। उसकी हत्या कर दी। वह अपने शरीर के दर्द से तो मुक्त हो गई पर दर्द देने वाले को उसकी सज़ा मिलना अब भी बाकी है।
यहां सवाल महिलाओं की सत्ता को लेकर भी है कि क्यों उनकी सत्ता व ताकत को समाज नज़रअंदाज़ करता है, अपनी सत्ता को थोपता है? वह समाज या समाज के लोग जो बदलाव की बात करते हैं, वह ही हमेशा से महिलाओं से उनकी सत्ता व उससे जुड़ी ताकत को छीनते हुए हैं। इसमें वह लोग भी शामिल हैं जो अपनी सत्ताओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस मामले में मीडिया की हेडलाइंस में, ‘सेक्सवर्धक गोलियां’ व ‘पत्नी की हुई मौत’ जैसे शब्द थे और जो गायब था, वह था “हत्या व मैरिटल रेप”।
महिला अगर सेक्स के दौरान “ना” कहती है तो उसका मतलब रुकना ही है। मना, करना उसकी सत्ता है। अगर न, सुनने के बाद भी महिला के साथ संबंध बनाया रहा है तो इसका मतलब है कि कथित पति यहां अपनी थोपी हुई सत्ता का इस्तेमाल कर रहा है। यहां मामला ‘रेप’ का नहीं “मैरिटल रेप” का है, सिर्फ सेक्सवर्धक दवाओं का नहीं। यह मामला “मौत” का नहीं बल्कि “हत्या” का है।
खबर लहरिया ने इस बारे में मृतिका की भाभी सरिता से बात की। उनके माता-पिता नहीं थे। भाई-भाभी ने मिलकर ही 3 फरवरी को उनकी शादी करवाई थी। शादी के एक हफ्ते बाद ही महिला की जान ले ली गई। हिंसा के बारे में बात करते हुए उन्हें शब्द नहीं मिल रहे थे। आंखो में आंसू, चहरे पर गुस्सा, हताशा व असहाय होना साफ़ दिख रहा था। कहतीं, “वो बात भी कम कर पा रही थी। घर आ गई थी, जब कुछ ठीक हुई थी तब मैनें उससे बात की थी। उसने बताया,
“भाभी मैनें उसे बहुत मना किया पर मानें नहीं”।
आगे बताया, “उसकी हालत ऐसी थी कि जैसे तीन-चार लोगों ने उसके साथ ऐसा किया है। उसका शरीर पूरा फटा हुआ था। अंदर से खून बह रहा था, इंफेक्शन फैल गया था। 7 फरवरी की रात को कानपुर में, विमल नर्सिंग होम में उसे भर्ती कराया, फिर उरई ले गए। 10 फरवरी को उसकी मौत हो गई। हम जब कानपुर अस्पताल गए और डॉक्टरों ने उसे देखा तो उन्होंने उसे मृत घोषित कर दिया।” यह भी बताया, “7 फरवरी को हम शादी में जा रहे थे तभी उसकी जेठानी का फोन आया। कहा, “जो होना था वो हो गया। आपने कौन-सी बीमारी छिपाकर शादी करवाई है।”
उन्होंने ससुराल वालों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन सबके नंबर बंद आ रहे थे। उनके आस-पड़ोस में जान-पहचान के लोग हैं। उन्होंने उन्हें मृतिका के घर भेजा तो पता लगा कि वहां कोई नहीं है। घर के सभी लोग फरार थे। भावुक और भारी आवाज़ के साथ उन्होंने सरकार और जनता से अपील की कि “एक महिला को न्याय मिले”।
मेरा सवाल है आखिर कब तक? कब तक न्याय मांगते रहना पड़ेगा? जब कानून है, नियम है, वादें हैं….इतना सब होने के बाद भी न्याय के लिए इतनी देरी व भटकन क्यों है? समाज द्वारा दी गई सत्ताओं और इसके परिणामों को कब तक नज़रअंदाज़ किया जाएगा?
साथ ही अगर बात की जाए सेक्सवर्धक गोलियों या ये कहें मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाओं कि तो वह बहुत आसानी से लोगों को मिल जाती हैं। इन दवाओं तक पहुँच जितनी आसान है उतना ही यह खतरनाक भी है। आपने कभी गौर किया हो तो आपने देखा होगा कि रेलवे ट्रैक, सड़क के किनारे व दीवार पर प्रचार की तरह लिखा होता है, ‘सेक्स रोगियों का सफल इलाज’। वहां उनका नंबर, नाम व पता आपको सब मिल जाएगा। ऐसे ही एक वैद्य से जब खबर लहरिया ने बात की और पूछा कि क्या उनके द्वारा सेक्सवर्धक गोलियों के इस्तेमाल व सावधानियों के बारे में बताया जाता है?
उनकी तरफ से बस यह जवाब आता है,”इसे लेकर कोई सावधानी नहीं होती। आप रोज़ संभोग करिये, कोई समस्या नहीं होती।”
यह प्रचार,पहुंच व दवाएं साफ़ तौर पर समाज में पुरुष की सत्ता को दर्शाती है जहां पुरुषों की संभोग में संतुष्टि के लिए बिना किसी पूर्ण जानकारी के खुलेआम दवाएं बिक रही हैं। यहां महिलाओं की तो कोई बात ही नहीं है। यह चीज़ें आसानी से लोगों की पहुंच में हैं लेकिन उसके इस्तेमाल और सावधानियों को लेकर न बात की जा रही है और न ही उसे ज़रूरत के तौर पर देखा जा रहा है। महिलाओं के स्वास्थ्य, उनके विचार, उनकी सत्ता व अधिकार… इसे लेकर समाज की सत्ता में कोई प्रचार ही नहीं है। समाज में महिलाओं की सत्ता व अधिकार की बातें करने वाले लोग कहां हैं? स्वास्थ्य विभाग द्वारा कहने को महिलाओं को दी जाने वाली शारीरिक व मानसिक सुविधाएं कहां हैं?
हर जगह मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाओं का प्रचार है पर उनकी खामियों को लेकर उन दीवारों पर एक पोस्टर भी नहीं?
खबर लहरिया की एडिटर कविता देवी व प्रबंध संपादक मीरा देवी ने अपनी बातचीत में कहा कि इस मामले में डॉक्टर्स की रिपोर्ट ने बहुत बड़ा काम किया जहां अन्य मामलों में अमूमन रिपोर्टें दबा दी जाती हैं। इसके अलावा महिलाएं सेक्स से जुड़ी बातें कई बार समाज में डर और शर्म की वजह से नहीं कर पातीं। शर्म को लेकर यह भी टिप्पणी की कि न कह पाने की एक वजह आज के समय में सोशल मीडिया भी है जो एक बात को कई तरह से घुमाकर दिखाती है। इसके अलावा महिलाओं को भी सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा यह जानकारी दी जानी चाहिए कि सेक्सवर्धक दवाएं क्या हैं? उससे क्या हो सकता है? वह अपनी सुरक्षा कैसे कर सकती हैं जो कई मामलों में महिलाओं को पता नहीं होता।
इसके आलावा जितने भी ऐसे केस सामने आये हैं, उनमें यही देखा गया है कि पति द्वारा अपनी सत्ता, ताकत व मर्दानगी दिखाने के लिए भी सेक्सवर्धक दवाओं का इस्तेमाल संभोग के दौरान किया जाता है। समाज ने शुरू से पुरुषों के दिमाग में यह बात डाली है कि यह उनकी सत्ता है। जहां सिर्फ उनकी मर्ज़ी है। वहां अगर महिला या पत्नी संभोग के दौरान मना कर रही है, अपनी सत्ता का उपयोग करते हुए उसे रुकने को कह रही है जो उसका अधिकार है। वहां समाज के विचार के अनुसार, उसे ‘शर्म’ के घेरे के अंदर डाल दिया जाता है।
शर्म के नाम पर महिला की “ना” को, सामने वाले द्वारा अपने मन मुताबिक़ व सामजिक धारणा के अनुसार समझा जाता है। समाज हमेशा से ही महिला की सत्ता व उसके अधिकारों को किसी न किसी तरह से दबाते हुए आया है।
इन दवाओं के आलावा सोशल मीडिया पर पोर्न व सेक्स से जुड़ी चीज़ें दिखाना,अपने पार्टनर पर संभोग के दौरान किस तरह से हावी हुआ जा सकता है, इत्यादि जानकारी बड़ी पैमाने पर उपलब्ध है। उपलब्ध होना और उसका इस्तेमाल करना गलत नहीं है लेकिन उसे किस तरह से समझा, दिखाया व बताया जा रहा है, वहां सवाल होना चाहिए। सेक्स करने का सही तरीका क्या है? अपने पार्टनर को बिना हानि पहुंचाए किस तरह से संभोग में संतुष्टि मिल सकती है? सेक्स के दौरान “हाँ” और “ना” को समझना कितना ज़रूरी है? यह सब चीज़ें मौजूदा वीडियोज़ से गायब रहती हैं और जो उपलब्ध होता है वह है ‘उग्र’ व ‘खुद को मर्द’ दिखाने वाले वीडियोज़, जहां से हिंसा को और ज़्यादा बढ़ावा मिलता है। सत्ता को और बढ़ावा मिलता है जहां सामने वाले पर हावी होने के बारे में सिखाया जाता है।
जो व्यक्ति इन्हें ले रहा है, वह इसे हिंसा से ज़्यादा संतुष्टि की तरह देखता है क्योंकि चीज़ें भी उस तरह से पेश की जा रही है। पर हाँ, जानकारी की कमी होना कभी हिंसा को बढ़ावा देने व हिंसा करने का बहाना नहीं हो सकता क्योंकि यहां अलग-अलग तरह से सत्ताओं का इस्तेमाल किया गया है। “ना” के बावजूद भी अपने पार्टनर के साथ ज़बरदस्ती करना हिंसा है और यह सभी लोगों को समझना ज़रूरी है। वहीं किसी की सत्ता को नकारकर अपनी सत्ता को स्थापित करने को भी अपराध कहा जाना चाहिए।
पति द्वारा की गई शारीरिक व यौनिक हिंसा का मुकदमा पत्नी पर
“रोज़ पेशाब पिलाता है डेली,अगर थूकती हूँ तो मारता है। पूरे शरीर में कोहनी से मारता है और हाथों से ऐसे-ऐसे मसलता है। काट लेता है। मेरा हमेशा से ब्लड निकलता रहा है।”
यह तीसरा मामला 26 जनवरी 2024, रात तकरीबन 8 बजे हमीरपुर जिले के एक गांव का है। एक दिन प्रताड़ना व शारीरिक हिंसा से परेशान होकर पत्नी ने कथित पति को दांत से काट दिया। अपनी सत्ता व अधिकार का इस्तेमाल करते हुए अपनी सुरक्षा के लिए हौसला दिखाया। खबर लहरिया से बात करते हुए महिला ने बताया,
“मेरे साथ रोज़ ज़ोर-ज़बरदस्ती करता है। बच्चा अगर सोता नहीं है तो कहता है कि साले ठंडा पानी डालकर मारूंगा तेरको। लेकिन बच्चे कैसे सोयेंगे जब माँ को कष्ट है तो वह चुपचाप देखते रहते हैं। वो ऐसे ही कपड़े उतार देता है। लड़की को कहता है कि साली चल कि वो चिल्लायेगी कि मम्मी को पापा न मार तो उसे कहता है तू भी लेट, तेरे भी ऐसा करता हूँ।”
वह शिकायत के लिए चौकी भी गईं। वह घर नहीं जा रही थीं कि उन्हें डर था कि कथित पति उन्हें जान से मार देगा। वहीं चौकीदार ने उन्हें समझा-बुझाकर घर भेज दिया। यहां चौकीदार के पास इतनी ताकत व सत्ता थी कि वह महिला के लिए सुरक्षा का इंतज़ाम कर सकते थे, लेकिन उस सत्ता का इस्तेमाल यहां मामले को दबाने के लिए किया गया। इसके बाद जब महिला घर आईं तो उनके साथ कथित पति दोबारा ज़बरदस्ती करने लगा। कहा,
”जब उसने मेरे मुंह में डाला तो मैंने काट लिया। अपनी जान बचाने के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है।”
कथित पति नाम के लिए रिक्शा चलाता है, दारु पीता है और जुआं खेलता है। पैसा भी दारु और जुएं में डालता है। यहां भी उसके पास पुरुष/ विशेष लिंग से होने की सत्ता है, जिसकी ताकत समाज से आती है।
महिला के बेटे ने खबर लहरिया को बताया,“रोज़ के जैसे घटना के दिन भी नंगे खड़े थे। मम्मी को मार रहे थे और पेशाब पिला रहे थे तभी मम्मी ने काटा था तो उन्हें गला पकड़कर मार रहे थे”। – वह यह सब वहां खड़े होकर देख रहा था। बच्चे की उम्र लगभग 7 से 8 साल के बीच है। महिला ने आरोप लगाते हुए यह भी कहा कि सास द्वारा ही उसे पिटवाया जाता है।
वह बस यही चाहती हैं कि, “जब तक मेरे बच्चे बड़े नहीं होते हैं, मुझे कहीं और रहने के लिए व्यवस्था चाहिए”।
जब हमने आरोपी पति से इस बारे में बात की तो उसने अपने बचाव में कहा,“उसने मेरा काट लिया है”। अभी इलाज चल रहा है। पत्नी के खिलाफ थाने में तहरीर दी है।
हमीरपुर के एसओ ने बताया, कथित पति द्वारा अपनी पत्नी के खिलाफ धारा 324 के तहत मुकदमा लिखवाया गया है। इन सब चीज़ों के बाद मुकदमा भी महिला पर दर्ज़ हुआ कि उसने अपने कथित पति के गुप्तांग को काटा। जहां मामला घरेलु हिंसा, शारीरिक हिंसा, यौनिक हिंसा,रेप, ज़बरदस्ती संबंध बनाने की कोशिश,मानसिक प्रताड़ना, इसके साथ-साथ नाबालिग बच्चों के सामने अश्लीलता करना, उन्हें धमकाना, बेटी के साथ भी यौनिक हिंसा की बात करना इत्यादि को लेकर होना चाहिए था।
हमने यह भी देखा कि जब हम महिला के कथित पति से पूरे मामले के बारे में बात कर रहे थे, बात करते समय उसमें कोई हिचकिचाहट, शर्म या ये नहीं था कि उसने कुछ गलत किया है। यहां वह अपनी सत्ता से रूबरू था कि पुरुष होने के नाते, समाज ने उसे यह सब करने का अधिकार दिया है। वह गलत नहीं है।
एक बार के लिए अगर यह मान भी लिया जाए कि पत्नी ने झूठा आरोप लगाया तो उस आरोप को लेकर भी उसमें कोई गुस्सा या उसके द्वारा कोई बात नहीं कही गई। यह व्यवहार यह भी दर्शाता है, जैसा कि हमने ऊपर भी बात की कि पति को लगता है कि वह अपनी पत्नी के साथ कुछ भी कर सकता है, मार सकता है, हिंसा कर सकता है, सब कुछ क्योंकि समान्य तौर पर समाज में यह गलत नहीं है। यह उसकी सत्ता के अंदर आता है। यहीं से हिंसा को और बढ़ावा मिलता है जब लोग/ पुरुष अनजान होने के ढोंग में ‘अधिकार व सत्ता’ के नाम पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए महिला/अन्य के साथ हिंसा करते हैं। खुद पर ‘अभिमान’ करते है, जो सीख कहीं न कहीं पितृसत्ता वाले समाज से ही आती है।
यूपी में महिलाओं के साथ रेप व हिंसा का डाटा
एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में सबसे ऊपर है। रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 65,743 पंजीकृत मामलों की बात कही गई थी। इसके बाद 45,331 मामलों के साथ महाराष्ट्र और 45,058 मामलों के साथ राजस्थान है। 2021 में, यूपी में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 56,083 मामले दर्ज किए गए थे। इसके बाद राजस्थान (40,738 मामले) था। केंद्र शासित प्रदेशों में, दिल्ली 2022 में 14,247 मामलों के साथ इस श्रेणी में सबसे आगे है।
इसके अलावा ‘बलात्कार/गैंगरेप के साथ हत्या’ की श्रेणी के तहत, उत्तर प्रदेश 2022 में 62 ऐसे पंजीकृत मामलों के साथ सबसे आगे है, दोबारा।
मैरिटल रेप, धाराएं, कानून व डाटा
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की जुलाई 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, एक सर्वेक्षण बताता है कि लगभग 30 प्रतिशत विवाहित महिलाएं ऐसी हैं जिनके साथ मैरिटल रेप हुआ है। आईपीसी की धारा 375 में वैवाहिक बलात्कार शामिल है जो पति या पत्नी की पूर्व सहमति के बिना जबरदस्ती संबंध बनाने या संभोग करने को लेकर है। हालांकि, मैरिटल रेप, रेप है या नहीं, इसे लेकर कोई कानून नहीं है।
आईपीसी की धारा 498ए – जिसमें सभी प्रकार की क्रूरता शामिल है। चाहें वह यौन, भावनात्मक, शारीरिक या मौखिक हो। इसमें आरोपी को 3 साल के लिए सलाखों के पीछे रखा जा सकता है।
साल 1983 में महिलाओं को सभी प्रकार की घरेलू हिंसा से बचाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में एक नई धारा जोड़ी गई थी,धारा 498ए। इसमें कहा गया कि किसी महिला के साथ क्रूरता करने वाले पति या पति के रिश्तेदार को कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा के अनुसार, “इस धारा के प्रयोजन के लिए, ‘क्रूरता’ का अर्थ किसी के भी द्वारा जानबूझकर किया गया आचरण है जो ऐसी प्रकृति का है जिससे महिला को आत्महत्या करने या गंभीर चोट लगने या जीवन, अंग को खतरा या महिला का स्वास्थ्य (चाहे मानसिक हो या शारीरिक) होने की संभावना है। मानसिक और शारीरिक क्रूरता दोनों की कानून में बहुत व्यापक परिभाषाएँ हैं।”
हालांकि, यह पाया गया कि यह प्रावधान अधिकांश महिलाओं द्वारा अनुभव की जाने वाली घरेलू हिंसा को रोकने में मददगार साबित नहीं हुआ, जैसा की हमने आर्टिकल में बताये गए मामलों में देखा।
महिलाओं के साथ होने वाली हिंसाओं हेतु कानूनी तौर नियम हैं भी और नहीं भी, जैसे आईपीसी की धारा 375, जहां शादी के बाद ज़बरदस्ती किये गए रेप को मैरिटल रेप ही नहीं कहा जा रहा। वहीं यह मामले जो ग्रामीण क्षेत्रों से निकल कर आते हैं, वहां महिलायें इस तरह से रिपोर्ट ही नहीं लिखवा पाती क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती। उन्हें उनकी सत्ता व अधिकार के बारे में मालूम ही नहीं होता। मामला मूलतः हिंसा या मारपीट तक सिमट कर रह जाता है या वहां तक भी नहीं पहुँचता क्योंकि महिला के पास न तो उस तरह की सहायता है और न ही जानकारी। यहां समाज की सत्ता इस तरह से काम करती है। रेप के मामले भी ऐसे ही दब जाते हैं। परिवार की आर्थिक रूप से कमज़ोरी और समाज में आरोपियों को मिली आर्थिक व सामाजिक पहचान उन्हें उससे बचा लेती है।
समाज व विशेष लिंग की सत्ता ने हमेशा से पितृसत्तात्मक समाज में हिंसा फैलाने व हिंसा करने का काम किया है। इसलिए हिंसा के खिलाफ,अपराधों और उससे होने वाली सज़ाओं को लेकर लोगों में डर पैदा किया जाना चाहिए। हर किसी को बताया जाना चाहिए कि अपराध कोई भी हो, अपराधी कोई भी हो, समाज में उसकी सत्ता कुछ भी हो, कोई भी उसके द्वारा किये गए हिंसा की सज़ा से नहीं बच सकते। ग्रामीण इलाकों में तो ज़रूर से आशा बहुओं, एएनएम इत्यादि द्वारा महिलाओं को उनकी सत्ता व अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
जानकारी दी जानी चाहिए। यहां सरकार अगर सख्ती से यह कदम उठाएगी तभी हर कस्बे व क्षेत्र तक इसकी जानकारी पहुंचाई जा सकती है क्योंकि सिर्फ प्रचार व सोशल मीडिया से नहीं होगा। इसलिए हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए वहां तक पहुंचना ज़रूरी है ताकि हिंसा के खिलाफ लड़ा जा सके। इसके साथ-साथ समाज में लोगों को उनकी सत्ता व अधिकारों के इस्तेमाल के साथ-साथ, उसकी क्या सीमाएं हैं, इस्तेमाल हैं, इत्यादि चीज़ों के बारे में भी बताया जाना ज़रूरी है।
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