बांस गीत, छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने लोकगीतों का हिस्सा है। आज यह बांस गीत या ये कहें कि यह वाद्य यंत्र धीरे-धीरे कहीं गायब होता जा रहा है। गायब होते गीत का मतलब है, कल्चर का गायब हो जाना। वो कल्चर या संस्कृति जो लोगों की पहचान होती है। इसका मतलब यही हुआ कि लोग कहीं न कहीं, धीरे-धीरे अपनी पहचान खोते जा रहें हैं।
राउत जाति के लोग गाते हैं बांस गीत
बांस गीत के गायक अमूमन रावत या आहीर जाति के लोग होते हैं। छत्तीसगढ़ में रावत को राउत कहा जाता है। राउत को यदुवंशी भी कहा जाता है यानि इन्हें कृष्ण जी का पूर्वज माना जाता है।
बता दें, छत्तीसगढ़ में राउतों की बहुत संख्या है। बांस गीत बजाने वाले गायक खुद बांस की लकड़ी से वाद्य यंत्र बनाते हैं जिसे ‘मोहरी’ कहा जाता है। यह वाद्य यंत्र थोड़ा बहुत शहनाई की तरह ही होता है। वहीं बांस के टुकड़े की लंबाई तकरीबन 4 फुट होती है।
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गाय चराते समय गाते हैं बांस गीत
बांस गीत छत्तीसगढ़ की संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा और लोगों के मनोरंजन का ज़रिया है। बांस गीत को खुशी और दुःख दोनों समय बजाया जाता है। राउत जाति के लोग जो गाय चराने का काम करते हैं, उन्हीं के द्वारा यह बांस गीत गाया जाता है। बताया जाता है कि गायों को चराने के दौरान राउत समुदाय के लोग बांस गीत गाते थे और आज भी गाते हैं।
युवाओं को बांस गीत सीखने में रुचि नहीं
खबर लहरिया ने छत्तीसगढ़ के कुछ ऐसे लोगों से बात की जो आज भी बांस गीत गाते हैं। दुर्ग जिले के हरदी गाँव के रहने वाले मंत्री यादव ( लगभग 70 साल उम्र) बताते हैं कि वह 22 साल की उम्र से बांस गीत बजाते आ रहें हैं। उनके पूर्वज भी बांस गीत बजाते थे और उनसे ही उन्होंने भी बांस गीत बजाना सीखा। वह यह गीत अमूमन ख़ुशी के मौके जैसे छठी आदि पर बजाते हैं।
वह आगे कहते हैं कि उनके साथी जो उनके साथ मिलकर गीत गाते थे, वे अब नहीं रहें। उनके अनुसार, आज बांस गीत को कोई सुनने और परखने वाला भी नहीं है। इसी वजह से यह वाद्य यंत्र धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है।
उन्होंने बांस गीत कई युवाओं को सिखाने की भी कोशिश की लेकिन कोई सीखना ही नहीं चाहता।
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बांस गीत में गायक के साथ होते हैं दो और लोग
बांस गीत में दो से तीन लोगों की ज़रुरत होती है। बांस गीत में एक गायक होता है। उनके साथ दो बांस बजाने वाले होते हैं जिन्हें “रागी” और “डेही” कहा जाता है।
सबसे पहले वादक बांस को बजाता है। जहां पर वह रुकता है और अपनी सांस छोड़ता है, वहीं से दूसरा वादक उस स्वर को आगे बढ़ाता है। इसके बाद ही गायक के स्वर को हम सुनते हैं। गायक लोक कथाओं को गीत के ज़रिये प्रस्तुत करता है। सिर्फ गायक को ही उस लोक कथा की शब्दावली ( कहे जाने वाले शब्द) आती है।
“रागी” और “डेही” किसे कहते हैं?
“रागी” वह व्यक्ति होता है जिसे शब्दावली पूरी तरह से नहीं पता होती पर वह गायक के स्वर में साथ देता है। वहीं “डेही”, वह व्यक्ति है जो गायक को और रागी को प्रोत्साहित करने का काम करता है। जैसे “धन्य हो” “अच्छा” “वाह वाह”। बता दें, गीत के राग को जानने वाला “रागी” होता है।
मालिन जाति का बांस है सबसे अच्छा
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में मालिन जाति का बांस सबसे अच्छा होता है। इस बांस का इस्तेमाल करने से स्वर भंग नहीं होता। बांस में चार सुराख बनाये जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे बाँसुरी की वादक की उंगलियां उन सुराखों पर नाचतीं हैं। ऐसा ही हाल बांस वादक का भी होता है।
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बांस गीत
बांस गीत में रावत और रवताईन के बीच होने वाली बातचीत पढ़े। इसमें नाराज़ पत्नी और पति के बीच की बात कही गयी है।
वताईन :
छेरी ला बेचव, भेंड़ी ला बेचँव, बेचव करिया धन
गायक गोठन ल बेचव धनि मोर, सोवव गोड़ लमाय
रावत :
छेरी ला बेचव, न भेड़ी ला बेचव, नइ बेचव करिया धन
जादा कहिबे तो तोला बेचँव, इ कोरी खन खन
रवताईन :
कोन करही तोर राम रसोइया, कोन करही जेवनास
कोन करही तोर पलंग बिछौना, कोन जोही तोर बाट
रावत :
दाई करही राम रसोइया, बहिनी हा जेवनास
सुलरवी चेरिया, पंलग बिछाही, बँसी जोही बाट
रवताईन :
दाई बेचारी तोर मर हर जाही, बहिनी पठोह ससुरार
सुलखी चेरिया ल हाट मा बेचँव, बसी ढीलवँ मंझधार
रावत :
दाई राखें व अमर खवा के बहिनी राखेंव छे मास
सुलखी बेरिया ल छाँव के राखेंव, बँसी जीव के साथ
इसके अलावा सुवा, डंडा, करमा, ददरिया आदि भी बाँस गीत में गाये जाते हैं।
बांस गीत द्वारा सुनाई जाने वाली कहानी
बांस गीत में रानी अहिमन के सती होने की कहानी अमूमन सुनाई जाती है। रानी अहिमन ने अपने समय में रूढ़िवादी विचारधारा और समाज के खिलाफ काफ़ी लड़ाई लड़ी थी। कहानी के अनुसार जब उनके पति की मृत्यु हुई तो उन्हें भी उनके पति के साथ जला दिया गया।
तो यह थी बांस गीत, बांस वाद्य यंत्र की कहानी जो छत्तीसगढ़ के लोकगीतों की पहचान तो है पर पुरानी होने की वजह से अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। हालांकि, इसका नाम दस्तावेज़ों व इतिहास में ज़रूर से है पर इसके लुप्त होती पहचान की चिंता सिर्फ उन्हें ही है जो इसे आज भी कायम रखे हुए हैं।
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