केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश दिया जाए या नहीं इस पर आज सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगी। इससे पहले 28 सितंबर 2018 को 5 जजों की बेंच 4:1(5 जजों में से 4 जजों ने मंदिर प्रवेश में सहमति दी थी) के बहुमत से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दी थी। लेकिन इसके बाद केरल के कई जिलों में फैसले के विरोध में हिंसक प्रदर्शन हुए थे। उसके बाद कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी, जिसपर सुनवाई के बाद 6 फरवरी 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में कुल 65 याचिकाएं दायर की गई थीं , जिनमें से 56 रिव्यू पिटिशन(समीक्षा याचिका) हैं।आपको बता दें कि इन घटनाओ के बाद इस केस को रिव्यू पेटिशन पर सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला अब 7 जजों की बेंच को सुपूर्द कर दिया है।
आपको बता दें कि इस मंदिर में 10 से 50 साल के बीच की महिलाओं का प्रवेश करना मना था। मान्यता था की इन उम्र की महिलाओ को माहवारी होती है और इस मंदिर में प्रवेश के लिए 41 दिनों का कठिन व्रत करना पड़ता है। जिसे इन उम्र की महिलाये पूरा नहीं कर सकती। इस ‘शुद्धिकरण’ को भेदभाव मानते हुए 2006 में इंडियन यंग लॉयर एसोसिएशन की पांच महिला वकील सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। साथ ही याचिका दायर कर इन्होंने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध हटाने की मांग की और कहा कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक छुआछूत का रूप है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला देकर महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की आजादी दे दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मंदिर में महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया गया। जिसे लेकर सारा विवाद शुरू हुआ।
आपको बता दें कि ये मंदिर केरल के तिरुवनंतपुरम से 175 किमी दूर पहाड़ियों पर बना हुआ हैं. यहां हर साल करोड़ों की संख्या नें भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है।