राठ हमीरपुर जिले में रहने वाली 45 वर्षीय विधवा महिला संतोष कुमारी 11 सालों से सिंघाड़े की खेती कर रही हैं। वह मौदहा ब्लॉक के जल्ला गांव की रहने वाली हैं। संतोष के सात बच्चे हैं। पति का देहांत 2011 में हो गया था। ऐसे में बच्चों की ज़िम्मेदारी उन पर आ पड़ी थी। ससुराल वाले भी उनका सहयोग नहीं कर रहे थे। फिर मायके वालों के मदद के ज़रिये संतोष ने जल्ला गांव में तालाब किराये पर लिया और वहां सिंघाड़े की खेती करने लगी। इससे उन्हें अच्छा पैसा भी मिल जाता था। सिंघाड़े की खेती के ज़रिये उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दी है। बेटी ने बीएससी व बेटा कृषि में बीए फाइनल कर रहा है।
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पहले उन्हें सिंघाड़े बेचने के लिए काफी भागम-दौड़ करनी पड़ती थी। वह मंडी जाती और शाम तक आती। अब बेटे बड़े हो गए हैं तो वह भाग-दौड़ का काम कर लेते हैं। उन्हें मंडी नहीं जाना पड़ता।
संतोष बताती हैं कि काम करने के दौरान उन्हें समाज के कई ताने भी सुनने को मिले। कोई उनका मुंह देखना पसंद नहीं करता था क्योंकि वह एक विधवा थी। समाज उन्हें आज भी अशुभ मानता है।
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