उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड एक ऐसा इलाका है जो पिछड़े इलाक़े और शिक्षा की कमी के नाम से ही नहीं बल्कि नदी और पहाड़ों के खनन के नाम से भी मशहूर है।यहाँ पर बहुत सारे ऐसे पहाड़ हैं जो खनन के कारण खत्म होते जा रहे हैं, इसके साथ ही नदियों का सीना चीर कर यहाँ बालू निकाली जा रही है। जिससे बुंदेलखंड की प्रकृति पूरी तरीक़े से नष्ट होती जा रही है। यहाँ का पत्थर और बालू कारोबार बहुत ही तेजी से फल-फूल रहा है लेकिन आम जनता और किसान मजदूर इन चीजों के बीच पिस रहे हैं।पहाड़ों और नदियों से खनन का प्रभाव सबसे ज़्यादा पर्यावरण पर पड़ रहा है जिसके चलते यहाँ के लोगों को न ही शुद्ध हवा मिलती है, न पानी मिलता है और ना ही ऑक्सीजन मिलता है। जैसा कि हम जानते हैं कि यह सारी चीजें नदी, पहाड़ और जंगलों से ही जुड़ी होती हैं जो एक मनुष्य के जीवन का अहम हिस्सा भी होती हैं।
अभी कुछ दिनों पहले ऐसी एक खबर आयी थी कि इन पहाड़ों और नदियों को नष्ट होने से बचाने की निगरानी करने के लिए सरकार द्वारा जगह-जगह कैमरे लगवाए गए हैं जिससे इनकी पूरी तरह निगरानी हो सके और अवैध खनन पर रोक लगायी जा सके। पर्यावरण को बचाने की सरकार की इस पहल के बारे में जानकारी करने के लिए खबर लहरिया की टीम बुंदेलखंड के पहाड़ी इलाक़े में रह रहे लोगों से मिली। तो चलिए जानते हैं कि इन लोगों का खनन से पर्यावरण को पहुँच रहे नुक़सान के बारे में क्या कहना है।
खनन के काम से ही मिल रहा है रोज़गार-
कबरई कस्बे में मजदूर वर्ग की महिलाओं और पुरुषों से जब हमने इस बारे में जानकारी लेने की कोशिश की, तो सरकार के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलने की हिचकिचाहट उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थी। इन लोगों ने दबी जुबान में अपना नाम बताने से मना करते हुए कहा कि उन्होंने सुना तो है कि सरकार ने सीसीटीवी कैमरे की मदद से यहाँ निगरानी करने का आदेश दिया है लेकिन असल में कैमरे लगे या नहीं इस बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं। लोगों का कहना है कि अगर कैमरों से सच में निगरानी हो रही होती तो पर्यावरण में बदलाव देखने को मिल जाता। यहाँ इतनी ज्यादा गहराई में जाकर बालू खनन चल रहा है जिससे मानव जाति के साथ-साथ प्रकृति का स्वास्थ्य भी ध्वस्त हो रहा है, अगर निगरानी होती तो ऐसा मंजर देखने को न मिलता और प्रदूषण भी इतना नहीं फैल रहा होता।
कबरई के मजदूर वर्ग के लोगों का कहना है कि इन्हीं खदानों में काम करके परिवार का गुज़ारा होता है इसलिए वो इस समय प्रदूषण और प्रकृति के नुक़सान से ज़्यादा अपने रोज़गार को लेकर चिंतित हैं। यह लोग हर ख़तरे से जूझ कर खनन का काम करते हैं और इस बात को भली भाँति समझते हैं कि खदानों में काम करने के कारण वो कैसे अपने स्वास्थ्य को हानि पहुँचा रहे हैं। लेकिन क्या करें अगर यहाँ पर काम नहीं करेंगे तो खुद का और अपने परिवार का पालन पोषण कैसे करेंगे?
लोगों ने हमें यह भी बताया कि पिछले 2 सालों से यहाँ का पत्थर कारोबार बहुत ज्यादा घाटे में चल रहा है और बहुत ही कम खदानें क्रेशर बची हुई है जिसके कारण यहाँ के ज़्यादातर मजदूर वैसे भी पलायन करने लगे हैं।
सरकार को लगाने प्रदूषण रोकने के लिए लगाने चाहिए पेड़-पौधे:
कबरई कस्बे के रहने वाले भाजपा जिला मंत्री के भाई अखिलेश कुमार शिवहरे ने हमें बताया कि कबरई में लगभग 450 क्रेशर और 300 से ज़्यादा पहाड़ हैं। उनका कहना है कि जिस तरह से सीसीटीवी कैमरों से पहाड़ों में खनन की निगरानी की बात की जा रही थी, अगर ऐसा कुछ सच में हो रहा होता तो अब तक खनन पर रोक लग चुकी होती।
अखिलेश का कहना है कि बुंदेलखंड में पेड़-पौधों और पानी की वैसे ही बहुत ज्यादा कमी है और खनन माफ़ियों के द्वारा हो रहे खनन के कारण अब और भी ज़्यादा वायु प्रदूषण फैल रहा है। अगर सीसीटीवी से निगरानी नहीं तो कम से कम सरकार यहाँ पानी की व्यवस्था ही कर दे या फिर फव्वारे लगवा दे, बड़े-बड़े पेड़ पौधे लगवा दे जिससे धूल मिट्टी ना उड़े और प्रदूषण में कुछ कमी आए। उनका मानना है कि अगर यह निगरानी कैमरों से हो रही होती तो शायद बुंदेलखंड के लोगों के लिए यह सारी सुविधायें उपलब्ध करा दी जाती। अखिलेश का कहना है कि कैमरे से निगरानी की बातें अभी सिर्फ़ कागजों में चल ही रही हैं, और जो कैमरे लगे भी होंगे वो काम भी कर रहे हैं या नहीं ये कोई नहीं जानता।
प्रकृति की रक्षा की लड़ाई सालों से लड़ रहा है बुंदेलखंड का किसान-
बुंदेलखंड, महोबा और बांदा के किसानों का कहना है कि खनन का काम तो यहाँ बहुत जोरों से चल रहा है जिसकी लड़ाई वह हमेशा लड़ते आ रहे हैं ताकि अवैध खनन को रोका जा सके और पर्यावरण को बचाया जा सके। खनन के कारण पर्यावरण के साथ साथ किसानों की जमीनें भी वायु प्रदूषण के कारण बंजर हो रही हैं और जो भी जमीने नदी और पहाड़ों के आसपास है वह एक समय था कि बहुत उपजाऊ हुआ करती थी लेकिन वो ज़मीनें भी पूरी तरह से बंजर हो गई हैं। इन किसानों की मानें तो पहाड़ों के आसपास बने घरों की स्थिति तो और भी बदतर है, लोगों के खाने-पीने और कपड़ों में धूल भरी रहती है और वही धूल शरीर के अंदर जाती है। इसी प्रकार उपजाऊ ज़मीनों में भी धीरे-धीरे पूरी तरह प्रदूषण मिल गया है। यहाँ के किसान चाहते हैं कि अगर कैमरों से निगरानी की जा रही है तो सही ढंग से की जाए ताकि इसमें जल्द से जल्द कुछ बदलाव आ सके।
लोगों से बातचीत के दौरान और इस पूरी कवरेज के दौरान हमने खुद भी इस चीज को महसूस किया कि किस तरह से यह लोग धूल से भरे हुए हैं और किस प्रकार यहाँ की हवा में धूल मिट्टी उड़ रही है। सड़क पर एक भी गाड़ी निकलती है, तो पूरी तरह से धुंध सी छा जाती है और पहाड़ों के आसपास किसी भी तरह के पेड़ पौधे नजर नहीं आते हैं।
नदियाँ, पेड़-पौधे मनुष्य के लिए हैं ज़रूरी-
इस पूरे मामले को लेकर के एक समाजसेवी कार्यकर्ता आशीष सागर ने हमें बताया कि सरकार वन दिवस तो मनाती है, लेकिन वनों की रक्षा करने के लिए कुछ नहीं करती। नदियाँ, पेड़-पौधे, पहाड़ मनुष्य के लिए जरूरी चीजें हैं, जिसके कारण हम आज साँस ले पा रहे हैं लेकिन पहाड़ों और नदियों का अस्तित्व तो मानो मिटता सा जा रहा है। आशीष का कहना है कि शासन का एक ऐसा आदेश तो आया था कि सीसीटीवी कैमरों की मदद से खनन पर नज़र रखी जाएगी। और उस आदेश में एक खदान में 4 कैमरे लगने की बात भी कही गई थी। लेकिन ज्यादातर खदानों में कैमरे खराब पड़े हुए हैं ताकि ओवरलोडिंग और खनन की निगरानी ना हो सके और यही कारण है कि इतना ज्यादा ओवरलोडिंग और इतनी ज्यादा गहरी मात्रा में बालू की खुदाई की जा रही है, जिससे करोड़ों का माल अवैध रूप से दूसरी जगहों पर पहुँचाया जा रहा है।इसमें सबसे ज़्यादा फायदा ठेकेदारों और छोटे स्तर के अधिकारियों को होता है। आशीष का मानना है कि सरकार अगर यही निगरानी सही तरीक़े से करे तो हम बुंदेलखंड की प्रकृति को वापस से जीवित कर सकते हैं।
तो देखा आपने कि इतने नियम, क़ानून, सरकारी निगरानियों के बावजूद भी बुंदेलखंड का पर्यावरण नष्ट हो रहा है। अगर ऐसे ही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम सभी एक-एक बूँद पानी के लिए तरस रहे होंगे और तब हमें अपनी प्राकृतिक धरोहर का महत्व समझ आएगा।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए गीता देवी द्वारा लिखा गया है /