यह चुनावी सफ़र है गीता और खबर लहरिया की पूरी रिपोर्टिंग टीम का। कुछ खट्टी, कुछ मीठी और मज़ेदार राहों का।
यूपी में चुनाव हो और हलचल न हो ऐसा हो सकता है क्या ? चुनावी सरगर्मी में प्रत्याशियों से लेकर जनता की जद्दोजहद आपने बहुत सुनी होगी। हम इस आर्टिकल में आपको रिपोर्टर्स के चुनावी सफ़र पर लेकर जाएंगे। जिसमें कहीं ठहराव होगा तो कहीं आप खुद को इस कहानी के साथ चलता हुआ पायेंगे। इंटरेस्टिंग? मेरे लिए तो है। आखिर इस दौरान रिपोर्टर्स किस तरह से फील्ड जाते हैं, उनके क्या प्लान होते हैं, उनका लोगों से मिलना-जुलना, कहीं ठहर कर गप्प-शप्प करना, सब कैसा होता है। सब कुछ सोचकर ही मज़ेदार लगता है न? यह जानने के लिए पेट में तितलियाँ उड़ रही हैं क्या आपके?
यह चुनावी सफ़र है गीता और खबर लहरिया की पूरी रिपोर्टिंग टीम का। कुछ खट्टी, कुछ मीठी और मज़ेदार राहों का।
खबर लहरिया की पूरी टीम इस चुनावी दौर में कॉम्बो रिपोर्टिंग के लिए निकलीं। तारीख थी 7 फरवरी 2022, दिन सोमवार यानी वर्किंग डे की शुरुआत। वैसे मीडिया फिल्ड में हर दिन ही वर्किंग डे होता है।
जब यूपी जैसे बड़ी जनसंख्या वाले प्रदेश में चुनाव हो तो सबकी निगाहें उसी पर टिकी रहती हैं कि आखिर इस बार यूपी चुनाव में होने क्या वाला है? क्या नया है?
हमारी बुंदेलखंड की पूरी टीम 7 फरवरी 2022 की सुबह यूपी के अन्य जिलों में कॉम्बो रिपोर्टिंग के लिए निकल पड़ी। कई जिलों के सफ़र में हमें वहां से उन कहानियों को, उन समस्याओं और मुद्दों को निकालना था जो सामने होकर भी अप्रत्यक्ष है। यह सब सोचकर ही हलचल मच रही थी कितना कुछ करना है। पूरी टीम के साथ कुछ नया करने की बेकरारी लिए थोड़ी बेचैनी और घबराहट के साथ शुरू हुआ खबर लहरिया की चुनावी कॉम्बो रिपोर्टिंग का पहला सफ़र।
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पहले दिन बेहद लंबा था
7 फरवरी को गीता घर से निकली तो नरैनी चौराहे पर उन्हें आधे घंटे तक खड़ा होना पड़ा। कोई भी साधन नहीं आ रहा था। 8 बजे तक बांदा भी पहुंचना था। जैसे-तैसे एक ऑटो पकड़ा लेकिन उस ऑटो का ड्राइवर पेट में गुड़बुड़ की वजह से उतर गया। अब गीता करे तो क्या, बस यही कहा कि भैया जी ! ज़रा जल्दी करिये! जल्दी फ्रेश हो जाइये, हा हा हा। सुनने में थोड़ा अजीब तो लग रहा है पर बोलने की भी मज़बूरी है।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था टेंशन बढ़ रही थी। समय से पहुँच पाना और भी मुश्किल हो रहा था।
गीता ने हिम्मत करते हुए फ़ोन लगा ही दिया। अब देरी हो रही थी तो बताना भी था नहीं तो….
गीता को सीनियर से काफ़ी डांट पड़ी। गीता भी खुद को कहती, अब पड़े भी क्यों न, गलती तो थी ही। अब देरी के बारे में तो कुछ करा नहीं जा सकता तो सीनियर ने गीता से कहा कि जहां हो वहीं वह उनका इंतज़ार करे। वह लोग गीता को वहीं से साथ ले लेंगे।
अरे! ड्राइवर के बारे में भूल गए क्या आप लोग? या ये सोच रहें है कि इतनी देर तक वो फ्रेश ही हो रहा है क्या ? हा हा हा…….
ऐसा नहीं है, ड्राइवर आ गया लेकिन तब तक सीनियर्स भी रिपोर्टर्स के साथ गाड़ी लेकर आ गए थे।
ड्राइवर को पैसे देने के लिए पर्स से 100 रूपये निकाले, छुट्टे नहीं थे तो वही देना पड़ा। अब ज़्यादा पैसे देने का भी थोड़ा-थोड़ा दुःख तो हो रहा था लेकिन उतना नहीं क्यूंकि गीता भी अब सबके साथ गाड़ी में बैठ गयी थी। गाड़ी में बैठने के सुकूं ने फिर से गीता के शरीर में साँसे भर दी थी जो कुछ देर पहले तक लेट होने की वजह मद्धम-मद्धम चल रही थी। थोड़ा फ़िल्मी हो गया क्या ? पर क्या करें दिल को लुभाने को कभी-कभी यही कर लेते हैं।
हम सब कानपुर में एक जगह है घाटमपुर, वहां जा रहे थे कानपूर की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली का इंटरव्यू लेने। 11 बजे इंटरव्यू का समय तय हुआ था। रास्ता खचाखच जाम से भरा हुआ था। आस-पास जाम में फंसे लोग कहने लगे कि वह तो सुबह 6 बजे से ही फंसे हुए हैं। अब इस बात ने और डरा दिया। एक तो वैसे ही लेट हैं और ऊपर से लोग भी कहकर और भी ज़्यादा डरा रहे हैं, उफ्फ्फ्फ़…….
खींचतान करते हुए गाड़ी निकल रही थी। कछुए की चाल से भी धीरे। अरे! गीता कछुए को धीमा नहीं कर रही बस आप समझ रहें हैं न? बड़े समझदार हैं आप तो……. और 3 बजे तक आखिरकार हम सब कानपुर पहुंच ही गए।
ओह्ह्ह!! आपको तो मैं हमारी संपादक में बारे में बताना भूल ही गयी। सॉरी सॉरी !!
खबर लहरिया की संपादक कविता बुंदेलखंडी भी हमारे साथ इस चुनावी कॉम्बो रिपोर्टिंग का हिस्सा रहीं। तगड़े जाम को देखते हुए हमारी संपादक ने कानपुर प्रशासन को टैग करते हुए जाम को लेकर ट्वीट किया। प्रशासन को भी तो पता होना चाहिए न कि आम जनता को कितनी परेशानी आ रही है।
पहले लेट हो गए फिर जाम में फंस गए और क्या होना बाकी रह गया था? हम इंटरव्यू लेने के लिए भी लेट हो गए, आहहह!!
हमें जिनका इंटरव्यू लेना था यानी सुभाषिनी अली का, हमने उन्हें सारी बात बताई। उन्होंने भी हमारी बात को समझा और आखिर हम 4 बजे तक उनके घर पहुंच ही गए।
अब जाते ही इंटरव्यू नहीं ले सकते थे न, हालत एक दम खस्ता हो चुकी थी। पहुंचने पर चाय-नाश्ता किया, थोड़ा आराम किया और जिस काम के लिए आये थे यानी इंटरव्यू करना, उसे पूरा किया। उनसे मिलने का अनुभव काफ़ी अच्छा था।
5 बजे सब कानपुर के रामादेवी चौराहा पहुंचे। वहां हमारी टीम की एक सदस्य उम्म…..सदस्य नहीं हमारी दोस्त हर्षिता हम सबका इंतज़ार कर रही थी, वो भी गरमा-गरमा कबाब पराठे पैक करवाकर। काम के साथ पेट-पूजा भी तो ज़रूरी है न। वह भी हमारे साथ गाड़ी में बैठ गयी। सबने एक-एक पराठा खाया क्यूंकि पूरे दिन किसी ने कुछ खाया भी नहीं था।
रात के 12 बजे सब अयोध्या पहुंचे। वहां हमारी टीम की एक और सदस्य संगीता सबका इंतज़ार कर रही थी। ठंड का मौसम था तो हर जगह कोहरा छाया हुआ था पर उसमें टिमटिमाती लाइटें बेहद सुंदर लग रही थी। संगीता ने पूरी टीम के रुकने के लिए खाट यानी खटिया लगाई हुई थी। ग्रामीण इलाकों में बेड नहीं खाट ही होता है। सब उस खाट पर पैर पसार कर सो गए और कुछ इस तरह खत्म हुआ चुनावी कॉम्बो रिपोर्टिंग के सफर का हमारा पहला और बेहद लंबा दिन।
ठहाकों के साथ हुई दूसरे दिन की शुरुआत
8 फरवरी 2022, कॉम्बो रिपोर्टिंग का हमारा दूसरा दिन। गीता की आदत है सुबह जागने के बाद फ्रेश होने की। वैसे तो बहुत-से लोगों की होती ही। अब आप ये न सोचना की यह भी कोई बताने वाली बात है। अरे है !! बताने वाली बात।
फ्रेश होना था लेकिन शौचालय नहीं था। प्रदेश सरकार कहती है कि उसने घर-घर शौचालय बनवाये हैं पर दिखाई तो नहीं दिए। अब गीता और हमारी रिपोर्टर्स ठहरी बुंदेलखंडी महिलाएं। सब चली गयीं खेतों की ओर, हा हा हा…
देशी महिलाओं में एक शहरी लड़की भी थी। अब वो खेत में कैसे जाए। वो तो कहती मैं न जाउंगी और फिर गीता और टीम के लोग यह सुनकर ठहाके मारकर खूब हंसे।
इसके बाद पूरी टीम तैयार होकर रिपोर्टिंग करने के लिए निकल पड़ी। टीम ने संगीता से कहा, उन्हें सोने के लिए चारपाई नहीं चाहिए। बस वो जो सूखी घास होती है न, वो बिछा दो, सब उसी पर सो जाएंगे। कितना मज़ेदार है न ये बिस्तर? ऐसे बिस्तर आपको सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही मिलेंगे।
हमारी टीम सरयू नदी घाट पर रिपोर्टिंग के लिए पहुंची। वहां अलग-अलग मुद्दों पर सबने रिपोर्टिंग की और इसी दिन से चुनावी चक्कलस की भी शुरुआत हुई। इसमें हम अपने दर्शकों के साथ जुड़ते हैं और चुनावी मुद्दों पर उनके साथ चर्चा करते हैं। वो भी ऐसी-वैसी को गंभीर बात नहीं बल्कि मज़ेदार चर्चा, हंसी-ठिठोली करते हुए।
ड्राइवर साहब का ढाबा
9 फरवरी 2022, तीसरे दिन की सुबह सबसे पहले तो सबने जी भरके भजिया खाई। भजिया बोले तो आलू, गोभी, प्याज़ के पकौड़े वो भी धनिया की चटनी के साथ। मतलब ज़बा लपलपा गयी खाने के बाद।
पेट-पूजा के बाद सब अंबेडकरनगर जिले में रिपोर्टिंग के लिए रवाना हो गए। जिले में रिपोर्टिंग के लिए दो लोगों की टीम बनाई गयी। गीता की टीम ने टांडा के बुनकर समाज के लोगों पर स्टोरी की जिनका व्यापार अब धीमा हो चुका है फिर भी उन्होंने अपने कुटीर उद्योग को जैसे-तैसे जीवित रखा हुआ है।
फील्ड से निकलने के बाद टीम अपनी प्रोड्यूसर ललिता के घर उनकी मम्मी का हाल-चल पूछने रुक गयी जिनकी तबयत काफ़ी समय से खराब चल रही थी। यहाँ से सब वापस आगे के सफर पर निकल पड़े। रात हो रही थी और पेट में चूहे भी कूद रहे थे। सब खाने के लिए कोई ढाबा ढूंढ़ रहे थे और ड्राइवर साहब तो अपना ही पसंदीदा यादव का ढाबा ढूंढ़ने में लगे हुए थे। वह ढाबा भी तारुन से 35 किलोमीटर की दूरी पर था। सबको भूख बढ़ती जा रही थी और ड्राइवर साहब तो बस अपनी ही धुन में थे।
ड्राइवर ने आखिर यादव ढाबे यानी अपने फेवरेट ढाबे पर जाकर ही गाड़ी रोकी। वहीं टीम ने चुनावी चक्कलस भी किया। इस दौरान कमेंट इतने मज़ेदार आ रहे थे कि नींद भी उड़ गयी थी। किसी ने कमेंट करते हुए कहा, ‘मैडम जी! खाना तो आराम से खा लीजिये कितना काम करेंगी।’ ये सुनकर बहुत अच्छा भी लगा। चक्कलस में इतना मज़ा आ रहा था कि पूरे दिन की थकान का भी एहसास नहीं था।
जहां खबर, वहां रिपोर्टर
चौथे दिन, 10 फरवरी 2022 को गीता और पूरी टीम पहुंची अपने अगले जिले गोरखपुर में। यहाँ एक पत्रकार से मिलना था। रास्ते में चौराहे पर भीड़ लगी हुई थी तो टीम के कुछ सदस्य गाड़ी से उतर गए। भीड़ नारे लगाते हुए जा रही थी। बहुजन समाज पार्टी और निर्दलीय प्रत्याशियों के सदस्य अपना नामांकन भर रहे थे। यह देखते हुए गीता तुरंत गाड़ी से उतरती है और दौड़ते हुए निर्दलीय प्रत्याशियों का इंटरव्यू लेती है। इसके बाद ग्रामीण इलाकों में सब अलग-अलग मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने पहुंचते हैं। पूरे दिन गोरखपुर जिले में रिपोर्टिंग करने के बाद सब उसी रात बनारस के लिए निकल पड़े।
प्लान जैसे का तैसा भी रह जाता है
पांचवे दिन सुबह 4 बजे हमारी टीम बनारस पहुंची। यहां हमें नेहा सिंह राठौर से मिलना था। नेहा लोकल गायिका हैं और उनका ‘यूपी में का बा’ गाना सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल हुआ था। नेहा का गांव बनारस से इतना दूर था कि पूरा समय वहां तक जाने में ही लग गया। अन्य जगहों के कवरेज का प्लान जैसे का तैसा ही रह गया। नेहा के साथ इंटरव्यू करने के बाद सब शाम को फिर बनारस के लिए निकल पड़े। बनारस में टीम नंदलाल भाई के ऑफिस पहुंची और वहीं सबने मिलकर चुनावी चक्कलस किया।
सुकूं की नगरी
छठवें दिन सब आराम से उठें। इस बार टीम जहां रुकी थी वहां व्यस्थाएं काफ़ी अच्छी थीं। गीता भी बड़े खुश होकर कहती कि आज तो उसकी दोस्त ने चैन से नहाया है। अरे! वही शहरी दोस्त जिसके बारे में बताया था। इतना जल्दी भूल तो नहीं गए न आप लोग।
आखिरी दिन टीम ने वाराणसी जिले को कवर किया। यहां के साड़ी बुनकरों के बारे में जाना। नाव में बैठकर कवरेज की। घाट से अपने दर्शकों के लिए लाइव कवरेज भी किया। पूरा दिन रिपोर्टिंग में बीता और रात को सब वाराणसी से इलाहबाद आ गए। वहां रूककर सबने खाना खाया और अगले दिन सुबह 4 बजे सब अपने-अपने घर पहुंच गए।
एक हफ़्ते की कॉम्बो रिपोर्टिंग में टेंशन, मज़ा, दौड़, झुंझुलाहट और वाराणसी के घाट का सुकूं भी महसूस हुआ। रात को सब 12 बजे के बाद सोते और फिर सर्दी वाली सुबह में जल्दी उठ जाते। कोहरे और ठण्ड की फ़िक्र नहीं होती क्यूंकि काम पूरा करने का जूनून था। अगर रास्ते में कहीं आग जलते दिखती तो सब आग भी ताप लेते। इसके साथ ही हर दिन रात को होने वाली चुनावी चक्कलस में इतना कुछ बताने को होता था कि दिल एकदम तरो-ताज़ा हो जाता था।
सबकी नींद उड़ गयी थी और खाना तो दिन में सिर्फ एक बार ही हो पाता था पर इन सब चीज़ों के बीच जिस काम के लिए टीम निकली थी यानी रिपोर्टिंग करने। उसे दिल लगाकर सबने पूरा किया। एक हफ़्ते की कॉम्बो रिपोर्टिंग में सबने बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ एहसास किया जिसमें सबका सबसे यादगार पल बना टीम के साथ एक साथ रिपोर्टिंग करना। यह था हमारा चुनावी कॉम्बो रिपोर्टिंग का पहला सफ़र और हमेशा रहने वाली यादें।
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