महोबा जिले में रहने वाले किसानों का कहना है कि वह पहले हल-बैल से ही खेती करते थे। अब ट्रैक्टर चलते हैं तो हल और बैल से खेती नहीं की जाती। जब हमने गाँव के किसानों से बात की तो लाडपुर गांव के किसान चरण सिंह ने हमें बताया, उनकी उम्र अभी 30 साल है और वह 5 सालों से हल-बैल से किसानी कर रहे हैं। वह कहते हैं, किसानी के काम में बहुत मेहनत होती है। कभी-कभी तो खाना-पानी भी त्यागना पड़ता है। यह सबकी बस की बात नहीं है। वह आज भी अपने हाथों से ही खेतों की जुताई का काम करते हैं। बैलगाड़ी को वह बारामुला से भाड़े पर ले आते हैं। ऐसी ही उनके परिवार का भरण-पोषण होता है।
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हल बनाने वाले वीरेंद्र नाम के व्यक्ति ने कहा, उसके पापा हल बनाने का काम करते थे। पिछले 5 सालों में उन्हें कभी-कभार ही हल बनाने को मिलता है। वह अपने पापा को देखते हुए काम में हाथ बंटाते थे लेकिन अब काम ही नहीं मिलता। उनके परिवार में शुरू से ही हल बनाने का काम हुआ है।
बेलाताल के रहने किसान बालेंद्र ने बताया, जब वह लोग हल-बैल से खेती करते थे तो काफ़ी पैदावार होती थी। अब ट्रैक्टरों से करते हैं। ज़मीन उतनी उपजाऊ भी नहीं है।
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