खबर लहरिया Blog तीन दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण के लिए चंदौली के किसान बाँदा में

तीन दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण के लिए चंदौली के किसान बाँदा में

आज हमारा देश भारत ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व प्रकृति के असंतुलन, कृषि व कृषक के कम होने की मार झेल रहा है जिससे चारो ओर एक असंतुलन छा गया है। खेती भी इससे अछूती नहीं रही है। खेती दिन-प्रतिदन पर्यावरणीय असंतुलन, बढ़ती बेतहाशा लागत के कारण खेती लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है और किसान लगातार टूट रहे हैं। इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिये नाबार्ड किसानों के साथ काम करता है। वह चंदौली जिले में श्रमिक भारती संस्था के साथ मिलकर किसानों की बेहतरी के लिये काम कर रहा है।

किसानों के लिए यह काम करती है नाबार्ड

किसानों की आय में वृद्धि, आजीविका सुनिश्चितीकरण के लिये वह कई प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से किसान के साथ जुड़कर काम करता है। किसानों को प्रशिक्षण के लिये एक्सपोजर भी दिलवाता है। इसी क्रम में नाबार्ड द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम कैट (कैपेसिटी बिल्डिंग फॉर एडॉप्शन ऑफ टेक्नोलॉजी) के एक्सपोजर विजिट के माध्यम से चन्दौली जिले के गाँव (रामपुर, हसनपुर, कम्हरिया, सुरौली, पचोखर इत्यादि) के श्रमिक महिला नेचर फार्मिंग प्रोड्यूसर कंपनी के किसानों का बड़ोखर खुर्द, बांदा स्थित ह्यमेन अग्रेरियन सेंटर में प्राकृतिक खेती का शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम कराया जा रहा है, जहाँ किसानों को प्राकृतिक खेती की समझ बढ़ाने पर काम किया जायेगा। यह प्रशिक्षण 21 से 23 अक्टूबर तक चलेगा। किसानों को लाने का काम श्रमिक भारती संस्था ने किया है जो नाबार्ड के साथ मिलकर किसानों के लिये काम कर रही है।

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प्रेम सिंह ने बताया, क्या है खेती?

ज़मीन की घटती उर्वरता, खेती में बढ़ती बेतहाशा लागत, घटता उत्पाद, प्राकृतिक असंतुलनों का बढ़ता खतरा, स्वास्थ्य गिरावट, लगातार बढ़ता पलायन, आज बड़ी समस्याएँ है। इनके सम्पूर्ण समाधान के लिये ऐसी खेती की आवश्यकता है जिससे इन सभी संकटों से बचा जा सके। वहीं आवर्तनशील खेती ऐसी खेती है जिसका मॉडल किसान प्रेम सिंह ने बांदा के बड़ोखर खुर्द गाँव में खड़ा किया है।

किसान प्रेम सिंह ने किसानों को बताया कि खेती सिर्फ जोतना, बोना और काटना नहीं है बल्कि खेती जमीन की उवर्रता को बनाए रखते हुए, प्रकति के संतुलन को समझते हुए अपने लिये रोटी, कपड़ा, मकान एवं औषधियों को प्राप्त करना व प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं (खाद्यान्न) की प्रोसेसिंग करना खेती है। यह सब एक सैद्धांतिक व्यवस्था से ही सम्भव है।

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प्रशिक्षण में शैलेन्द्र सिंह बुन्देला ने मृदा को समृद्ध करने वाले 16 पोषक तत्वों (कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस… इत्यादि) की महत्ता बारे में विस्तार से बताया तथा कम्पोस्ट खादों जैसे वर्मी कम्पोस्ट, जीवामृत, शिवांश इत्यादि के बारे में विस्तार से चर्चा की। साथ ही किसानों को शिवांश खाद, जीवामृत बनाना भी सिखाया। पुष्पेंद्र भाई ने जल, वायु, ताप, ऊर्जा इत्यादि संतुलनों पर विस्तार से चर्चा की। जल संतुलन में बारिश के पानी का संरक्षण करके उस पानी से ही खेती करने के बारे में बताया। बारिश के पानी को बचाकर तालाब व सतही पानी से खेती में 30% अधिक उत्पादन पा सकते हैं। खेती बढ़ता प्राकृतिक ऐश्वर्य है जिसे तर्क पूवर्क समझना है और समझकर खेती करने पर ही हम खेती से अपनी आजीविका का पुख्ता इंतजाम कर सकते हैं व खेती के माध्यम से अधिक से अधिक रोजगार भी दे सकते हैं।

इस एक्सपोजर विजिट का उद्देश्य किसान प्राकृतिक व्यवस्था को समझकर प्राकृतिक विधि से खेती करते हुए अपनी आय में वृद्धि व अपनी आजीविका को सुनिश्चित करें। मिट्टी के साथ-साथ स्वयं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर खेती करें जिससे धरती भी पोषित हो और मानव स्वास्थ्य भी अच्छा हो। इस क्रम में जैविक विधि से कम्पोस्ट तैयार कर खेती करने पर लागत भी कम होगी और उत्पादन भी भरपूर व स्वास्थ्यवर्धक होगा।

इस खबर को मीरा देवी द्वारा लिखा गया है।

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