खबर लहरिया Blog उर्दू भाषा के नाम पर भी शुरू हो गई अब सियासत, फैब इंडिया कॉन्ट्रोवर्सी

उर्दू भाषा के नाम पर भी शुरू हो गई अब सियासत, फैब इंडिया कॉन्ट्रोवर्सी

अगर आप सोशल मीडिया पर रोज़ाना दस्तक दे रहे हैं तो आपको पता ही होगा कि आजकल भारत में “ट्रेडिंग” चर्चा का विषय फैब इंडिया नामक एक कपड़ों की बिक्री करने वाली ब्रैंड का विज्ञापन बना हुआ है।

“मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।”

अल्लामा इक़बाल की इस कविता से तो हम सभी रूबरू हैं। और इसे सुन कर तो मन में देशभक्ति और समानता की भावनाएं भी उमड़ कर बाहर निकलती हैं। लेकिन किसे पता था कि एक दिन भाषा के नाम पर हिन्दुस्तान में सियासी वार भयावह रूप ले लेगा।अगर आप सोशल मीडिया पर रोज़ाना दस्तक दे रहे हैं तो आपको पता ही होगा कि आजकल भारत में ट्रेंडिंग चर्चा का विषय फैब इंडिया नामक एक कपड़ों की बिक्री करने वाली ब्रैंड का विज्ञापन बना हुआ है।

बता दें कि ब्रांड फैब इंडिया ने हाल ही में अपने क्लोथिंग कलेक्शन के लिए एक विज्ञापन जारी किया था जिसका नाम जश्न- ए-रिवाज़  था। लेकिन जब विज्ञापन सोशल मीडिया पर जारी किया गया तब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने ब्रांड पर हिन्दू धर्म और दीपावली के त्योहार के असली अर्थ को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया है। नेताओं के साथ-साथ लोगों ने भी ब्रांड पर आरोप लगाया है कि उस विज्ञापन में उर्दू शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो दीपवाली जैसे पवित्र उत्सव और लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचा रहा है। पोस्ट पर काफी विवाद और बैकलैश झेलने के बाद फैब इंडिया ने पोस्ट को अपने सभी सोशल मीडिया एकाउंट्स से डिलीट कर दिया है। लेकिन अभी भी बॉयकॉट फैब इंडिया अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ट्रेंड कर रहा है।

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स्पष्टीकरण के बाद भी नहीं रुक रहा बवाल-

डिलीट हो चुके सोशल मीडिया पोस्ट में यह संदेश था , इस प्यार और प्रकाश के त्योहार के अवसर पर स्वागत करते हैं फैब इंडिया का नए कलेक्शन जश्न-ए-रिवाज़ का, एक ऐसा संग्रह जो खूबसूरती से भारतीय संस्कृति को श्रद्धांजलि देता है।

विज्ञापन में लिखा था, रेशम की सरसराहट… ज़री की चमक। गहनों की चमक… बालों में फूलों की खुशबू। मिठाई की मिठास और घर वापसी की खुशी। इस साल उत्सव की शुरुआत जश्न-ए-रिवाज से करें।  विवाद के बाद फैब इंडिया ने विज्ञापन हटा दिया है और एक स्पष्टीकरण जारी किया है जिसमें कहा गया है कि जश्न-ए-रिवाज ब्रांड के दिवाली कलेक्शन का विज्ञापन नहीं था; और ब्रांड का झिल मिल से दिवाली कलेक्शन अभी लॉन्च नहीं हुआ है।

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ट्विटर पर लगातार हो रहा सियासी वार-

बता दें कि इस विवाद की शुरूआत भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या के एक ट्वीट से हुई, जो पार्टी की युवा शाखा के प्रमुख भी हैं। सूर्या ने “हिंदू त्योहारों के अब्राह्मीकरण” के बारे में शिकायत करते हुए ट्वीट किया। उनकी मानें तो ऐसे विज्ञापन बनाकर ब्रांड देश में इस्लामी संस्कृति और उर्दू भाषा को बढ़ावा दे रही है और देश को हिंदुत्व पहचान से दूर भटका रही है। कपिल मिश्रा समेत कई अन्य नेताओं एवं ट्विटर यूज़र्स ने जमकर बॉयकॉट फैब इंडिया के नारे भी लगाए। इसके साथ ही लोगों ने फैब इंडिया पर जानबूझकर हिन्दू धर्म के त्योहार पर ऐसी पोस्ट बनाने का इलज़ाम लगाया है, इसके साथ ही फैब इंडिया के उपयोगकर्ताओं से ब्रांड से कोई भी कपड़ा न खरीदने की अपील भी की है।

 

धर्म के नाम पर कब तक उत्तेजित होते रहेंगे भारतीय?

लेकिन सोचने वाली बात तो यह है कि भारत के यही नागरिक जो अपने आप को धर्मनिरपेक्ष और हर भाषा, धर्म, जाति की इज़्ज़त करने का दावा करते हैं, वही भारतीय जश्न-ए-रिवाज़ नाम से इतने उत्तेजित हो गए कि बाकी देश वासियों की सहानुभूति लेने के लिए उन्हें सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा।

फैब इंडिया के समर्थन में उतरे कुछ लोगों का कहना है कि हमारे देश के लोगों ने इस्लामोफोबिया को इस प्रकार से अपने निजी जीवन में जकड़ लिया है कि उन्हें हर शब्द, हर त्योहार, हर नाम एंटी हिन्दू ही नज़र आता है। कुछ लोगों ने तो ऐसे उदाहरण भी दिए कि अगर भारत से उर्दू भाषा को हटा दिया जाएगा तो हमारी शब्दावली कैसी होगी।

“खुश”, “ज़िन्दगी”, “सवाल-जवाब”, “प्यार-मोहब्बत” जैसे आम दिनों में इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द भी उर्दू भाषा से ही निकल कर आते हैं। यहाँ तक कि “हिंदी” शब्द भी फ़ारसी-उर्दू भाषा की ही एक देन है। लेकिन ये सभी बातें उन लोगों को समझाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है जो एक व्यक्तिगत धर्म और समूह के बारे में एक निश्चित मानसिकता रख कर बैठे हुए हैं।

अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में क्या आगे भी लोग ऐसे ही उर्दू भाषा का बहिष्कार करने में जुटे रहेंगे या फिर समाज अपनी सोच में बदलाव लाएगा।

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