समाज में जाति आधारित बने ढांचे को तोड़ पाना इतना आसान नहीं जितना आसान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सफाई कर्मी के पैर धोकर यह संदेश देने का प्रयास किया था कि समाज में जातिवाद खत्म हो गया है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 2008-2009 के बीच सभी जातियों के लिए सफाई कर्मी की नियुक्ति करके जातिगत भेदभाव खत्म करने का प्रयास किया था। हालांकि इन दोनों नेताओं के इन कामों को राजनीति दांव से जोड़ा जाता है। सच्चाई यह है कि आज भी सफाई का काम दलित ही कर रहा है। इसमें जाति और पैसा की सत्ता कायम है।
बिसंडा ब्लॉक के गांव फुफुंदी में 31 साल के रामसुफल यादव बताते हैं कि उनके गांव में दुर्गेश कुशवाहा सफाई कर्मी नियुक्त हैं। कभी कभार ही गांव आते हैं। 13 मार्च को सुबह करीब 11 बजे आते थे। गांव के रहने वाले तीन जमादारों को बारह सौ रुपये पैसे दिए हैं। दारू पिलाया है और तब जाकर सफाई कर्मी आज सफाई कर रहे हैं। यह पहली बार नहीं है। दुर्गेश, कुशवाहा हैं वह कैसे भला सफाई कर सकते हैं।
सुनीता गांव में पंद्रह साल से रह रही हैं। रस्ते और गांव में गंदगी का अंबार है। उनको खुद सफाई करनी पड़ती है। जब शादी-ब्याह होता है तभी सफाईकर्मी दुर्गेश कुशवाहा गांव के जमादारों से सफाई करा देता है।
मैना उम्र 50 साल खुद सफाई करते हैं। गांव का प्रधान उस सफाईकर्मी को कभी सफाई करने को नहीं कहते तो वह कैसे कह सकते हैं। फिर वह भी सफाई कराने वालों को पैसा देता है।
अस्सी साल के रामदास दलित बस्ती में रहते हैं। उनका मोहल्ले में कौन सफाईकर्मी है उनको नहीं पता। उन्होंने अपने मोहल्ले में अब तक किसी भी सफाईकर्मी को सफाई करते देखा ही नहीं है।
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गोरेलाल उर्फ गोपी बताते हैं कि आज गांव के निवासी अमित के घर में शादी है तो उन्होंने बुलाया है सफाई करने के लिए। सफाईकर्मी दुर्गेश कुशवाहा आज उनको पैसा नहीं दिया। कई बार दूसरे गांव के सफाईकर्मी लाकर सफाई करा लेता है। वह अगर बीस हज़ार उनको दे तो वह सफाई कर सकते हैं। जब वह चालीस हजार वेतन पाता है तो बीस हज़ार दे दे न। पूरा गांव चमका देंगे।
सफाई कर्मी राजू प्रसाद कुशवाहा बिसंडा ब्लॉक के गांव लमेहटा में तैनात हैं। वह कहते हैं कि वह खुद सफाई का काम करते हैं किसी और से सफाई नहीं करवाते हैं। कोई चोरी और छिपी बात नहीं है। हमारे इस विभाग में सभी जाति के सफाई कर्मी हैं। उन सबके पास रोजगार नहीं था और रोजगार मिला है हमें तो पूरी जिम्मेदारी के साथ काम कर रहे हैं। भले वह खुद कुशवाहा हैं तो क्या हुआ वह किसी और से काम नहीं कराते।
बसपा सरकार में गांवों में सफाई कर्मियों की नियुक्ति हुई। बेरोजगारी से जूझ रहे तमाम उच्च जातियों के शिक्षित बेरोजगार युवाओं ने भी झाड़ू थामने से परहेज नहीं किया। स्नातक और परास्नातक भी सफाई कर्मी बन गए। लेकिन गांवों में झाड़ू लगाना उन्हें रास नहीं आया, झाड़ू तो असली सफाई कर्मी ही लगा रहे हैं। बांदा जिले की कुल ग्रामीण आबादी करीब 16 लाख है और यहां 744 सफाई कर्मी तैनात हैं।
इस मामले पर समाजसेवी रमावतार पंकज कहते हैं कि इस बात की सच्चाई है कि सफाई का काम वाल्मीकि समाज के लोग ही करते हैं। कागजी तौर पर भले ही हर जाति के लोग सफाई कर्मी हों। समाज में फैली यह एक ऐसी कुरीति है जिससे निकलना बहुत मुश्किल है।
जिला पंचायत राज अधिकारी अजय आनंद सरोज ऑफ कैमरा बताते हैं कि ऐसी कोई शिकायत नहीं आई उनके पास। मीटिंगों में हमेशा इस बात की जागरूकता की जाती है कि सफाई कर्मी खुद सफाई करें।
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