यूपी में पंचायती राज चुनाव को हुए लगभग 4 महीने हो चुके हैं। इसके बावजूद भी बाँदा जिले की बदौसा कस्बे में बनी नई दलित महिला प्रधान को औपचारिक तौर पर प्रधानी का चार्ज नहीं दिया गया है।
जिला बांदा| गांव की सरकार जनता इसलिए चुनती है कि ताकि उनके गांव का विकास हो। यह सरकार कई बार तो एक ही हाथ में चलती रहती है तो कई बार हर पंचवर्षीय में बदलती भी रहती है| लेकिन जब गांव की सरकार चुने हुए व्यक्ति को ही उसके अधिकार से वंचित रखे तो फिर गांव का विकास कैसे हो? ऐसा ही एक मामला है बदौसा कस्बे में देखने को सामने आया है।
नरैनी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाली बदौसा कस्बे कि वर्तमान दलित महिला प्रधान सरोज सोनकर ने 18 सितंबर 2021 को अतर्रा तहसील में डीएम को दरखास देकर बताया कि उसे प्रधान बने लगभग 5 महीने हो गए हैं। इतना समय बीतने के बावजूद भी अभी तक उसे प्रधानी का चार्ज नहीं मिला है। जिससे वह ग्राम पंचायत के काम करवाने में बहुत ही असमर्थता महसूस कर रही है।
डीएम के आदेश के बाद भी नहीं मिला चार्ज
डीएम ने महिला की शिकायत सुनते ही आदेश दिया कि 1 हफ़्ते के अंदर उसे प्रधानी का चार्ज दिया जाए। अगर इतने दिन में चार्ज नहीं दिया जाता तो वह महिला प्रधान एफ.आई.आर दर्ज करवा सकती है। बीते 25 सितंबर को एक हफ़्ता पूरा हो चुका है लेकिन अभी तक इस मामले में किसी भी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
पुराने प्रधान के इशारों पर चलते हैं सचिव – नई प्रधान सरोज सोनकर का आरोप
प्रधान सरोज सोनकर बताती हैं कि उनके ग्राम पंचायत में पिछले 25 सालों से प्रधानी लालचंद्र के घर में ही रही है। लेकिन इस पंचवर्षीय में जनता की सहमति से बदलाव हुआ है। इस बार वह प्रधान चुनी गई हैं। उन्होंने जनता से वादा किया था कि वह गांव के विकास के कामों को करवाने की भरपूर कोशिश करेंगी और हमेशा जनता के साथ खड़ी रहेंगी।
5 महीने बीतने वाले हैं लेकिन अभी तक उसे विभागीय लापरवाही के चलते प्रधानी का चार्ज तक नहीं मिला है। सचिव पुराने प्रधान को ही अभी भी प्रधान माने बैठे हैं। उसी के इशारों पर नाच रहे हैं। इतना ही नहीं ब्लॉक स्तर के अधिकारी बीडीओ और एडिओ भी पुराने प्रधान के इशारे पर काम करते हैं। इसकी शिकायत पहले भी सरोज ने डीएम से लेकर कमिश्नर तक कर चुकी हैं लेकिन किसी भी तरह की कोई सुनवाई नहीं हुई है।
वह आगे बताती हैं कि उनके यहां का बहुत-सा विकास का कार्य रुका हुआ है जिसको करवाने के लिए उन्होंने सोचा था और जीत हासिल की थी। उन्होंने यह भी बताया कि पंचायत भवन में सारी सरकारी सुविधाएं होती है। जैस लैपटॉप, पानी के लिए टैंकर की व्यवस्था, कूड़ा फेंकने के लिए ई रिक्शा होता है और खेलकूद का समान भी होता है पर यह सारा सामान पंचायत भवन में नहीं है। ना ही उन्हें दिया जा रहा है।
विकास कार्य के लिए खुद की तरफ से लगाए 4 लाख रूपये
जब से वह जीती हैं वह प्राइवेट सेक्टर से सामान लेकर काम करवा रही हैं और अपना खुद का पैसा लगाया है। वह बताती हैं कि उन्होंने इन बीते महीनों में उन्होंने अपने घर से 4 लाख रूपये लगाकर बदौसा कस्बे का कार्य कराया है। जिसमें उन्होंने नाले की सफाई करवाई है, कुछ सड़के बनवाई है जो अधूरी पड़ी हुई थी। टैंकर से घर-घर पानी पहुंचाने का काम किया है क्योंकि पानी की पाइपलाइन टूटी हुई है। उनके द्वारा मातृत्व कार्यक्रम करवाया गया है और प्रधानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। इस तरह के बहुत सारे काम हुए हैं जिसमे बहुत पैसे खर्च हुए हैं।
अनुसूचित जाति की होने की वजह से हो रहा भेदभाव – आरोप
सरोज बताती हैं कि विभागीय टीम बनी हुई है जो पूरा सांठगांठ कर रही है और उनको चार्ज नहीं दे रही है। ऊपर से सचिव द्वारा झूठ लिखकर भेज दिया जाता है कि यह कार्य करवाया गया, वह कार्य किया गया है। इससे उनको बहुत ज़्यादा निराशा होती है। वह कहती हैं कि एक तरफ सरकार छुआछूत और ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं करती, समानता की बात करती है तो वहीं दूसरी तरफ उनके साथ कुछ ऐसा ही व्यवहार हो रहा है। वह अनुसूचित जाति से संबंध रखती हैं। वह काफी परेशान हैं। उनका कहना है कि जितना उनके पास पैसा था उन्होंने खर्च करके काम करवा दिया है। अब आगे की स्थिति उनकी ठीक नहीं है। जनता ने उन्हें जिताया है तो जनता तो उनसे कहेगी और वह जनता को जवाब भी नहीं दे सकतीं। वह कहती हैं कि वह क्या करें, चार्ज ही नहीं मिल पा रहा जिससे वह काम करा सकें।
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सचिव में आरोपों को किया खारिज़
बदौसा के सचिव योगेश कुमार से खबर लहरिया ने बात की। वह कहते हैं कि नई प्रधान को चार्ज मिला हुआ है। काम भी हो रहा है। अभिलेख सचिव के पास रहते हैं इसलिए वह अभिलेख उनको नहीं दिये जाएंगे। बाकी जो सामग्री है वह उनको दे दी गई है। ई रिक्शा टूट गया था तो वह बनवा लें। ऐसा कुछ नहीं है कि उनको चार्ज नहीं मिला और काम नहीं हो पा रहा है। यह सब गलत आरोप है।
हो रहे हैं सारे काम- नरैनी बीडियो
खबर लहरिया ने नरैनी ब्लॉक बीडियो मनोज कुमार से भी मामले को लेकर बात की। उका कहना था कि अभिलेख सचिव के पास रहते हैं। कुछ जो उनको मिलने चाहिए वह फोटो कॉपी करवा ली गई है और उन्हें दे दिए जाएंगे। चार्ज मिलने की प्रक्रिया शुरू है और काम भी हो रहे हैं। टैंकर वगैरह सब उनको दे दिए गए हैं और कुछ काम भी हो गए हैं जिसके भुगतान भी हुए हैं। अगर कुछ समस्या है तो दिखवा लिया जाएगा।
एक तरफ सचिव कहते हैं कि नई प्रधान को चार्ज मिल गया है वहीं बीडियो कहतें हैं कि चार्ज देने की प्रक्रिया शुरू है। आखिर इनमें से कौन सच बोल रहा है?
क्या प्रधानी का चार्ज न देने का कारण महिला प्रधान का अनुसूचित जाति से संबंधित है? अगर ऐसा नहीं है तो 4 महीने बीतने के बाद भी नई महिला दलित प्रधान को चार्ज क्यों नहीं दिया गया?
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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