वाराणसी जिले के बेनिया बकरा मंडी में अल्लाह और मोहम्मद नाम के तोतापुरी नस्ल के बकरे लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनकी कीमत लगभग 6 लाख रूपये बताई जा रही है।
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वाराणसी जिले के बेनिया बाग बकरा मंडी की तस्वीर, मंडी के सामने लगे बैनर पर बकरे की तस्वीर के साथ ईद की बधाई की लिखी हुई है
ईद उल-अज़हा (Eid-Ul-Adha) को “बलिदान का त्योहार” या बकरीद के रूप में भी जाना जाता है। यह त्योहार इस बार 29 जून को मनाया जाएगा। यह दुनिया भर में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण इस्लामिक त्योहारों में से एक है।
बलिदान के त्यौहार को देखते हुए जिसमें बकरे की कुर्बानी दी जाती है, बाज़ार में इनकी कीमत हज़ार से लाखों के बीच है। वाराणसी जिले के बेनिया बाग बकरा मंडी में अल्लाह और मोहम्मद नाम के तोतापुरी नस्ल के बकरे लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनकी कीमत लगभग 6 लाख रूपये बताई जा रही है।
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मंडी में हज़ार से लाखों के बीच बिक रहे बकरे
बेनिया बाग बकरा मंडी में आये आजमगढ़, मोहम्मदपुर के व्यापारी परिमल कुमार बताते हैं, अल्लाह और मोहम्मद लिखे हुए बकरों की उम्र 3 साल है व वज़न 110 किलो है। इन्हें रोज़ 100 ग्राम काजू, बादाम, रोटी, दाल और हर तरह की सब्ज़ी खिलाई गई है। इन बकरों की कीमत 6 लाख है।
आगे बताया मंडी में बीटल नस्ल के बकरे की कीमत 80 हज़ार व राजस्थान के सिरोही मेवाती बरबरी नस्ल के बकरे की कीमत 25 हज़ार से 1 लाख है। वहीं शमशेर सल्लू की जोड़ी 90 हज़ार की है जबकि देसी बकरे 5 हज़ार से 10 हज़ार रूपये की कीमत में बिक रहे हैं।
लहसुन-अदरक भी हुए महंगे
बकरीद को देखते हुए लहसुन, अदरक और प्याज की कीमत भी बहुत ज़्यादा हो गई है। पहाड़िया मंडी के राहुल जयसवाल कहते हैं कि 15 से 20 प्रतिशत ज़रूरत बड़ी है। फुटकर में लहसुन-प्याज 120 से 140 रूपये किलो हैं। वहीं प्याज़ 20 से 25 रूपये किलो, अदरक 250 से 300 रूपये किलो बिक रहे हैं।
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क्यों बनाई जाती है बकरीद?
इस्लाम धर्म के प्रमुख पैगंबरों में से हजरत इब्राहिम एक थे इन्हीं की वजह से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई। इस्लाम धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार पैगंबर ने हजरत इब्राहिम से सबसे प्यारी चीज का त्याग करने का कहा तो उन्होंने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। कहा जाता है कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे, उसी वक्त अल्लाह ने उनके बेटे को दुम्बा (सउदी में पाई जाने वाली भेड़ की नस्ल) बदल दिया और वो कुर्बान हो गया। इसके बाद से कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई फिर तभी से दुम्बा की तरह बकरे की कुर्बानी दी जाती है।
बकरे को कई हिस्सों में बांटा जाता है
बताया जाता है कि बकरीद के दिन जिस बकरे की कुर्बानी दी जाती है उसे तीन भागों में बांटा जाता है। इसमें एक हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। वहीं एक हिस्सागरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है और तीसरा परिवार के लोगों को दिया जाता है।
इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गई है।
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