बांदा| भले ही पूरा देश कोरोना और अर्थ व्यास्था से जुझा हो लेकिन दिवाली उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है.लेकिन इस त्योहार को वह बीना पटाखों के पूरा नहीं मानते हैं| बच्चे हो या बड़े दिवाली आते ही इतना उत्साह हो जाते है कि हप्तो पहले से पटाखे छुटाना शुरु कर देते हैं| जबकि पटाखे रसायनों से बने होते हैं, जिनको जलाने से ध्वनी और वायू प्रदुषण फैलता है |
इस पर जब हमने कबरेज किया और लोगों से बात चीत की तो जहां बड़े लोग कोरोना के डर और वातावरण गंदा ना हो इसलिए वह इस साल बिना पटाखों की दिवाली मनाने की बात कर रहे थे वही बच्चे पटाखों को लेकर बहुत ही उत्साहित थे और बोल रहे थे कि वह किस किस तरह से पटाखे छूट आएंगे| इतना ही नहीं बल्कि अभी दिवाली के 2 दिन बाकी है लेकिन पटाखों की आवाज है आज से ही जोरों पर है जबकि इससे कई तरह के खतरे भी होते हैं| लेकिन दिवाली एक ऐसा त्यौहार है जिसको बिना पटाखे के लोग मनाना ही नहीं चाहते|
जबकि दिवाली रोशनी का त्योहार और बुराई पर अच्छाई का प्रतिक माना जाता है| लेकिन यहां खर्च लोग त्योहार के कपडों और घर की सजावट से ज्यादा पटाखों में करते हैं. जबकि ये बहुत ही हानिकारक और क्षति पहुचाने वाले होते हैं| साथ ही पर्यावरण को प्रभावित करते हैं|
जमीनी स्तर पर जानलेवा बनता जा रहा प्रदूषण