खबर लहरिया Blog बुंदेलखंड का यह रिवाज, जो घोलता है दिलो में मिठास

बुंदेलखंड का यह रिवाज, जो घोलता है दिलो में मिठास

बुंदेलखंड भांति-भांति की परम्पराओं के लिए जाना जाता है। शादी -विवाह से लेकर हर छोटे बड़े कामों के लिए यहाँ कई तरह के रीति रिवाज हैं उन्हीं में से एक है अंकरी बनाना। अब आप सोच रहे होंगे की अंकरी क्या है? इसके बारे में जानने के लिए आपको पूरा आर्टिकल पढ़ना होगा। आइये विस्तार से जानते हैं।

जिला बांदा। भारत एक कृषि प्रधान देश है और किसानों के लिए आषाढ़ का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने से वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है और किसानों के खेती के काम की शुरुआत भी। इस महीने में महिलाएं खेती किसानी के साथ-साथ घर के बाहर खाना बनाने और घूमने में मजे भी करती हैं। आषाढ़ के महीने का सबसे बड़ा और मेन त्योहार किसानों का अदरा होता है जिसमें चने और गेहूं की कोहरी बनती है। और उसी दिन से किसान हल बैल की मुठिया पकड़ते हैं और खेतों को संवारने का और ज्वार, मूंग, उड़द, तिल और धान जैसी बुवाई के काम की शुरुआत करते हैं।

बुंदेलखंड की परम्परा है अंकरी बनाना

बुंदेलखंड में इस महीने को आग की मानता का महीना भी कहा जाता है इसलिए महिलाएं घर में चूल्हा नहीं जलाती। आषाढ़ के महीने में जितने भी सोमवार पड़ते हैं ज्यादातर महिलाएं घर के बाहर खेतों खलिहानों और मंदिरों में जाकर के खाना बनाती हैं। वहां भी महिलाएं तंवर नहीं चलाती आटा गूंज कर रोटी को हाथ से मोटी मोटी पोती हैं। और आग का बड़ा सा धारा लगाती हैं और उसमें मोटी रोटियों को डाल कर सेंकती हैं। अच्छे से सेंक हो जाने के बाद आम के पना या आटे के हलवा के साथ मजे से खाती हैं और परिवार को खिलाती हैं। इस महीने में आम का भी दौर होता है इसलिए वह भी आसानी से मिल जाता है।

अंकरी का त्योहार बनाती महिलाएं

 

कहते हैं कि घर के बाहर जब खाना बनाया जाता है तो उसको ज्यादातर मीठी चीज में खाया जाता है इसलिए भी महिलाएं आम का पना और आटे का हलवा बनाती हैं। सच में यह खाना बहुत ही स्वादिष्ट होता है जहां आप घर में दो रोटी खा रहे होंगे वहां मोटी मोटी अंकारी चार खा लेते हैं और भीड़ भाड़ में बाहर के खाने का मजा ही कुछ और होता है। वैसे तो बुंदेलखंड में कई तरह की चीजें मशहूर हैं, लेकिन यहाँ के लोग अलग-अलग तरह के पकवान खाने और बनाने के लिए भी देशभर में मशहूर हैं। अंकरी बनाना और खाना भी बुंदेलखंड की कुछ पुरानी और मज़ेदार परम्पराओं में से एक है। यहाँ पर आज भी बुजुर्ग लोग जून-जुलाई के महीने में कन्ना लेकर आग बनाते हैं और फिर अंकरी बनाकर पूरा परिवार एक साथ बैठ कर खाता है।

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आँखों देखी कहानी, उन्हीं की जुबानी

19 जुलाई को मैं घर से खेत के लिए निकली तो मैंने देखा कि खेतों में महिलाएं किस तरह से खाना बना रही हैं। उनकी वह सुंदर-सुंदर हाथ की बनी पूरी रोटी देखकर मेरा तो मन ललचा रहा था। लग रहा था मैं भी खा लूं लेकिन मैंने किसी तरह अपने को रोका। उन महिलाओं ने मुझसे बात की और मुझे कहा भी कि आप भी बैठ जाइए और इस खेत के बने अदाढ़े के अंकरियों का मजा लीजिए। जब मैंने उस गोमती नाम की महिला से पूछा जो अंकारी बना रही थी कि ऐसा क्यों है कि यह इतनी स्वादिष्ट बनी है और खेतों में क्यों बना रही हैं तो उसने हंसते हुए बताया कि आज सोमवार का दिन है और यह सोमवार अषाढ़ महीने का लास्ट सोमवार है इसके बाद सावन लग जाएगा तो फिर बाहर बनाने खाने का मौका नहीं मिलेगा। यही एक महीना है जब वह बाहर के खाने का मजा लेते हैं। घर में तो हर रोज बनाते खाते हैं। इसलिए वह हर साल सालों भर अषाढ़ के इस महीने का इंतजार करती है और इस महीने में जितने भी सोमवार पड़ते हैं हमेशा वह कहीं मंदिरों में तो कहीं अपने खेतों में आकर के खाना बनाती और खाती हैं।

इसके बाद में अतर्रा चली गई और मुझे इस इलाके से उस इलाके के रीतिरिवाज को भी जोड़ना था इसलिए मैं पहले मुरवां गांव गई विधायक से बात करने और जब मैं विधायक के घर से निकली तो वहां जो महिलाएं बना रही थी फिर मैं वापस नरैनी आकर अतर्रा गई। लगभग 4:30 बज रहा था तो मैंने देखा की गौरा बाबा में बहुत ज्यादा भीड़ लगी है। महिलाएं बच्चे और पुरुष ट्रैक्टर में भरकर जा रहे हैं। मैंने रिक्शेवाले से पूछा कि आज इस मंदिर में इतनी ज्यादा भीड़ क्यों है? रिक्शेवाले ने बताया कि मैडम आज आषाढ़ महीने का लास्ट सोमवार है इसलिए यहां पर मेला लगा हुआ है। और दूर-दूर से लोग अंकरी बनाने आई हैं। जब मैं अंदर गई तो खाना पकाना तो हो चुका था। सब लोग अपने-अपने घरों को सामान समेट-समेटकर निकल रहे थे। कुछ लोग रिक्शे में बैठकर कुछ लोग पैदल जा रहे थे और कुछ महिलाएं मेले में सामान खरीद रही थी।

छोटे-छोटे बर्तनों की दुकान में खड़ी एक महिला शांति से जब मैंने पूछा कि आज यहां कहां आई थी तो उसने बताया कि वह अतर्रा कस्बे की रहने वाली है और आज पांचवा सोमवार है इसलिए गौरा बाबा में पूरे परिवार के साथ अंकरी बनाने खाने आई थी। इसके पहले वह अपने घर के बगल में बगीचे में या घर के बाहर खेत के पास बना खा चुकी हैं। आज वह बहुत खुश हैं क्योंकि वह बनाने खाने के बहाने गौरव बाबा मंदिर घूमने आई हैं। और उसी के साथ-साथ यहां पर जो छोटी-छोटी दुकानें लगी है उससे कुछ-कुछ सामान भी घर गृहस्थी के लिए खरीद रही है। 4 लोगों की भीड़ में लोगों से मिलने जुलने का मजा ही अलग आता है और वह इन सब चीजों से बहुत खुश होती हैं। क्योंकि घर के अंदर चार दीवारों में तो जल्दी किसी से मिलना जुलना होता नहीं है। यहां पर एक अलग ही माहौल है इसलिए वह बहुत खुश हैं।

सावन यानी कजलियाँ बोने का महीना

वहीँ खड़ी एक बुजुर्ग महिला जिसका नाम कमला था उससे मैंने कहा कि यह महीना इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है उसने कहा यह महीना महत्वपूर्ण है ही क्योंकि यह अन्न दाताओं का महीना है। इस महीने से बीज जमीन में डालने की शुरुआत होती है जिससे पैदावार अच्छी होती है। और उस अच्छी पैदावार के होने से किसानों के साथ-साथ आम जनता को भी खाने के लिए भरपूर अनाज मिलता है। इसीलिए तो यह किसानों के लिए और आम जनता के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण महीना होता है।

अब त्योहारों की भी धूम शुरू हो गई है अगले सप्ताह से सावन लग जाएगा तो सावन के महीनों में सोमवार होंगे। उसमें भी महिलाएं शिवजी का व्रत रखेंगी। फिर नाग पंचमी आएगी जिसमें चने की दाल की बड़ी बनाएंगे और फिर गेहूं की कजलियां बोई जाएगी और वह कजलियां 7 दिन में इतनी सुंदर और बड़ी-बड़ी हो जाती हैं की हरियाली की शुरुआत पूरी तरह सुनहरी लगने लगती है। और फिर रक्षाबंधन आता है। इस तरह से 2 महीने तक लगातार त्यौहार चलते रहते हैं इसलिए आषाढ़ का महीना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस महीने में रिमझिम बारिश के साथ खेतों में हरियाली और आसमान नीला होने के साथ पानी की खबरों का मजा ही कुछ और होता है। हर तरफ पेड़-पौधे अपनी हरियाली की सुंदरता से लोगों का मन मोह लेते हैं।

इस खबर की रिपोर्टिंग खबर लहरिया के लिए गीता देवी द्वारा की गयी है। 

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