गांव का भार शब्द सुनकर चना, लाई, जौ की सोंधी खुशबू हमारे दिमाग में बस जाती है, और हम सबका बचपना याद आ जाता है कि कैसे हम सब गांव के बच्चे, माँ से जिद करके चावल और चना झोले में रखवाकर पहुँच जाते थे। बारिश हो या धूप भार जाने के लिए कभी न नहीं किया। इसकी वजह भी है कि गांवों में ज़्यादातर चाय और यही सब भुनी हुई चीजे नाश्ते में मिलती हैं। आज इस वीडियो से मुझे मेरा बचपना याद आ गया। यह गाँव की ख़ासियत आज भी बरकरार है।
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त्यौहारों में पूरे दिन भार जलता रहता है। जैसे हाल ही में हरछठ का त्यौहार था तब कई लोग चना चावल जैसे कई और चीजें भुनवाते हैं। कहते हैं जैसे गाँवो में राजनीति होती है वैसे अब भार में भी होने लगी है। जितना चावल भुनवाने के लिए ले जाओ, उसका आधा हिस्सा तो भुजौनी ही ले लेते हैं।
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जिला बांदा गांव पिपरगांव के लोगों ने बताया है कि आज की बहुरि खास कर अच्छी होती है। रानी ने बताया है कि यह हमारी रोजी-रोटी है और हम लोग यही काम करते हैं। अच्छा लगता है कि लोग हमारे द्वार पर आते हैं। इसी बहाने लोगों से मुलाक़ात हो जाती है। भुजाने वाले लोगों ने बताया कि पहले की अपेक्षा अभी कम हो गया है। अब अन्ना जानवरों के डर से लोग मक्का, अरहर की बुवाई नहीं करते हैं। चना भी कम ही उगाया जाता है लेकिन त्योहारों में तो हमेशा बहुरि भुजाते हैं।
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