खबर लहरिया कोरोना वायरस कोविड-19 ने बदला मुहर्रम मनाने का तरीका

कोविड-19 ने बदला मुहर्रम मनाने का तरीका

इस्लाम धर्म में मुहर्रम के महीने से नए साल की शुरुआत होती है। मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए रमज़ान के बाद मोहर्रम का महीना ही सबसे पवित्र माना जाता है। इस महीने की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। मुस्लिम समुदाय का सुन्नी समाज इस महीने को नए साल की ख़ुशी और इमाम हुसैन के जंग में पीछे न हटने की बहादुरी के तौर पर मनाता है लेकिन वहीँ शिया समाज के लिए ये गम और दुःख से भरा महीना होता है। ये लोग इमाम हुसैन के साथ-साथ जंग में शहीद हुए 72 लोगों की याद में हर साल मुहर्रम की 10 तारिख को ताज़िये बनाकर कर्बला तक लेकर जाते हैं और शोक ज़ाहिर करते हुए महिलाएं और पुरुष इमाम हुसैन की याद में मातम भी करते हैं।

आज है रोज़-ए-आशुरा यानी मोहर्रम की 10 तारीख, लेकिन कोरोना काल के चलते प्रशासन ने पिछले दो सालों से ताज़िये निकालने, सड़कों पर मजलिस या मातम करने पर पाबंदी लगा दी है। ऐसे में क्या मोहर्रम की पहले जैसी रौनक में कमी आई है? आइये जानते हैं।

कोविड-19 के आने से हर पर्व हर दिन का मानो मकसद ही बदल गया है लेकिन ऐसे हालात में ज़रूरी है कि हम कोरोना के प्रोटोकॉल्स का पालन करते हुए ही कोई भी ख़ुशी या गम का दिन मनाएं और आशा करें कि जल्द से जल्द कोरोना महामारी को पीछे छोड़ हम वापस जीवन जीने के पुराने ढंग में लौट सकें।

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