खबर लहरिया Blog दिल्ली के अफगानी कॉलोनी के लोगों में दहशत, बस चाहते हैं अपने परिवार की सलामती 

दिल्ली के अफगानी कॉलोनी के लोगों में दहशत, बस चाहते हैं अपने परिवार की सलामती 

पिछले 15 दिनों में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल के साथ-साथ कई और प्रमुख प्रांतों पर कब्ज़ा कर लिया है। हेलमंद प्रोविंस की राजधानी लश्कर गाह, अफ़ग़ानिस्तान का सांस्कृतिक केंद्र कहे जाने वाले हेरात और देश का दूसरा सबसे बड़ा शहर कंदहार भी अब तालिबान के कब्ज़े में है। 

रिपोर्ट्स के अनुसार अपने घरों से बेघर हुए लोगों में 80 प्रतिशत महिलाएं हैं। इन महिलाओं के साथ शोषण और हिंसा के भी कई मामले अबतक सामने आ चुके हैं। जहाँ कुछ दिन पहले तक देश के आतंरिक हिस्सों से लोग अपने बचाव के लिए काबुल की ओर पलायन कर रहे थे वहीँ 16 अगस्त को अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ के चले जाने के बाद से चारों ओर अफरा तफरी का माहौल है। 

जहाँ अलग-अलग देशों की सरकारें अब अपने नागरिकों को सुरक्षित घर वापस लाने के लिए हवाई जहाज़ भेज रही हैं, वहीँ अफ़ग़ानिस्तान के नागरिक इस समय अपने आप को पूरी तरह से असहाय महसूस कर रहे हैं। हाल ही में हमने कुछ ऐसी तस्वीरें और वीडियोज़ भी देखे जहाँ काबुल अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लाखों की तादाद में लोग जहाज़ पर चढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे थे। 

ऐसे हालातों में अपनों से दूर दूसरे देशों में सुरक्षित जगहों पर मौजूद अफ़ग़ानी परिवारों पर क्या बीत रही होगी, इसका पता लगाने हम पहंचे दिल्ली के लाजपत नगर की अफ़ग़ानी कॉलोनी। जहाँ दिल्ली के बाकी इलाकों में लोग अपने कामों में व्यस्त थे, वहीँ इस इलाके की शांति, लोगों के चेहरों की शिकन यह साफ़ दर्शा रही थी कि ये लोग कितनी दहशत में हैं। पिछले कुछ दिनों से दिल्ली और एन सी आर में मौजूद न्यूज़ संस्थाएं लगातार यहाँ आकर इन लोगों से वो सवाल कर रही थीं जिसके जवाब शायद ही इन्हें मालूम थे।

“मैडम, हमारे पास कुछ नहीं है आपको बताने के लिए। आप किसी और से बात कर लीजिए”, मेडिकल स्टोर पर बैठे एक युवक ने हमसे कहा। उसकी झिझक से ही हमें एहसास हो गया था कि ये लोग इस समय कितना डरे हुए हैं। “मेरे पापा ने कुछ भी बोलने से मना किया है”, बगल के होटल में रोटी बना रहे एक किशोर ने कहा। इस इलाके में मौजूद ज़्यादातर लोग अपनी परेशानियां भुलाकर अपने आप को काम में व्यस्त रखने की कोशिश कर रहे थे। इन लोगों के परिवार अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में हैं, वो ठीक हैं या नहीं, क्या ये लोग कभी उनसे मिल पाएंगे, क्या इनका देश पहले जैसा हो पाएगा? मन झिंझोड़ देने वाले इन सभी सवालों का सामना करने से इन लोगों का कतराना हमें लाज़मी लग रहा है। 

पास के ही किराने की एक दूकान में काम कर रहे एक युवक ने हमें बताया कि वो पिछले 8 सालों से अपने परिवार से दूर भारत में रह रहे हैं। उनके माँ-बाप ने अपने बेटे की जान बचाने के लिए उन्हें यहाँ तो भेज दिया लेकिन खुद पूरा परिवार अफ़ग़ानिस्तान के जुस्जान नामक एक छोटे से शहर में रह गया। “मेरे ऊपर इस समय क्या बीत रही है, यह मेरे दिल में ही दबा रहे तो ज़्यादा बेहतर होगा।” नम आँखें लिए खड़े इस युवक ने कहा। उन्होंने बताया कि फिलहाल तो वो अपने परिवार वालों से बात कर पा रहे हैं लेकिन दिन ढलते ही उनके क्षेत्र में इंटरनेट और नेटवर्किंग की सुविधा ठप्प हो जाती है। उनके परिवार ने कई बार काबुल में मौजूद इंडियन एम्बेसी में भी संपर्क करने की कोशिश करी लेकिन वहां ज़्यादातर एम्बेसियों को अब बंद कराया जा रहा है। “मेरे तो पिता, माँ, भाई, बहन सभी लोग डर से घर में बंद हैं। अगर उन्हें कुछ भी हो गया तो फिर मेरा इस दुनिया में कोई नहीं बचेगा।” हताश होकर युवक ने कहा। 

 


एक अफघानी रेस्टोरेंट में काम कर रहा व्यक्ति पिछले 3 सालों से भारत में है। वो अपने और अपने परिवार को एक बेहतर भविष्य देने के लिए अपना देश छोड़ अपनी पत्नी और एक बच्चे के साथ दिल्ली आया था। पाकिस्तान के बॉर्डर से लगी नांगरहार प्रोविंस के रहने वाले इस व्यक्ति का बाकी का पूरा परिवार फिलहाल कहाँ है, किस हाल में है, यह इन्हें भी नहीं पता। “मैंने अपने घर पर डेढ़ हफ्ता पहले बात करी थी, और फिर वहां पर इंटरनेट शटडाउन हो गया। हम इस समय इतने मजबूर हैं कि हमारे पास न ही अपने परिवार की सलामती की खबर है और न ही अपने देश वापस लौटने का विकल्प है।”

उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान से ही रेडियो प्रोडक्शन का एक कोर्स किया था और वो इसी फील्ड में करियर बनाना चाहते थे लेकिन फिर उनके देश में हालात बिगड़ने लगे और ज़्यादातर रेडियो एजेंसियों को बंद कराया जाने लगा। सालों नौकरी करने के बावजूद भी उन्हें किसी प्रकार का अनुभव प्रमाण पात्र नहीं दिया गया। भारत में भी उन्होंने कई जगहों पर नयी नौकरी तलाशी लेकिन हाँथ में बिना किसी अनुभव पत्र के एक अफ़ग़ानी व्यक्ति को नौकरी देना किसी भी संस्था ने ठीक नहीं समझा। वो तीन सालों से इसी रेस्टोरेंट में काम कर रहे हैं और उनकी पत्नी घर पर ही आसपास के लोगों के कपड़े सिलकर थोड़े बहुत पैसे जोड़ रही हैं।

 

“मेरी एक बार उनसे बात हो जाती, मुझे यह पता चल जाता कि वो लोग सुरक्षित हैं, तो मेरे दिल को तसल्ली हो जाती। भारतीय सरकार भी सिर्फ अपने नागरिकों को वापस बुला रही है। अफ़ग़ानिस्तान में फंसे लोगों ने आखिर क्या गलती करी है, जो इस आतंकवाद की सज़ा उन्हें मिल रही है? क्या विश्व भर की सरकारों को एकजुट होकर हमारी मदद नहीं करनी चाहिए?”, उस व्यक्ति का दुःख उसकी बातों में साफ़ झलक रहा था। 

 

तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच इस जंग का क्या है कारण? 

11 सितम्बर, 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकवादी हमले को अबतक का सबसे बड़ा टेररिस्ट अटैक माना जाता है। 20 साल पहले अल-क़ाएदा द्वारा हुए उस हमले में मौजूद 19 आतंकवादियों में से एक भी अफ़ग़ानिस्तान का नागरिक नहीं था, लेकिन इसके बावजूद भी इस हादसे के कुछ ही हफ़्तों बाद ही अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद आतंकवादियों और तालिबान के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। 

साभार: BBC

अमेरिका और तालिबान के बीच सालों से चली आ रही इस जंग में अबतक लाखों निर्दोष अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों ने अपनी जानें गंवाईं। जगह-जगह बम विस्फोट, बन्दूक से निकल रही गोलियों की आवाज़ें इन बेक़सूर लोगों के आम जीवन का एक हिस्सा बन गया था। और उसी के परिणाम स्वरूप कुछ परिवारों ने अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें दूसरे देशों में भेजना शुरू कर दिया। कई परिवारों ने तो इन बीते 20 सालों में एक देश से दूसरे देश पलायन कर एक नया जीवन शुरू करने की कोशिश करी लेकिन अफ़ग़ानी होने के कारण न ही उन्हें कोई रोज़गार मिलता और न ही रहने का ठिकाना। 

फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान ने सालों पुरानी अपनी इस लड़ाई को ख़तम कर समझौता तो कर लिया लेकिन उसके बाद शुरू हुआ आतंक, हत्याओं और तबाही का वो सिलसिला जो आज पूरी दुनिया के लिए चर्चा का विषय बन गया है। तालिबान का अगला लक्ष्य अब पूरी तरह से अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करना था। बीते डेढ़ सालों में तालिबान और अफ़ग़ानिस्तान सेना के बीच जंग बढ़ती ही गयी। इस बीच अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे लाखों लोग अपनी और अपने परिवार की जानें बचाने के लिए जद्दोजहद करते रहे। 

द अफ़ग़ान नामक एक न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 की शुरुआत से अबतक लगभग 4 लाख लोगों को उनके घर से अलग कर दिया गया। साल 2020 में 2.9 मिलियन अफ़्ग़ानियों को ज़बरदस्ती देश भर में आंतरिक रूप से विस्थापित कर दिया गया था। 

अफ़ग़ानी कॉलोनी में रिपोर्टिंग के दौरान हमने देखा कि यहाँ मौजूद लोग कैसे अपनों से बात करने के लिए तड़प रहे हैं। इन लोगों की बातों ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि तालिबान और आतंकवाद के बीच ये लाखों निर्दोष लोग आखिर क्यों पिस रहे हैं? ये लोग जो अपने देश की सरकार पर निर्भर थे, आज उसने भी अपनी जनता से मुंह मोड़ लिया है। ऐसे में क्या संयुक्त राष्ट्र का भी यह फ़र्ज़ नहीं बनता कि वो इन मासूम जानों को बचा सके? अमेरिका जो इस समय विश्व का सबसे शक्तिशाली देश माना जाता है, आखिर क्यों वो मानवीय आधार पर भी अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे लोगों की मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा?