बकरीद की चकाचौंध, सेवइयां और बिरयानी खाने की उत्सुकता, नए कपड़े पेहेन्ने की ख़ुशी, इन सभी चीज़ों का इंतज़ार हम साल भर करते थे। और हफ़्तों पहले से कुर्बानी की तैयारियां और घर में सफाई अभियान शुरू हो जाता था। साल में ये दो ही तो मौके आते थे जब हम अमीर, गरीब, दोस्त, दुश्मन की परवाह किए बगैर हर किसी से गले मिलते और अपने सारे गिले शिकवे दूर करते। लेकिन कोरोना काल के बाद बाकी सभी त्याहारों की तरह ईद उल फितर और ईद उल अदहा का मानो मकसद ही बदल गया। लोगों के रोज़गार चले गए, लोगों ने एक दुसरे से हाँथ मिलाना गले मिलना बंद कर दिया। ऐसे में न जाने कितने परिवार इस बकरीद भी अपने बच्चों को नए कपड़े नहीं दिला पाए और ही न ही कुरबानी करवा पाए। इनके लिए यही ख़ुशी की बात है कि इन्हें मस्जिद में जाकर एक साथ नमाज़ पढ़ने का मौका मिल रहा है।
भले ही ये परिवार अपने बच्चों को ईद के दिन वो ख़ुशी न दे पाए हों, जिसकी उन्हें कल्पना थी लेकिन इन त्योहारों का मकसद अंधेरे में दीप जलाना ही तो होता है। जिसमें हम अपने सारे दुःख भूल कर एक दिन के लिए ही सही पर जम कर खुशियां मनाते हैं। तो आप भी इस बकरीद अपने परिवार के साथ ही ईद की सेवइयों का मज़ा लीजिए और ये आशा करिए कि जल्द ही हमें इस महामारी से छुटकारा मिल सके ताकि हम वापस से पहले की तरह इन त्योहारों को मना सकें।
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