खबर लहरिया चित्रकूट चित्रकूट: चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड-19 से जान गवां बैठे यूपी के 1621 शिक्षक

चित्रकूट: चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड-19 से जान गवां बैठे यूपी के 1621 शिक्षक

वो कहते हैं न कि “ज्ञान से बड़ा कोई दान नहीं, और गुरु से बड़ा कोई दानी नहीं।” भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए और देश को आगे बढ़ाने में शिक्षकों के योगदान के लिए 5 सितंबर को मनाया जाता है शिक्षक दिवस।

हमारे जीवन में शिक्षक का महत्त्व अनमोल है। शिक्षक के मार्गदर्शन के बगैर हम जीवन में तरक्की करने का सोच भी नहीं सकते। लेकिन क्या शिक्षकों को वो सम्मान वो हक़ मिल पाते हैं जिसके वो योग्य हैं?

कुछ महीनों पहले यूपी में कोरोना की जानलेवा दूसरी लहर के बीच सरकार ने पंचायत चुनाव करवाए। जिसमें प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों में हज़ारों शिक्षकों ने अपनी जान पर खेलकर चुनाव ड्यूटी करी।

द हिन्दू की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी में पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कुल 1621 शिक्षकों की मौत हो गई।

जिसके बाद शिक्षा संघ ने मांग की कि चुनाव ड्यूटी के दौरान ख़तम हुए कर्मचारियों और शिक्षकों के परिजनों को 1 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जाए।
लेकिन राज्य सरकार ने इलाहबाद हाई कोर्ट से कहा कि वह शिक्षकों और शिक्षा मित्रों सहित मृतक मतदान अधिकारियों के परिवार के सदस्यों को 30 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करेगी।

हाल ही हम मिले कुछ ऐसे परिवारों से जिनके परिजन भी चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड-19 की चपेट में आए और अपनी जान खो बैठे। आज इतने महीनों बाद भी इन परिवारों को सरकार की तरफ से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिली है और न ही मुआवज़े की रकम अबतक आई है।

ज़्यादातर शिक्षक घर में अकेले कमाने वाले ही थे और अब उनके बच्चे और परिवार बुनियादी ज़रूरतें के लिए अपने रिश्तेदारों पर निर्भर हो चुके हैं। इन परिवारों ने सरकार से मदद लेने की हर कोशिश कर ली है, लेकिन इनकी आर्थिक सहायता न ही विभाग कर रहा है और न ही राज्य सरकार।

अपनों के दूर चले जाने का गम क्या होता है, ये इन परिवारों के चहरे पर साफ़ देखने को मिल गया। कोरोना काल में भी काम करने की लगन के चलते इन शिक्षकों ने बखूबी अपनी ज़िम्मेदारी निभाई और चुनाव प्रक्रिया शांतिपूर्वक करवाई, यहाँ तक की अपनी जानें भी गवां दीं, ऐसे में क्या सरकार का यह फ़र्ज़ नहीं कि जिन लोगों ने सरकार की सेवा में दम तोड़ दिया, उनके परिवार की किसी तरह सरकार को सहायता करनी चाहिए? या फिर मुआवज़ा देने की बातें सिर्फ कागज़ और भाषणों तक ही सीमित थीं? इस शिक्षक दिवस हम बस यही उम्मीद करते हैं कि उन सभी शिक्षकों को इंसाफ मिल पाए जिनके दृणसंकल्प आज हमारे लिए प्रेरणा बन चुका है।

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