खबर लहरिया Blog Chhattisgarh: चंदा कर ग्रामीणों ने कर लिया सड़क का निर्माण 

Chhattisgarh: चंदा कर ग्रामीणों ने कर लिया सड़क का निर्माण 

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के पुसाझर गांव में ग्रामीणों ने आपस में चंदा किया और गांव से शहर तक खुद ही सड़क का निर्माण किया क्योंकि प्रशासन द्वारा कोई कार्य नहीं किया गया।

सड़क का निर्माण करते हुए ग्रामीण (फोटो साभार: विस्तार न्यूज़)

लेखन – रचना 

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर के कांकेर जिले का एक आदिवासी गांव पुसाझर, जहाँ आज़ादी के इतने वर्षों के बाद भी सड़क जैसे मूलभूत सुविधा से ग्रामीण वंचित है। खबर रविवार 25-05-25 की है, पुसाझर गांव के ग्रामीण द्वारा गांव से शहर तक जाने के लिए एक सड़क का निर्माण किया गया। ग्रामीण दो दिन में 5 किलोमीटर दूरी तक अपने श्रम से अपने सुविधा अनुसार रास्ते का निर्माण किया। इस पहल को करने के लिए गांव के लगभग सदस्य ने अपनी भागीदारी दी है चाहे वो महिला, पुरुष, बुजुर्ग हो या बच्चे सभी ने निर्माण कार्य के लिए मिलकर कर के कदम उठाया है।

हर घर से लिए दो हजार रुपए चंदा 

 ग्रामीण हर वर्ष बरसात के मौसम में 5 किलोमीटर तक कच्ची सड़क को बनाने का काम करते हैं। गांव का इलाका पथरीला है जिसके कारण बड़े-बड़े पत्थरों को हटाने के लिए जेसीबी जैसे मशीनों की जरूरत पड़ती है और इसी के लिए हर घर से दो हजार रुपए का चंदा लिया जाता है। बाकी के काम वहां के ग्रामीण फावड़ा जैसे औजारों के मदद से करते हैं। ग्रामीणों द्वारा यह भी नियम बनाया गया है कि गांव में किसी के घर से अगर मदद के लिए कोई नहीं आया तो उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से दो सौ रुपए का जुर्माना देना होगा। 

कई तकलीफ़ों का सामना कर रहे ग्रामीण 

जिला मुख्यालय से करीब 30 से 35 किलोमीटर दूर बसे इस गांव  तक आज भी सड़क नहीं पहुंच सकी है। विस्तार न्यूज़ के ग्राउंड रपोर्टिंग के अनुसार ग्रामीणों ने बताया कि हर साल बारिश से पहले ग्रामीण अपनी मेहनत से कच्ची सड़क बनाते है ताकि आवाजाही बने रहे। ग्रामीणों ने यह भी बताया कि सड़क न होने से वे शहर से राशन नहीं ला पाते हैं। बीमार व्यक्तियों को सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा पाते हैं। मरीज को लकड़ी की कांवर से उठाकर पांच किलोमीटर दूर पैदल जाना पड़ता है। अस्पताल से गाड़ी (एंबुलेंस) नहीं आ पाती। आवास योजना जैसे लाभ भी नहीं ले सकते हैं क्योंकि चार पहिया गाड़ी भी सड़क के कारण गांव तक नहीं पहुंच पाती। वहां के बच्चे कक्षा पाँचवी के बाद स्कूल छोड़ देने पर मजबूर हैं क्योंकि आवाजाही की कोई सुविधा ही नहीं है। वे पिछले आठ साल से श्रम दान देते आ रहे हैं।

प्रशासन पर सवाल 

पुसाझर के ग्रामीणों ने बताया कि वे सभी सरकारी अधिकारी मंत्री, कलेक्टर, सांसद और विधायक इन  सभी से कई बार कच्ची सड़क को बनवाने के लिए गुहार लगाई गई है। हर साल बारिश से पहले कलेक्टर और विधायक को सूचना दी जाती है लेकिन कोई भी सुनवाई नहीं होती है। इसी कारण ग्रामीण सड़क बनाने के लिए यह कदम उठाने पर मजबूर हैं। उनका यह साहस सलाम करने के लायक है तथा दूसरों को प्रोत्साहित भी करता है। अब सवाल ये उठता है कि जब सरकार गांव  के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचने का दावा करती है, तो ऐसे गावों को अनदेखी क्यों की जाती है? क्या आदिवासी अंचल के लोग विकास के मुख्यधारा से दूर ही रहेंगे? क्या नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के नाम पर केवल सुरक्षा बलों की तैनाती ही विकास का पर्याय बन गई है? पुसाझर गांव  की यह पहल शासन-प्रसासन को आइना दिखाने के लिए काफी है कि व्यवस्था नाकाम हो जाती है वहां  आमजन (जनता) खुद रास्ता बना लेते हैं।

 

‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journalism, subscribe to our  premium product KL Hatke

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *