हमारी फीस जमा नहीं है इसलिए हमें पेपर नहीं देने दिया जा रहा है। हमारे मम्मी-पापा के पास अभी पैसे नहीं है इसलिए वह फीस नहीं दे पा रहे हैं।
शिक्षा ज़रूरी है और शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहुँच और साथ ही पारिवारिक आमदनी भी बड़ी भूमिका निभाती है। कई पिछड़े क्षेत्रों के बच्चे आज भी शिक्षा से अछूते हैं। वहीं कई परिवार पैसों की तंगी होने की वजह से अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते। अगर किसी ने जैसे-तैसे अपने बच्चे को स्कूल भेज भी दिया तो हर महीने स्कूल की फीस, अलग से परीक्षा की फीस और अन्य क्रियाकलापों की फीस भरने के लिए उन्हें जद्दोजहत करनी पड़ती है। लॉकडाउन और कोरोना महामारी की वजह से वैसे ही परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चुकी है।
आज शिक्षा ज्ञान नहीं बल्कि पैसे कमाने का ज़रिया बनकर रह गया है। कई बार पैसे न होने की वजह से बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ता है या वह स्कूल ही नहीं जा पाते। रिपोर्टिंग के दौरान हमारे सामने भी कुछ ऐसा ही मामला सामने आया। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के ब्लॉक ईसानगर के सरकारी और प्राइवेट स्कूल में बच्चों को बिना फीस जमा कराये परीक्षा में बैठने नहीं दिया जा रहा है।
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छात्रों ने बताई अपनी-अपनी परेशानियां
मामले को लेकर हमने एक्सीलेंस स्कूल (सरकारी) और डी लाइट पब्लिक स्कूल (प्राइवेट) के छात्रों से बात की। बच्चों का आरोप है कि, “हमारी फीस जमा नहीं है इसलिए हमें पेपर नहीं देने दिया जा रहा है। हमारे मम्मी-पापा के पास अभी पैसे नहीं है इसलिए वह फीस नहीं दे पा रहे हैं। हम लोग एग्जाम नहीं देंगे तो हमारा भविष्य खराब होगा।”
प्रियंका अहिरवार कहती हैं,” लॉकडाउन में हमारी फीस जमा नहीं हुई थी। इस बार की आधी फीस जमा हुई है। पिछली फीस हमारे स्कूल वाले मांग रहे हैं। हमारे पापा मजदूरी करते हैं। उनके पास पैसे नहीं है इसीलिए नहीं दे पाए हैं। स्कूल में हम लोगों ने कहा है कि थोड़े-थोड़े करके दे देंगे लेकिन हमारे स्कूल के टीचर्स नहीं मान रहे हैं। वह हमें पेपर नहीं देने दे रहे हैं। हम लोगों ने इतनी मेहनत करके पढ़ाई की है। अगर हम लोग पेपर नहीं देंगे तो हम लोग फेल हो जाएंगे। हम लोगों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। इसीलिए हम लोग चाहते हैं कि हमें पेपर देने दे।”
मंजू प्रजापति ने कहा,”हमारी फीस सिर्फ 3 महीने की बाकी है। हमारे पापा सब्ज़ी की दुकान लगाते हैं। सब्ज़ी बेच-बेचकर हम बच्चों को पढ़ाते हैं और फीस देते हैं। 3 माह की फीस बस बाकी है। किस तरह से हम लोग परीक्षा दें। पापा के पास पैसे भी नहीं है कि वह हम लोगों की फीस भरे जिससे हम लोग अपने आगे की पढ़ाई जारी करें।”
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जब स्कूल बंद थे तो फीस कैसी?
देवीदीन अहिरवार ने बताया,”हम लोग मज़दूरी करते हैं और अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं। यह प्राइवेट स्कूल वाले एक-दो महीने की फीस भी माफ़ नहीं करते। लॉकडाउन ने पहले हम लोगों को मार दिया है जिसके कारण हम लोग बच्चों की फीस नहीं दे पा रहे थे। पहले स्कूल भी नहीं खुले थे तो फीस कहां से दे। हम लोग कह भी रहे हैं कि आधी फीस दे देंगे, बच्चों को एग्जाम में बैठने दो पर यह लोग एग्जाम में नहीं बैठने दे रहे हैं। बच्चों का इस तरह से तो भविष्य बर्बाद होगा। सरकार को इस पर निर्णय लेना चाहिए कि जब लॉकडाउन में स्कूल नहीं खुला था तो फिर फीस किस बात की मांग रहे हैं। हम लोग इसके खिलाफ आवाज़ उठाएंगे की फीस माफ़ की जाए या फिर आधी ली जाए। बच्चों को एग्जाम में बैठाया जाए। फीस थोड़ी-थोड़ी करके भर दी जाएगी।
क्या कहते हैं प्रिंसिपल?
एक्सीलेंस स्कूल (सरकारी) के प्रिंसिपल व डी लाइट पब्लिक स्कूल के अमित यादव से खबर लहरिया ने बात की। उन्होंने कहा, बच्चों की फीस जमा नहीं है इसलिए पेपर नहीं देने दिया जा रहा। अगर फीस नहीं दी जायेगी तो वह लोग जो सामग्री पेपर में लगती है वह कहां से लाएंगे। स्कूल की फीस से ही वह भी अपना घर चलाते हैं। जहां तक बात रही अध्यापकों द्वारा यह कहना कि वह बिना फीस बच्चों को परीक्षा में नहीं बैठने देंगे तो वह इसे लेकर बात करेंगे कि बच्चों को परीक्षा में बैठने दिया जाए।
यूँ तो सरकार ने 6 से 14 साल के बच्चों तक के लिए हर सरकारी स्कूल में मुफ़्त शिक्षा का नियम लागू कर रखा है पर ऐसा दिख नहीं रहा। लॉकडाउन में जब स्कूल बंद थे तो आखिर परिवारों से स्कूल किस बात की फीस वसूल रहा है? लॉकडाउन में शुरू की गयी डिजिटल शिक्षा की पहुँच तो हर बच्चे तक नहीं थी जिसे सरकार चाह कर भी नकार नहीं सकती। ऐसे में क्या शिक्षा मंत्रालय को कोई कड़े कदम नहीं उठाने चाहिए जो इस समस्या का निराकरण कर सके? अगर हो सके तो लॉकडाउन के महीनों की फीस को माफ़ कर दिया जाए या आधी की जाए? कुछ भी ऐसा जिससे गरीब परिवारों के बच्चों को पैसों की कमी की वजह से स्कूल न छोड़ना पड़े और वह परीक्षा दे पायें।
इस खबर की रिपोर्टिंग अलीमा द्वारा की गयी है।
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