खबर लहरिया क्राइम जातीय भेदभाव बड़ी हिंसा को जन्म देती है और फिर शुरू होती है राजनीति: हाथरस केस

जातीय भेदभाव बड़ी हिंसा को जन्म देती है और फिर शुरू होती है राजनीति: हाथरस केस

हमारे देश के प्रधानमंत्री भले ही सफाईकर्मियों के पैर धुलकर पानी पिए हो लेकिन क्या छुआछूत का कलंक मिट सकता है? चाहे राजनीति ही सही लेकिन उन्होंने समाज के बीच चली आ रही रूढ़िवादी सोच को खत्म करने की कोशिश की। अंधभक्त पीएम के आदर्शों में चलने की कसम खाते हैं लेकिन दिखता तो तनिक भी नहीं।

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सदियों से चली आ रही ये रूढ़िवादी परम्परा को मिटा पाना क्या इतना आसान है? समाज में आज भी छुआछूत हावी है यकीन न हो उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के उस गांव जाकर देखिए जहां पर कथित रूप से सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया है। वहां पर आज भी जन्म से लेकर मरने तक समाज में उच्च मानी जानी वाली जाति के लोग नीची मानी जानी वाली जाति से छुआछूत करते हैं। जाहिर है ऐसे में जातीय भेदभाव और हिंसा का शिकार होना आम बात है। 21वीं सदी के भारत के एक गांव के उदाहरण ने बताया दिया कि हर मोहल्ला, गांव और शहर में छुआछूत कायम है।