दशकों से नहीं मिटी प्यास, कहां गयी परियोजनाएं, कहाँ गया विकास?
बुंदेलखंड: बुंदेलखंड उतना पानीदार क्यों नहीं जितना कि यहां के लोग। अक्सर मैंने कहते सुना है कि यहां पर पानी की भले त्राहिमाम मची हो लेकिन के लोग पानीदार बहुत हैं। पानीदार जैसे शब्द को लोग स्वाभिमान से जोड़ते हैं मतलब आप ई बात पर अड़े रहना। जो बात कहना उसको करके दिखाना। इसको लेकर ही मेरे मन में पानी और पानीदार दोनों ही नजरिये से रिपोर्टिंग करने की ठानी और कर डाली कवरेज।
आइये अब बताऊं एक ऐसे अफसर के बारे में जिन्होंने बुंदेलखंड को पानीदार बनाने की लुभावनी कहानी रच डाली। ये महोदय हैं बांदा में डीएम के पद में रह चुके आईएएस अधिकारी हीरालाल हैं। वर्तमान समय में आईएएस अधिकारी हीरालाल नेशनल हेल्थ मिशन में अपर निदेशक के पद पर तैनात हैं। पानी बचाने के नाम पर खूब सरकारी धन महोदय ने पानी की तरह बहाया। कुआं तालाब पूजन, केन नदी में जल आरती, नदियों किनारे खिचड़ी भोज जैसे तमाम कार्यक्रम रहे जिन पर सिर्फ और बयानबाजी रही।
तीसरे पानीदार व्यक्ति और संस्था की बात बताऊं वह हैं बांदा जिले के महुआ ब्लाक के गांव जखनी निवासी उमाशंकर पांडेय की। अपने जन्म स्थान को जल ग्राम घोषित करवाने में कामयाब रहे। उनका दावा है कि उनका गांव हमेशा पानी से भरपूर रहता है। उन्होंने सर्वोदय नाम की संस्था बनाया और उसी के तहत अपने आसपास के लोगों को जोड़कर जल बचाने का दावा करते हैं। जबकि सच्चाई इस बात की है कि उस क्षेत्र में तमाम नहरों के साथ अतर्रा और खुरहंड की बड़ी नहरें इस जल स्रोत को कायम रखने में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। उनकी संस्था के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने बताया कि वह सब फर्जी काम था। भले ही फर्जी हो लेकिन साहब ने खूब नाम कमाया, पुरुष्कार जीते। यही नहीं इस गांव को मॉडल के रूप में देखा गया। क्या इसको ही कहेंगे पानीदार।
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हमने पानी की खबरें हर साल लगातार कवरेज करते हैं। लगभग बीस साल के रिपोर्टिंग के आधार पर हम कह सकते हैं कि पानी की कमी यूं ही हर रोज की समस्या है लेकिन गर्मी आते ही पानी का संकट गहरा होता चला जा रहा है। सरकारें आती जाती रहेंगी लेकिन बुंदेलखंड को पानीदार कभी न बना पाएंगी क्योकि राजनीतिक मुद्दा खत्म न करने की कसम जैसे कहा लेते हैं शासन-प्रसाशन।
बुन्देलखण्ड में पानी के स्रोत का बड़ा आंकड़ा है। प्रशासन और गूगल से मिली जानकारी के अनुसार कुल 13 बांध हैं लेकिन कुछ को छोड़कर सब बेजार हो चले हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दो भागों में फैले बुंदेलखंड में छोटी-बड़ी करीब 35 नदियां हैं। यमुना, बेतवा, केन, बागै समेत लगभग 7 नदियां राष्ट्रीय स्तर की हैं। साढ़े 17 हजार से अधिक प्राचीन तालाब हैं। पेयजल के लिए कुएं हमारी अमूल्य धरोहर हैं, इनकी संख्या 35 हजार से ज्यादा है। बुंदेलखंड में जल संरक्षण का जो प्राचीन फार्मूला है, वह अकेले तालाब व कुंओं तक ही सीमित नहीं था। इसमें बावड़ी व बिहार का भी अहम रोल रहा। आज भले ही ये दोनों गुमनामी की कगार पर हैं लेकिन बुंदेलखंड में इन दोनों की संख्या करीब 400 रही है इसमें 360 बीहर व 40 बावड़ी शामिल हैं।
झांसी जिले के गुमनामवारा के लोगों ने बताया कि वह सालों से यहां रह रहे हैं लेकिन उनकी पानी की समस्या में कोई सुधार नहीं हुआ। इसलिए उन्होंने थाना है कि वह चुनाव का बहिष्कार करते रहेंगे। क्या चुनाव बहिष्कार करने से पानी की समस्या का समाधान हो पायेगा।
ललितपुर जिले के सतवाँसा गांव में पानी की विकराल समस्या है। लोग सारा काम छोड़कर पहले पानी भरते हैं। रात रात भर महिलाएं और लड़कियां पानी भरने के लिए नल खाली होने का इंतज़ार करती रहती हैं।
महोबा के कुलपहाड़ कस्बे का पाठवापुरा। यहां पर पथरीली जमीन होने के कारण पानी की व्यवस्था न कर पाने का प्रशासन का मुख्य बहाना बन जाता है। बूंद बूंद पानी के लिये यहां के लोग परेशान रहते हैं।
चित्रकूट जिले का मानिकपुर क्षेत्र पहाड़ी इलाका है। यहां पर पानी की समस्या लोगों की जिंदगी के लिए नासूर बन चुकी है। लोग चोहड़े का पानी पीने को मजबूर हैं। इस क्षेत्र में पानी लाने के लिए खूब राजनीति होती है लेकिन उस पर काम कभी नहीं। जबकि यहां पर वर्तमान समय में सांसद, विधायक और मंत्री तक निवासी हैं। चाहे तो यहां पर पानी की समस्या चुटकियों में ठीक कर दें लेकिन क्यों ठीक करेंगे आखिरकार चुनावी मुद्दा जो ठहरा।
बांदा जिले के गांव और शहरों में भी पानी की समस्या बहुत पुरानी हो चली है। कभी पाइप लाइन ठीक नहीं हैं तो कभी हैण्डपम्प खराब हैं। अधिकारी दावा तो करते हैं कि समस्या का समाधान जल्दी किया जाएगा लेकिन कभी उसमें गम्भीरता नहीं दिखाई गई।
इतनी कवरेज के बाद आप सब भी तो समझ गए ही होंगे कि पानी की बड़ी समस्या है और यह भी जान लिए होंगे न कि यहां के लोग कितना पानीदार हैं।
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