खबर लहरिया जिला बुंदेलखंड: कुपोषण से जूझ रहे मासूम, क्या सुधरेगी स्थिति? द कविता शो

बुंदेलखंड: कुपोषण से जूझ रहे मासूम, क्या सुधरेगी स्थिति? द कविता शो

नमस्कार दोस्तों!! द कविता शो के इस एपिशोड में आपका स्वागत है।दोस्तों इस समय राष्ट्रीय पोषण सप्ताह चल रहा है।हर साल 1 सितंबर से 7 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है भारत में 1 सितंबर से 7 सितंबर तक साप्ताहिक कार्यक्रम के रूप में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है। उचित पोषण और आहार के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अच्छा पोषण हमें स्वस्थ और खुश रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, हम अपने शरीर के लिए जरुरी पोषण तत्वों के बारे में पूरी जानकारी रखें।

राष्ट्रीय पोषण सप्ताह पहली बार मार्च 1975 में (अमेरिकन डायटेटिक एसोसिएशन, अब – न्यूट्रिशन और डाइट साइंस अकैडमी) के सदस्यों द्वारा पोषण तत्तो के शिक्षा की जरूरत के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ डाइट एक्सपर्ट्स के पेशे को बढ़ावा देने के लिए मनाया गया था। हालांकि, भारत में केंद्र सरकार ने 1982 में एक अभियान, राष्ट्रीय पोषण सप्ताह शुरू करने का निर्णय लिया था। भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय का खाद्य और पोषण बोर्ड राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के इस सप्ताह भर चलने वाले वार्षिक उत्सव का आयोजन करता है. यह मानव शरीर में उचित पोषण तत्वों के महत्व पर जोर देता है।

खबर लहरिया ने इसकी जमीनी हकीकत को जानने के लिए यूपी और एमपी के बुन्देलखण्ड के ग्रामीण इलाको मेंपहुंच गये रिपोर्टिंग करने के लिए। दोस्तों हमने दलित और आदिवासी इलाको में फोकस किया और वहां की ताज़ी तस्वीरें अपने कैमरे में कैद की और लोगों की बाते भी। आदिवासियो के गाँव में छोटे छोटे बच्चे अति कुपोषित मिले। कई ऐसे बच्चे मिले जिनकी उम्र एक साल की हैं आप बच्चों के सरीर की एक एक हड्डी गिन सकते हैं। हड्डियों का ढाचा बनकर रह गये हैं इतनी बुरी स्थति है। ललितपुर जिले में तो 15 अगस्त के दिन एक बच्चे की मौत भी हो गई है. लोगों के घरो में खाने के लिए नहीं है। क्या खाना बच्चो को खिलाना चाहिए क्या खिलाना है इसकी भी सही जानकारी नहीं है। भारत सरकार के द्वारा बच्चो व गर्भवती महिलाओं को मिलने वाला पोषाहार भी नहीं मिलता है।तो ये है गांवो की तस्वीर।

पोषण सप्ताह के बारे में गाँव के लोग जानते भी न होगे। अपना हक मागने की बात तो बहुत दूर है. लेकिन इस सप्ताह के नाम पर सरकारी धन की बर्बादी काफी होती है। जिस तरह से इस सप्ताह को मनाने का सरकार उद्देश्य है वो असल में नहीं दिखता है तो फिर ऐसे दिवस को कागजी तौर पर क्यों मनाया जाता है।

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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से बताया गया कि देश में 9.3 लाख (6 महीने से 6 साल के बीच) से अधिक ‘गंभीर कुपोषित’ बच्चों की पहचान की गई है। इसमें उत्तर प्रदेश से करीब 4 लाख बच्चे हैं।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि ICSD-RRS पोर्टल (30 नवंबर, 2020 तक) के अनुसार, देश में 9,27,606 गंभीर रूप से कुपोषित (SAM) बच्चों (6 महीने से 6 वर्ष) की पहचान की गई है, जिनमें से 3, 98,359 उत्तर प्रदेश से हैं।

उन्होंने कहा कि 6 माह से 6 वर्ष के आयु वर्ग के गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को पूरक पोषाहार प्रदान किया जाता है। कुपोषण को कम करने के उद्देश्य से मंत्रालय ने 2017-18 से 2020-21 तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 5,312.7 करोड़ रुपये जारी किए हैं, जिसमें से 31 मार्च तक 2,985.5 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया है।

पोषण अभियान के तहत वर्ष 2022 तक 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्टंटिंग को 38.4% से 25% तक कम करने का लक्ष्य है. कुपोषण के विषय से संबंधित एक अन्य प्रश्न पर मंत्रालय ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अल्पपोषण की व्यापकता 22.9% थी, जो अब (20.2%) हो गई है।

सराकार की चलाई गई बाल बिकास परियोजना और आंगनवाड़ी केन्दों की परतें तो खोल ही दी हमने। आखिर सरकार इस तरह के जरूरी मुद्दों की निगरानी क्यों नहीं रखती है। योजनाओं को पलट कर क्यों नहीं देखती है। और इसमें भी ऊच नीच का भेदभाव क्यूँ करती हैं। अगर गरीबो को मिलने वाला पोषाहार नियमित रूप में बट जाए और कुपोषित बच्चों का सही समय पर इलाज कराया जाए तो शायद ऐसी समस्याओं से निपटा जा सकता है। तो दोस्तों इस एपिशोड की चर्चा आपको कैसी लगी आप जरुर से मुझे कमेन्ट बाक्स में लिख कर बताईये अगर शो पसंद आया हो दोस्तों के साथ में सेयर करिये।चैलन को सब्सक्राइब करना न भूलें।

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