खबर लहरिया क्राइम पलायन तक पहुंची सियासी रंजिश, क्या होगा अंजाम, राजनीति रस राय

पलायन तक पहुंची सियासी रंजिश, क्या होगा अंजाम, राजनीति रस राय

नमस्कार, मैं हूँ मीरा देवी खबर लहरिया की प्रबन्ध संपादक, मेरे शो राजनीति रस राय में आप सबका बहुत बहुत स्वागत है। हर बार मैं किसी नए साथी और नए मुद्दे के साथ हाजिर होती हूं। आपको बता दूं कि इस बार मेरे साथ हैं खबर लहरिया की सीनियर रिपोर्टर नाजनी रिजवी, तो नाज़नी आपका भी इस शो में बहुत बहुत स्वागत है।

नाजनी- बहुत धन्यवाद कर रही हूं सभी साथियों का जो हमारे शो में जुड़ रहे हैं अंत तक देखते रहने के लिए। हां मैं नाजनी हूं और इस शो में बतियाने और कुछ राजनीतिक बातें करने आई हूं।

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मीरा/ नाजनी बताइए न कि ये चुनाव की रंजिश चुनाव के बाद भी चलती रहती हैं। ऐसा मैंने बहुत देखा और सुना है।

नाजनी/ 21 अगस्त को हुआ न ये हरदोई जिले का केस। यह सिर्फ चुनाव रंजिश तक ही नहीं सीमित। इसमें जाति का बहुत बड़ा बोलबाला है। ब्राह्मण परिवार जो इस गांव में रहता है उन्होंने ठाकुरों पर दबंगई का आरोप लगाया है। उनके घरों पर पत्थरबाज़ी भी की गई। यही नहीं पुलिस की मौजूदगी में यह सब हुआ।

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            गाँव में दंबनगई ठाकुरों से परेशान ब्राह्मणो ने दीवार पर लिखा अपना दर्द

मीरा/ मतलब?

जब ये वीडियो हमने शोसल मीडिया में देखे तो चले गए कवरेज करने। हम पहुंचे जिले के हरपालपुर थाना क्षेत्र के चतरखा गांव। देखा और समझा कि यह ठाकुर जाति बाहुल्य गांव है। उन्हीं की प्रधानी चली आ रही थी लगातार लेकिन इस बार पंडित जाति के पाले प्रधानी आ गई। इससे दोनों जातियों में टक्कर होना शुरुआत हो गई। बस यहीं से शुरू हो गया लड़ाई झगड़ा करना। थोड़ी थोड़ी बात पर लड़ाई।

मीरा/ ओह्ह नाजनी यह भी हमें मिला कि सियासी रंजिश खूनी होने के बाद अब पलायन तक आ पहुंची है। पंडितों ने अपने घरों की दीवालों में पलायन को मजबूर लिखा रखा है। पीड़ित प्रमोद शुक्ला ने एसपी से मिलकर न्याय की गुहार लगाई हालांकि इस मामले में पुलिस ने दोनों पक्षों के 22 नामजद और 52 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था।

मीरा/ तो नाजनी अब क्या हाल हैं वहां पर। क्या यह रंजिश पुलिस या प्रशासन खत्म कर पायेगी?

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नाजनी/ पता नहीं मुझे तो नहीं लगता।

मीरा/ हम पूंछना चाहते हैं सरकार से, चुनाव लड़कर हारने और जीतने वालों से कि ऐसा क्यों हुआ है और होता है? चुनाव लड़ना और जीतना सबका अधिकार है तो किसी एक के लिए चुनाव कोई पुश्तैनी धरोहर क्यों बन जाती है? चुनाव आयोग को ऐसे लोगों को दोबारा मौका देने के बारे में नहीं सोचना चाहिए? जिन लोगों के बीच यह मामला खड़ा हुआ वह आम लोगों के बीच क्या संदेश देना चाह रहे हैं? प्रधान के काम को पूरा न करने पर जिले के निर्वाचन अधिकारी को कार्यवाही नहीं करनी चाहिए?

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