आज का एपिसोड एक ऐसी विडंबना पर सवाल उठाता है जिसे अक्सर नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है। नवरात्रि के दौरान पुरुष पुजारियों द्वारा महिला स्वरूप देवी मूर्ती के कपडे बदले जाते हैं। यह परंपरा समाज में पूरी तरह स्वीकार है लेकिन वही समाज जीवित महिलाओं को कपड़े चुनने की आज़ादी देने में असहज महसूस करता है। क्या यह विरोधाभास नहीं है? जब एक पुरुष देवी की मूर्ति के कपडे बदल सकता है तो फिर एक जीवित, सोचने-समझने वाली महिला को अपनी पसंद से कपड़े पहनने की स्वतंत्रता क्यों नहीं मिलती?
ये भी देखें –
बोलेंगे बुलवाएंगे शो- क्या लड़कियों का रंग सिर्फ गुलाबी है? रंगों पर थोपे गए लैंगिक नियमों की सच्चाई
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’