बिलकिस बनो मामले में अदालत द्वारा 11 दोषियों की रिहाई को पूरे देश द्वारा गलत ठहराते हुए फैसले को वापस लेने के लिए कहा जा रहा है। आपको बता दें, बिलकिस बानो मामले में सभी 11 दोषियों को उम्र कैद की साज़ दी गयी थी।
“क्या एक औरत को दिए गए न्याय का अंत यही है?”
यह सवाल सिर्फ बिलकिस बानो का नहीं बल्कि देश की हर एक महिला का है। बिलकिस बानो, यह वह महिला है जिसे कानून ने इंसाफ का आइना दिखाकर फिर अदालत की चौखट पर खड़ा कर दिया। वह गर्भवती थी जब उसके साथ और उसके परिवार की अन्य महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उसकी बेटी सहित उसके परिवार के कई सदस्यों को जान से मार दिया गया।
इस वारदात में शामिल 11 दोषियों को अदालत ने उस दिन आज़ाद किया जब देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था। दोषी सीना चौड़ा करते हुए आज़ादी दिवस के दिन खुलेआम उस समाज के कदम रख रहें थे जहां उनके जैसे कई और आरोपी बाहर घूम रहें हैं।
देश आज़ादी बना रहा था लेकिन इस रिहाई ने बिलकिस बानो के डर मुक्त जीवन जीने की आज़ादी छीन ली थी। 20 सालों बाद आज भी बिलकिस बानो के जीवन में वही डर, वही याद, वही दर्द है जो उसे आज से 20 साल पहले महसूस करना पड़ा था। आज वह उस समय को एक बार जीने के लिए मज़बूर है।
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वे ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण अच्छे संस्कार के लिए जाने जाते हैं
इन दोषियों की रिहा होने की आज़ादी कुछ लोगों और उनके परिवार द्वारा उन दोषियों को फूल-मला पहनाकर व तिलक-आरती करके मनाई गयी। इसके अलावा विश्व हिन्दू परिषद द्वारा भी बरी हुए आरोपियों का स्वागत माला पहनाकर किया गया। आखिर वो मनाये भी क्यों न? इन दोषियों ने एक बार महिला की अस्मियता को तितर-बितर करने के बावजूद भी आज़ादी पा ली है।
इन 11 दोषियों की आज़ादी पर भारतीय जनता पार्टी के विधान सभा सदस्य सीके राउलजी बड़ी बेअदबी से कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि उन्होंने अपराध किया है या नहीं। वे ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण अच्छे संस्कार के लिए जाने जाते हैं।”
जब इस बात से लोगों में आक्रोश पैदा हो गया तो उन्होंने यह भी कह दिया कि अरे! भयी सब तोड़-मरोड़ कर उनकी बात दिखा दी गयी। सीके राउलजी कहते हैं, “बलात्कारियों का जातियों से कोई लेना-देना नहीं है और मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही है। बयान को गलत तरीके से दिखाया जा रहा है। जो व्यक्ति दोषी पाया जाता है, उसे दंडित किया जाना चाहिए। हमें कोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए।”
एनएचआरसी मुद्दे पर करेगा चर्चा
27 फरवरी 2002 के गुजरात दंगो के बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में उम्रकैद की सज़ा काट रहे 11 दोषियों को गोधरा सब-जेल से रिहा किये जाने के एक हफ़्ते के बाद, द संडे एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा सोमवार, 22 अगस्त को इस पर चर्चा किये जाने की बात कही गयी थी।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, संपर्क करने पर एनएचआरसी के चेयरपर्सन जस्टिस अरुण मिश्रा के कार्यालय ने इसकी पुष्टि की थी।
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रेमिशन पॉलिसी के तहत 11 दोषी हुए रिहा
अदालत द्वारा 11 दोषियों की रिहाई को पूरे देश द्वारा गलत ठहराते हुए फैसले को वापस लेने के लिए कहा जा रहा है। आपको बता दें, बिलकिस बानो मामले में सभी 11 दोषियों को उम्र कैद की साज़ दी गयी थी।
उम्र कैद की सज़ा के अनुसार दोषी 14 साल या फिर 20 साल की सज़ा काटने के बाद माफ़ी की अपील कर सकता है। बिलकिस बानो के केस में भी यही हुआ है। सभी 11 दोषियों ने 14 साल पूरे होने के बाद माफ़ी का आवेदन किया था।
भारतीय संविधान धारा 161 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में दोषी पाया जाता है, तो वह राज्यों को रेमिशन पॉलिसी के तहत माफ़ी के लिए आवेदन कर सकता है। यह आवेदन वही कर सकता है जिसके केस में फैसला आ चुका हो। जिनका मुकदमा चल रहा हो वहां धारा 161 लागू नहीं होती है। 11 में से एक दोषी राधेश्याम शाह ने सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के तहत गुजरात हाईकोर्ट में माफ़ी के लिए दरवाजा खटखटाया था। लेकिन उच्च न्यायलय ने यह कहते हुए इसे खारिज़ कर दिया कि यह मामला महाराष्ट्र का है गुजरात का नहीं। इसके बाद दोषियों ने रिमिजन पॉलिसी के तहत गुजरात सरकार ने दोषियों को रिहा कर दिया है।
सीआरपीसी की धारा 432 के तहत एक दोषी व्यक्ति स्वयं ही सजा में छूट के लिए आवेदन कर सकता है। इस मामले में राज्य सरकार किसी दोषी को बिना आवेदन के सज़ा माफ़ नहीं कर सकती है।
पत्रकार राणा आयूब
“गुजरात फाइल्स” की लेखिका और पत्रकार राणा आयूब ने बिलकिस बानो के बारे में लिखती हैं, “बिलकिस की कहानी गुजरात की कहानी थी, एक ऐसी कहानी जो देश के नैतिक विवेक को झकझोर देगी।”
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दोषियों की रिहाई पर बिलकिस बानो का कहना
15 अगस्त को आरोपियों की रिहाई के दो दिन बाद बिलकिस ने मीडिया से बात करते हुए कहा,
“मैं सुन्न और खामोश सी हो गई हूँ। 20 साल पुराना सदमा फिर कहर बनकर टूटा है। आरोपियों की रिहाई ने मुझसे मेरी शांति छीन ली और न्याय व्यवस्था पर मेरे भरोसे को हिला दिया है।”
“आज मैं केवल इतना कह सकती हूँ – क्या एक औरत को दिए गए न्याय का अंत यही है? मैंने इस देश के सबसे ऊंचे न्यायालय पर विश्वास रखा। मैंने इस व्यवस्था पर विश्वास रखा। मैं धीरे-धीरे अपने सदमे के साथ जीना सीख रही थी। इन 11 आरोपियों की रिहाई ने मुझसे मेरी शांति छीन ली है और न्याय की व्यवस्था पर मेरा भरोसा हिला दिया है। मेरा दुःख और ये डगमगाता विश्वास सिर्फ अपने लिए नहीं उन सब औरतों के लिए है जो इंसाफ की तलब में अदालतों में आज लड़ रही हैं। “
दोषियों की न्याय की नीति अस्तित्व में नहीं – वकील शोभा गुप्ता
बिल्किस बानो का लंबे समय तक केस लड़ने वाली वकील शोभा गुप्ता ने दोषियों की रिहाई के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि “मेरा मानना है कि ऐसे तो हर बलात्कार और हत्या का आरोपी 14 साल में क्षमा की मांग कर सकता है। अगर क्षमा याचना मान ली जाती है तो हर बलात्कारी और हत्यारा इसकी मांग क्यों नहीं करेगा।”
शोभा ने कहा, क्षमा याचना एक गलत कानून है। उन्होंने कहा जिस 1992 की नीति के आधार पर दोषियों को रिहा किया गया है अब वह कानून ही अस्तित्व में नहीं है।
सिफ़ारिश के दम पर दोषियों को मिली रिहाई
एनडीटीवी के अनुसार, बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को रिहा करने की सिफ़ारिश करने वाली गुजरात सरकार की सलाहकार समिति के 10 सदस्यों में से पांच लोगों का भाजपा से संबंध बताया गया। एनडीटीवी ने पाया कि सिफ़ारिश के आधार पर, सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषियों को आज़ादी दी गयी है।
सलाहकार समिति के सदस्यों को सूचीबद्ध करने वाले एक आधिकारिक दस्तावेज से पता चलता है कि इसमें भाजपा के दो विधायक, भाजपा की राज्य कार्यकारिणी समिति के एक सदस्य और दो अन्य शामिल हैं, जो पार्टी से जुड़े हुए हैं।
दोषियों की रिहाई को खारिज़ करने की अपील
बिलकिस बानो मामले में दोषियों की रिहाई के बाद लगभग 6 हज़ार लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। लोगों की मांग है कि 11 दोषियों की रिहाई को खारिज़ किया जाना चाहिए।
द मूकनायक की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात से कांग्रेस के तीन विधायक इमरान खेडावाला, ग्यासुद्दीन शेख और मुहम्मद पीरजादा ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर रिहाई को निरस्त करने की मांग की है।
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बिलकिस बानो केस का पूरा मामला
गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने के बाद राज्य में हिंसा भड़क गई थी। साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में अयोध्या से कारसेवक वापस आ रहे थे। ट्रेन में आग लगने की वजह से 59 कारसेवकों की मौत हो गयी थी। कारसेवकों की मौत के बाद गुजरात में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई।
इस दौरान 5 महीने की गर्भवती बिलकिस बानो ने अपने साढ़े तीन साल की बेटी सालेह और परिवार के 15 अन्य सदस्यों के साथ दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव से भागकर छपरवाड़ में शरण ली। 5 दिनों तक चली हिंसा के बीच दाखिल की गई चार्जशीट के अनुसार 3 मार्च 2002 को 30 लोगों ने हंसिया, तलवार और लाठियों के साथ उन पर हमला किया था। हमलावरों में 11 युवक थे।
इस दौरान बिलकिस, उसकी मां और तीन अन्य महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। जिस समय बिलकिस के साथ बलात्कार किया गया, वह 5 माह से गर्भवती थी। कई बार बोलने के बावजूद की वह गर्भवती है बलात्कारियों ने उसकी बात नहीं सुनी। इस हिंसा में बिलकिस के परिवार के 7 सदस्यों की निर्मम तरह से हत्या कर दी गई। बिलकिस ने अपनी आँखों से अपनी 3 साल की बेटी की हत्या होते हुए देखा। बाकी के कुछ लोगों ने वहां से भागकर अपनी जान बचाई। सिर्फ बिलकिस, एक आदमी और तीन साल का बच्चा इस हिंसा में बच पाने में कामयाब हो पाए।
बिलकिस को मरा हुआ मानकर दंगाइयों ने उसे छोड़ दिया। काफ़ी घंटो बाद जब उसे होश आया तो उसने देखा कि कारसेवकों ने उसकी बेटी सहित उसके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी थी। होश आने के बाद एक आदिवासी महिला ने उसे कपड़े पहनाएं और एक होमगार्ड उन्हें लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन ले गया। पुलिस स्टेशन पहुंचकर बिलकिस बानो ने अपनी रिपोर्ट लिखाई।
द मूकनायक के अनुसार, सीबीआई की रिपोर्ट कहती है कि इस रिपोर्ट में बहुत सारे तथ्यों को दबाया गया। इसके बाद बिलकिस गोधरा राहत शिविर पहुंची और वहां से उसे मेडिकल अस्पताल ले जाया गया। इसकी शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार को दी गई। जहां एनएचआरसी और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को उठाया और सीबीआई को जांच का आदेश दिया।
2004 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, बिलकिस बानो ने कहा, “क्या यह राज्य की जिम्मेदारी नहीं है कि वह हमारी रक्षा करे, और क्या इस घटना के लिए हमें क्षतिपूर्ति नहीं करनी चाहिए? आज आशा की भावना के साथ-साथ मैं भी दुःख से भर गयी हूँ क्योंकि मुझे पता है कि 2002 के गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों में मेरे समुदाय की कितनी महिलाओं के खिलाफ़ व्यवस्थित रूप से यौन हिंसा का इस्तेमाल किया गया था। मैं अकेली नहीं हूं। ”
6 सालों बाद मिली थी आरोपियों को सज़ा
बिलकिस को इंसाफ पाने के लिए बेहद लंबी लड़नी लड़ाई पड़ी। इस दौरान उसे लगातार धमकियां मिलती रहीं और इसकी वजह से उसे 2 साल में 20 बार अपना घर बदलना पड़ा। बाद में बिलकिस ने मामले को गुजरात से बाहर स्थानांतरित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की।
इसके बाद सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मामले को गुजरात से मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया। वहीं छह पुलिस अधिकारी, एक सरकारी डॉक्टर समेत 19 लोगों पर मामला दर्ज किया गया।
21 जनवरी, 2008 में एक विशेष अदालत ने 11 आरोपियों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई। वहीं सात लोगों को सबूतों को अभाव में बरी कर दिया गया। हेड कांस्टेबल को गलत रिकॉर्ड बनाने के मामले में दोषी पाया गया।
इसके बाद एक बार फिर मई 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सामूहिक बलात्कार के मामले में 11 लोगों के आजीवन कारावास को बरकरार रखा। पुलिस समेत सात लोगों को बरी कर दिया गया। इसके दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को दो सप्ताह के अंदर बिलकिस बानो को 50 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया था।
इन दोषियों को रिहा करने वाली 10 लोगों की सलाहकार समिति पर इस समय कई प्रश्न उठाये जा रहें हैं। इसके साथ ही मामले में रेमिशन पॉलिसी के तहत इतनी बड़ी घटना के आरोपियों को बरी कर देना न्यायिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है। जिस तरह हमारा संविधान लचीला है ठीक उसी तरह कानून में भी समय के अनुसार नीति में बदलाव की ज़रूरत होती है। सिर्फ इसलिए क्योंकि कानून में दोषियों को रिहाई देने की पॉलिसी है, इसका यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए कि हीन क्राइम्स के दोषी भी उसका लाभ ले हीं। हालांकि, कानून सबको एक नज़र से देखता है पर हर मामला एक-सा नहीं होता। ऐसे में क्या यह सवाल उचित नहीं कि मामले को देखते हुए अदालत को यह तय करना चाहिए कि माफ़ी के लिए कौन अपील कर सकता है और कौन नहीं?
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