चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल मतदाता सूची से हटाए गए मृतकों की संख्या बीते साल से लगभग दोगुनी हो गई है मगर राज्य के मृत्यु पंजीकरण रिकॉर्ड का इससे मेल नहीं।
लेखन – हिंदुजा
16 जुलाई 2025 को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 24 जून से शुरू हुई मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में अब तक 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 6.99 करोड़ (88.65%) ने अपने गणना फॉर्म भर दिए हैं। इनमें से लगभग 82% फॉर्म पहले ही चुनावी प्रणाली में अपलोड भी किए जा चुके हैं।
हालांकि, गणना प्रक्रिया के दौरान कई विसंगतियाँ सामने आई हैं, जिनकी अब समीक्षा हो रही है। बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) के तीन-तीन बार दौरे के बाद भी करीब 4.5% मतदाता — यानी 35,69,435 लोग — अपने सूचीबद्ध पते पर नहीं मिले।
इनमें से:
विकासशील इंसान पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ सुनील कुमार सिंह ने इन आकड़ो पर सवाल उड़ाते हुए कहा, “ये 35 लाख का आकड़ा गरीब, किसान, बिहार से बाहर रहने वाले मजदूर, अत्यंत पिछड़ा इन सबको मिलकर बनाया है।”
सिंह ने कहा की इन्ही लोगों को मताधिकार से पीछे रखने के लिए चुनाव आयोग ने ये आकड़ा बनाया है।
इस डेटा से क्या सवाल उठते हैं?
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वार्षिक मतदाता सूची संशोधन में 16.7 लाख नाम हटाए गए थे।
इनमें से:
-8 लाख लोग दूसरी जगह शिफ्ट हो गए थे
-2.3 लाख मतदाताओं के नाम दो-दो जगह थे
-6.3 लाख मतदाता मृत घोषित किए गए थे
अगर पिछले साल ही 6.3 लाख मृतकों के नाम हटा दिए गए थे, तो इस बार एक साल में ही यह संख्या 12.5 लाख कैसे हो गई? बिहार सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2024 में राज्य में कुल 4,48,235 मौतें दर्ज की गई थीं — तो क्या 12.5 लाख मृतक का अनुमान सही है? क्या वार्षिक मतदाता सूची संशोधन में विसंगतियाँ नज़रअंदाज़ की जाती हैं और गहन पुनरीक्षण में ही ये बाहर आती हैं? अगर हाँ, तो क्या 2024 के लोकसभा चुनाव इन गलतियों के आधार पर कराए गए?
बिहार में प्रॉक्सी वोटिंग (दूसरे की जगह वोट देना)
इस पुनरीक्षण प्रक्रिया में 35 लाख नाम हटाए जा सकते हैं — यानी बिहार की 243 विधानसभा सीटों में औसतन 14,000 मतदाता प्रति सीट लिस्ट से बाहर हो सकते हैं। जिन सीटों पर बहुत कम वोटों के अंतर से परिणाम तय होते हैं, वहां यह आंकड़ा नतीजों को पूरी तरह बदल सकता है। और निर्वाचन आयोग के दिए गए डेटा के अनुसार करीब 35 लाख लोगों को वोटर लिस्ट से हटाया जा सकता है तो क्या पिछले साल ही हुए लोक सभा चुनाव में इतनी बड़ी संख्या पर प्रॉक्सी वोटिंग यानी इन नामो पर किसी और ने वोट दिया था?
पिछले महीने पटना में यात्रा के दौरान एक 22 साल के उबर ड्राइवर से मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान मैंने उससे चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) यानी मतदाता सूची अपडेट प्रक्रिया के बारे में पूछा “क्या तुमने कभी वोट दिया है?” उसका जवाब था: “हाँ, खूब भौकस (ख़ूब) वोट दिए हैं।” मैंने पूछा: “कैसे? तुम तो अभी सिर्फ 22 साल के हो।” उसने कहा कि, “दूसरों के कार्ड से वोट दिया है ना!
इस एक बातचीत से साफ़ है कि आज भी फर्ज़ी वोटिंग होती है पर कितने पैमाने में? यह मामला सिर्फ कानून के उल्लंघन का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर करने का है। मगर इसके लिए एक सक्रिय, लम्बी प्रक्रिया की ज़रुरत है, ऐसी जल्दबाज़ी में कितने और किसके नाम हटाए जायेंगे?
हलाकि, चुनाव आयोग ने कहा है कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट 1 अगस्त को जारी की जाएगी। जिन नामों के लिए 25 जुलाई से पहले नाम जोड़ने का फॉर्म जमा नहीं किया गया होगा, वे नाम इस ड्राफ्ट लिस्ट में शामिल नहीं होंगे। जो मतदाता तय समय पर फॉर्म नहीं भर पाए, वे दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया के दौरान फॉर्म 6 और घोषणा पत्र के साथ आवेदन कर सकते हैं। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी होने के बाद भी बीएलओ (बूथ स्तर एजेंट) हर दिन 10 फॉर्म जमा कर सकते हैं। आखिरी वोटर लिस्ट 30 सितंबर को जारी की जाएगी।
“ये केवल एक तकनीकी गलती नहीं है इसमें गड़बड़ी की आशंका है” दीपांकर भट्टाचार्य
माले के महासचिव ने इस पर संदेह जताते हुए कहा कि इस बार विशेष पुनरीक्षण के बीच अचानक इतने बड़े पैमाने पर और इतने सटीक आंकड़ों के साथ मतदाता सूची से नाम हटाने की जो बात सामने आ रही है, वह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं लगती। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे 3-4% नाम हटाने की बात कही जा रही है — उसे सीधे लाखों की संख्या में कनवर्ट कर पेश किया जा रहा है। उनका कहना था कि इतनी सटीकता के साथ आंकड़ों का अचानक सामने आना, बिना पर्याप्त पारदर्शिता के, सवाल खड़े करता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भले ही चुनाव आयोग जैसी संस्था पर संदेह करना सही न हो, लेकिन जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं, वे वाकई में शंका पैदा करने वाली हैं।
माले के दीपांकर भट्टाचार्य ने इसपर बातचीत के दौरान कहा, “ये बहुत ही रूटीन मामला होता है कि जहाँ भी लोगों की मौतें होती हैं, उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाते हैं। अगर कोई स्थायी रूप से बिहार से बाहर चला गया है, तो उसका नाम जहाँ वो अब रहता है, वहाँ की सूची में ट्रांसफर हो जाता है। या फिर अगर किसी का नाम गलती से दो या तीन जगह चढ़ गया हो, तो उस डुप्लिकेशन को भी हटाया जाता है। ये संशोधन की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है। लोकसभा चुनाव से पहले भी हुआ था, बाद में भी हुआ।”
उन्होंने ये भी कहा, “ये केवल एक तकनीकी गलती नहीं है इसमें गड़बड़ी की आशंका है लेकिन असली खतरा इससे कहीं ज़्यादा गहरा है। ये भारत के हर नागरिक को मिला सबसे बुनियादी अधिकार “वोट देने का अधिकार” उसी पर सीधा खतरा है।
इन आंकड़ों पर बिहार की दूसरी पार्टियों का क्या कहना है?
जनता दल (यूनाइटेड) के प्रवक्ता अभिषेक झा ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हम चुनाव आयोग के प्रवक्ता नहीं हैं, लेकिन हमारी मंशा पूरी तरह स्पष्ट है की जो भी वास्तविक मतदाता है, उसे उसका वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए, और जो फर्जी है, उसे मतदाता सूची से बाहर किया जाना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “इस पूरी प्रक्रिया में अगर कोई तकनीकी दिक्कतें या खामियां हैं, तो उस पर चर्चा और बहस हो सकती है। लेकिन हमारी अपेक्षा यही है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो। और अगर पिछले साल बिहार में केवल साढ़े चार लाख मौतें दर्ज की गई थीं तो ऐसे में इस बार 12 लाख से अधिक मृत वोटरों के नाम सूची से हटाए जाना वाकई बड़ा सवाल है। और हम भी इसका जवाब चाहेंगे कि यह आंकड़ा कैसे और क्यों इतना बढ़ गया।”
जन सुराज के प्रवक्ता तारिक अनवर चंपारणी ने भी बिहार में मतदाता सूची से हटाए गए मृत वोटरों की संख्या पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने 12 लाख ‘मृतिकों’ के आंकड़े पर अचंभा जताते हुए कहा, “2024 में बिहार में सिर्फ 4.5 लाख मौतें दर्ज की गई हैं। उनमें भी कई ऐसे लोग रहे होंगे जो मतदाता सूची में थे ही नहीं। ऐसे में 12 लाख मृत वोटरों के नाम हटाए जाने का आंकड़ा समझ से परे है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि, “हर चुनाव से पहले नाम हटाए भी जाते हैं और जोड़े भी जाते हैं। तो क्या भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के चुनाव में ऐसे लोगों के नाम जोड़ लिए जो असल में वोटर ही नहीं थे? चुनाव आयोग के अपने ही आंकड़ों में भारी विरोधाभास है। बीएलओ को हर घर की जानकारी होती है और वही यह काम करते हैं। तो इस बार इसे ‘इंटेंसिव’ कहने का क्या आधार है, यह मेरी समझ से बाहर है।”
उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया पर जन सुराज की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, “हमारी पार्टी मतदाता सूची पुनरीक्षण की मौजूदा टाइमलाइन, उसकी अवधि और जिस तरीके से इसे कराया जा रहा है, उसके पूरी तरह खिलाफ है।”
चुनाव आयोग को इससे जुड़े सवालों के साथ मेल भेजा गया है, उनका उत्तर आते ही इस रिपोर्ट को अपडेट किया जायेगा।
बिहार में वोटर लिस्ट से हट सकते हैं अब 52 लाख नाम, चुनाव आयोग ने दिए नए आंकड़े
बिहार में चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट की स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) यानी गहन पुनरीक्षण जांच के दौरान अब 52 लाख लोगों के नाम सूचि से हटाए जाने हैं। 22 जुलाई के ताजा आंकड़ों के अनुसार, अब तक 52 लाख से ज्यादा वोटर ऐसे मिले हैं जो या तो अब इस दुनिया में नहीं हैं, या राज्य से स्थाई रूप से कहीं और शिफ्ट हो चुके हैं, या फिर एक से ज्यादा जगह उनके नाम दर्ज थे। 16 जुलाई 2025 को चुनाव आयोग ने ये आंकड़ा 35 लाख तक बताया था जो अब 6 दिनों में 52 लाख हो गया है। नए आंकड़ों के अनुसार,
-18.66 लाख मतदाता मृत पाए गए।
-26.01 लाख वोटर दूसरे क्षेत्र में स्थाई रूप से चले गए।
-7.5 लाख ऐसे वोटर मिले जिनके नाम एक से अधिक जगह दर्ज थे।
-11,484 वोटर ऐसे थे, जिनका कोई पता-ठिकाना नहीं मिला।
इस तरह कुल 6.62% वोटरों के नाम अभी लिस्ट से हटाए गए हैं। 24 जून 2025 तक बिहार में कुल 7.89 करोड़ मतदाता थे। इनमें से 90.67% (7.16 करोड़) लोगों ने अपने एन्युमरेशन फॉर्म मतलब गणना प्रपत्र जमा किए हैं, और 90.37% फॉर्म डिजिटल रूप में दर्ज हो चुके हैं। विपक्ष लगातार पुनरीक्षण के खिलाफ बोल रहा है। सांसद के मॉनसून सत्र के तीसरे दिन से पहले 23 जुलाई को विपक्षी सांसदों ने संसद परिसर में विरोध-प्रदर्शन करते नज़र आये। 23 जुलाई 2025, बुधवार को लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ कई विपक्षी दल (SIR) का खंडन करते नज़र आये।
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