खबर लहरिया Blog जंग, देशभक्ति, इतिहास, रहस्य और प्रेम कहानी से भरपूर, बांदा का भूरागढ़ किला

जंग, देशभक्ति, इतिहास, रहस्य और प्रेम कहानी से भरपूर, बांदा का भूरागढ़ किला

Bhuragarh Fort of Banda

Bhuragarh Fort of Banda

वो कहते हैं ना, आप जितनी गहराई में उतरोगे, किसी भी चीज़ की गहराई उसके साथ ही और भी ज़्यादा गहरी होती जाएगी। ऐसा ही कुछ इतिहास के लिए भी कहा जा सकता है। जैसेजैसे हम इतिहास के करीब पहुँचने लगते हैं, वैसेवैसे वह और भी ज़्यादा रहस्य्मयी और नया हो जाता है। मानो, अभी तक जो भी जाना हो, वो सब बस इतिहास के कुछ पहलू ही हैं। तो आज हम आपको ऐसे ही किसी रोमांचक सफर पर लेकर जा रहे हैं, जहां आपको इतिहास, मोहब्बत और जंग सबका संगम मिलेगा। तो चलिए चलना शुरू करते हैं….. 

महोबा: बेलाताल के इतिहास की एक अदभुत कहानी 

भूरागढ़ किला, यूपी के जिला बांदा के केन नदी के पास बसा हुआ है। किले से ढलते सूरज को देखना, आँखों को एक अलग ही तरह की ख़ुशी देता है। किले का इतिहास और महत्व महाराजा छत्रसाल के पुत्रों बुंदेला शासनकाल और हृदय शाह और जगत राय से जुड़ा हुआ है। जगत राय के पुत्र कीरत सिंह ने 1746 में किले की मरम्मत करवाई थी। किले की देखरेख की ज़िम्मेदारी नोने अर्जुन सिंह को दी गयी थी।

इतिहास

Bhuragarh Fort of Banda

भूरागढ़ का इतिहास कुछ ऐसा है कि सन् 1787 में बाँदा का शासन अली बहादुर प्रथम के हाथों में गया। अली बहादुर प्रथम का युद्ध सन् 1792 के लगभग भूरागढ़ के प्रशासक नोने अर्जुन सिंह से हुआ। जिसके बाद किला कुछ समय तक नवाबों के शासन में रहा। लेकिन कुछ समय बाद ही राजाराम दाउवा और लक्ष्मण सिंह दाउवा ने किले को अपने अधिकार में ले लिया, जिसका शासन गुमान सिंह के नाती के हाथों में था। नोना अर्जुन सिंह पर ज़्यादा विश्वास होने की वजह से उन्हें बांदा का शासन सौंप दिया गया। लेकिन कुछ समय के बाद अर्जुन सिंह की मृत्यु हो गयी। जिसके बाद अली बहादुर किले पर शासन करने लगा। सन् 1802 में अली बहादुर की भी मौत हो गयी और किले का शासन गौरिहार महाराज के हाथों में चला गया। 

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किले से जुड़ा क्रांतिकारियों का इतिहास

ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ महान स्वतंत्रता संग्राम 14 जून 1857 को हुआ है। युद्ध का नेतृत्व बाँदा में अली बहादुर द्वितीय ने भूरागढ़ किले से किया। युद्ध सोच से भी ज़्यादा भयानक था। नवाबों द्वारा अंग्रेज़ों के खिलाफ इस लड़ाई में कानपूर, इलाहबाद और बिहार के क्रांतिकारी भी शामिल हुए। 5 जून 1857 को, क्रांतिकारियों ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट कॉकरेल की हत्या कर दी। मजिस्ट्रेट कॉकरेल को अंग्रेज़ों की अदालत में काले पानी और मृत्यु दंड की सज़ा सुनाई गयी। 16 अप्रैल 1858 को व्हिटलुक बांदा पहुंचे और उन्होंने बांदा की क्रांतिकारी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

Bhuragarh Fort of Banda

  इस लड़ाई में लगभग 3,000 क्रन्तिकारी भूरागढ़ किले में मारे गए। लेकिन बांदा के राजपत्र में सिर्फ 800 लोगों के ही शहीद होने का ज़िक्र किया गया। इस युद्ध में 28 व्यक्तियों के नाम विशेषतौर पर मिलते हैं। किले के अंदर और बाहर कई क्रांतिकारियों की कब्रें पायी जाती हैं। किला कई सालों तक ब्रिटिशों के अधीन रहा। लेकिन कुछ लोगों की वजह से किला विनाश की कगार पर पहुँच गया। तहखाने और निचली मंज़िले गंदगी और कचरे की वजह से नीचे दबकर रह गयी।

किले को माना जाता है, बलिदान और देशभक्ति का प्रतीक

 

भूरागढ़ का किला सिर्फ एक इतिहास का पन्ना या टुकड़ा नहीं है। जो की वक़्त के साथ पुराना हो जायेगा या ढह जायेगा। यह बलिदान, देशभक्ति, संप्रभुता और समानता का प्रतीक है। यह किला उस लड़ाई का गवाह है जहां अलगअलग संप्रदायों, नस्लों, समुदायों, धर्मों के लोगों ने एक दूसरे का हाथ थाम, विदेशी शासकों के खिलाफ लम्बी जंग लड़ी थी। और इसी लड़ाई में ब्रिटिश शासन से आज़ादी प्राप्त करने के लिए बाँदा को भारत का पहला शहर बनाया गया था। बाँदा का इतिहास अभी और आने वाली कई पीढ़ियों को गौरवांवित होने का मौका देता रहेगा।

मकर संक्रांति के दिन लगता हैआशिकों का मेला

मकर संक्रांति से 5 दिन पहले भूरागढ़ किले मेंआशिकों का मेलालगता है। अपने प्रेम को पाने के लिए हज़ारो जोड़े इस दिन यहाँ आकर विधिवत पूजा करते हैं और मन्नत मांगते हैं। हर साल इस किले के नीचे बना नटबाबा के मंदिर में मेला लगाया जाता है। मेले में दूरदूर से लोग आते हैं। कहते हैं कि यह जगह प्रेम करने वालों के लिए इबादगाह से कम नहीं है। जहां आकर उन्हें लगता है कि इस जगह मन्नत मांगने से उन्हें उनका मनचाहा प्रेम मिल जाएगा। हालांकि, इस मंदिर और नटबाबा के बारे में आपको इतिहास में कुछ नहीं मिलेगा। लेकिन बुंदेलियों के दिलों में आपको नटबाबा की कहानी ज़रूर मिलेंगी।  

क्या है नटबाबा मंदिर की कहानी ?

माना जाता है कि तकरीबन 600 साल पहले महोबा जिले के सुगिरा के रहने वाले नोने अर्जुन सिंह भूरागढ़ दुर्ग के किलेदार थे। किले से कुछ दूर मध्यप्रदेश के सरबई गाँव में रहने वाला नट जाति का 21 साल का युवक किले में नौकर था। किलेदार की बेटी को नट बीरन से प्यार हो गया। जिसके बाद वह अपने पिता यानी किलेदार से नट से शादी करवाने के लिए ज़िद्द करने लगी। नोने अर्जुन सिंह ने अपनी बेटी के सामने शर्त रखी कि अगर बीरन नदी के उस पार  बांबेश्वर पर्वत से किले तक नदी, सूत की रस्सी ( कच्चे धागे की रस्सी ) पर चढ़कर किले तक आएगा तभी उसकी शादी राजकुमारी के साथ करायी जाएगी। बीरन ने नोने अर्जुन सिंह की शर्त मान ली। ख़ास मकर सक्रांति के दिन वह सूत पर चढ़कर किले तक आने लगा। चलतेचलते उसने नदी पार कर ली। लेकिन जैसे ही वह किले के पास पहुंचा, नोने अर्जुन सिंह ने किले से बंधे सूत के धागे को काट दिया। 

  बीरन ऊंचाई से चट्टानों पर गिरा और उसकी मौत हो गयी। जब नोने अर्जुन सिंह की बेटी ने किले की खिड़की से बीरन की मौत देखी तो वह भी किले से कूद गयी और उसी चट्टान पर उसकी भी मौत हो गयी। दोनों प्रेमियों की मौत के बाद, किले के नीचे ही दोनों की समाधि बना दी गयी।  जिसे की बाद में मंदिर के रूप में  बदल दिया गया।

सत्ती चौरा क्या है ?

सन् 1762 में बांदा के नवाब युद्ध जीतने के लिए कालिंजर किले गए थे, तभी उनके साथ ही उनके खजांची नवाब भी युद्ध पर गए थे। लगभग एक साल तक युद्ध चला, जिसमें खजांची शहीद हो गए। तभी उनकी पत्नी भूरागढ़ किले के स्थान पर सती हो गयी। तभी से यह स्थान सत्ती चौरा के नाम से भी जाना जाने लगा।

राजाओं का एक पुराना कुआं

Bhuragarh Fort of Banda

कहा जाता है कि किले में राजाओं का कुआं भी था। स्थानीय लोग बताते हैं कि कुआं बहुत पुराना था जो की सही देखरेख होने के कारण अपनी छवि खोता गया। हालाँकि, सरकार द्वारा कुँए की मरम्मत के नाम पर थोड़ाबहुत कुछ काम किया था। लेकिन कुँए में आजतक पानी नहीं भरवाया गया, जिसकी वजह से कुंआ सिर्फ एक कूड़े का ढेर बनकर रह गया। किले के परिसर में एक बावली भी है। बावली में बरसात का पानी इकठ्ठा हो जाता है। बावली के बगल में ही किले का गुम्बद है, जो दूर से ही दिखाई देता है।

इस तरह से पहुंचे

हवाईजहाज सेसबसे करीबी हवाईअड्डा खजुराहो हवाईअड्डा है। यहां से भूरागढ़ किले की दूरी 150 किमी. है। आप खजुराहो हवाईअड्डे से किसी भी बस या यातायात के ज़रिये महोबा पहुँच सकते हैं। 

ट्रेन से बाँदा स्टेशन, यहां से किले की दूरी सिर्फ 3 किमी. है।

बस से बांदा बस स्टैंड 

बांदा, यूपी का जिला है, जो की सविधाओं से भरपूर है। यहां आकर आपको रहने या खानेपीने की फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं है। किला पूरे वक़्त खुला रहता है। लेकिन अगर आप सुबह आते हैं तो आपके पास पूरा किला घूमने का ज़्यादा समय होगा और आप किले के इतिहास को भी जान पाएंगे। और हाँ, अगर आप यहां मन्नत मांगने के लिए आना चाहते हैं तो मकर संक्रांति का दिन आपके लिए सबसे बेहतर होगा। इस दिन का अपना ही एक महत्व है। 

यह जगह अपने इतिहास, क्रांतिकारियों का जज़्बा, अंग्रेज़ो के खिलाफ जंग और दो प्रेमी जोड़ों की कहानी का प्रतीक है। जिसे लोग जब भी देखते हैं, किले से जुड़ी सारी चीज़ों खुद ही उनकी आँखों के सामने जाती है। यह किला अपने अस्तित्व और वास्तुकला से अपनी कहानी खुद ही कहता दिखाई पड़ता है। पर्यटकों के लिए यहां रोमांच, राज़, जंग , प्रेम और दुश्मनी सब मिलेगी। तो एक बार यहां ज़रूर आए और खुद भी महसूस करके देखिए कि किले की दीवारें आपसे अपनी क्या कहानियां बयां करती हैं।