खबर लहरिया आओ थोड़ा फिल्मी हो जाए 210 यात्रियों को बचाएगा बेलबॉटम : आओ थोड़ा फ़िल्मी हो जाते हैं

210 यात्रियों को बचाएगा बेलबॉटम : आओ थोड़ा फ़िल्मी हो जाते हैं

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब ? आप सभी को नवरात्रि की ढेरों शुभकामनाएं. मैं एक बार फिर हाज़िर हूँ कुछ फ़िल्मी गपशप लेकर तो चलिए थोड़ा फ़िल्मी हो जाते है.

अक्षय कुमार ने कई देशभक्ति और जागरूकता फैलाने वाले फिल्मों में काम किया है और उनके फ़िल्मी करियर में एक फिल्म और जुड़ गई जिसका नाम है बेलबॉटम। बेलबॉटम अस्सी के दशक में पहनी जाने वाली पेंट होती थी, जिसकी नीचे से चौड़ाई बहुत ज्यादा होती थी। अस्सी के दशक में बनी अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना की फिल्मों में यह फैशन नजर आता है। चूंकि फिल्म का टाइम पीरियड अस्सी के दशक के आसपास घूमता है इसलिए फिल्म का नाम बेलबॉटम रखा गया है, साथ ही इसमें रॉ के लिए काम करने वाले एजेंट की पहचान छुपा कर उसे बेलबॉटम का नाम दिया गया है। इस फिल्म को रंजीत एम तिवारी द्वारा निर्देशित किया गया है. जैकी भगनानी और निखिल आडवाणी के प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले बनी इस फिल्म की कहानी 1984 के एक हाईजैकिंग की घटना पर सेट की गई है. फिल्म में अक्षय कुमार के अलावा आदिल हुसैन, हुमा कुरैशी, लारा दत्ता और वाणी कपूर जैसे कई सितारे शामिल हैं.

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फिल्म बेल बॉटम की कहानी को आप सच्ची घटना पर आधारित नहीं कह सकते, लेकिन हां अगर इसे सच्ची घटना से प्रेरित कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. फिल्म की कहानी शुरू होती है उन 210 यात्रियों की चीखों और दर्दनाक आवाज के साथ, जिनकी फ्लाइट को आतंकियों द्वारा हाईजैक कर लिया गया है. हाईजैकिंग के बाद इस भारतीय यात्री विमान को अमृतसर में उतारा जाता है.

हाईजैकिंग की खबर दिल्ली पहुंचने में ज्यादा देर नहीं लगती और प्रधानमंत्री यानी लारा दत्ता तुरंत उच्च अधिकारियों के साथ मीटिंग करके हालात का जायजा लेती हैं. इस बीच कुछ मंत्री उन्हें पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से बात करने की सलाह देते हैं. वहीं, आदिल हुसैन जो फिल्म में एक बहुत ही दमदार भूमिका निभा रहे हैं. वह प्रधानमंत्री को सलाह देते हैं कि वह बेल बॉटम यानी अक्षय कुमार से एक बार मुलाकात करें. बेल बॉटम उस एजेंट का कोड नेम होता है पर असल में उसका नाम अंशुल हैं. इस कहानी में यानी हाइजैकिंग के घटना से अंशुल का एक परसनल जुड़ाव भी रहता है। और उसी जुड़ाव के साथ अंशुल अपने फुल प्लान के साथ 210 यात्रियों को बचाने और फ्लाइट में मौजूद चार आतंकवादियों को पकड़ने की तैयारियों में जुट जाता है. अब वो यात्रियों कैसे छुड़ा पाटा है छुड़ा पायेगा भी या नहीं इन सवालों के जवाब तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता लगेगा।

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फिल्म की खासियत की अगर बात करूँ तो कहानी अच्छी है क्योंकि इस घटना के बारे में ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। उस समय की राजनैतिक परिस्थितियां और हालात को अच्छी तरह से समझाया गया है। पाकिस्तान की कूटनीति को खासा स्थान दिया गया है। कहानी का प्लस पाइंट है ये कि मिशन ज्यादातर दिमाग से लड़ा जाता है और एक्शन इसमें कम है।

फिल्म की खामियां:

फिल्म कहीं-कहीं पर बेबी की याद दिलाती है। जिस तरह से इसका क्लाईमैक्स शूट किया गया है, लगता है कि ये बेबी 2 चल रही है। फिल्म के गाने रफ्तार रोकने का काम करते हैं। अगर ये फिल्म में न भी होते तो कोई खास नुकसान नहीं था।

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