बुंदेलखंड के बाँदा जनपद के हीरो शिवा सूर्यवंशी अपनी फिल्म में दिखाएंगे मैला ढोने की हकीकत बुंदेलखंड की लचर शिक्षा प्रणाली पर बनी फिल्म “मास्साब” को अब तक में चौबीस आवार्ड मिल चुके हैं और अब एक्स्क्रीटा
नाम की फ़िल्म जो कि मैला उठाने की कुप्रथा पर आधारित है वह भी फिल्म फेस्टिवल में आकर आवार्ड जीतने के लिए तैयार है। इन दोनों फिल्म के अभिनेता बुंदेलखंड के बांदा निवासी शिवा शूर्यवंशी हैं। मकर संक्रांति के त्यौहार पर शिवा अपने गाँव आये तभी खबर लहरिया टीम ने उनसे खास मुलाकात की।
चार बार बेस्ट एक्टर आवार्ड से सम्मानित शिवा शूर्यवंशी ने बताया कि एक्स्क्रीटा
फिल्म के निर्देशक आदित्य ओम को अपने मित्र जो जालौन निवासी हैं मैला ढोने की कुप्रथा के बारे में पता चला। फ़िल्म की शूटिंग भी उसी गांव में हुई जहां पर ये कुप्रथा इस सदी में भी चल रही है। यही नहीं फिल्म के किरदार भी उस गांव के लोग खुद हैं। एक मैला उठाने वाले परिवार के बच्चे के जीवन पर आधारित फिल्म है। शिवा का रोल उसमें सामाजिक कार्यकर्ता का है जो इस कुप्रथा की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसी कुप्रथाओ पर फिल्म बननी बहुत जरूरी है। उन्होंने ऐसिड अटैक पर बनी फिल्म ‘छपाक’ को भी सराहा।
शिवा शूर्यवंशी शिक्षक बैकग्राउंड से आते हैं और उन्होंने अपनी मंजिल अलग चुनी। आज का यूथ पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी मिलने की उम्मीद में बहुत समय गुजार देता है उनको शिवा जैसे यूथ से सीख लेनी चाहिए क्योकि शिवा का कहना है कि अपने रास्ते खुद सजाने पड़ते है और अपनी मंजिल भी खुद तय करनी पड़ती है।
फिल्म जगत क्षेत्र की चुनौतियों के बारे में भी शिवा सूर्यवंशी ने बताया कि जिस जगह शूटिंग होती है वहां के माहौल में खुद को ढाल पाना बड़ी बात होती है। लोगों को फिल्म में किरदार करने के लिए ढूंढना क्योकि हमेशा लोग कैमरे में आने से कतराते हैं। फिर जो लोग हमेशा कैमरे पर होते हैं उनको कैमरे के सामने कैसे पेश होना है, बॉडी लैंग्वेज कैसा होना चाहिए उनको पता होता है पर जो लोग पहली बार कैमरे में आ रहे हैं उनके पेश होने पर भी बहुत काम करने की जरूरत होती है।बांदा: बिजली कनेक्शन तो हुआ लेकिन लाइट के दर्शन नहीं
शिवा कई फिल्मों में काम कर चुके हैं। उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत 2011 से की थी। वह शिक्षक बैकग्राउंड से आते हैं इसलिए फिल्मी दुनिया में आने के लिए शुरूवात में परिवार से अनुमति मिलने की उम्मीदें कम थीं लेकिन रोल प्ले और उनके काम को देखकर परिवार ने सपोर्ट किया। मास्साब और एक्स्क्रीटा दोनों फिल्मों की बहुत बड़ी खासियत रही है कि सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर चोट किया गया है जो कि बहुत जरूरी है। फिल्म उसी इलाके में उन्हीं लोगों के बीच शूट गई जहां पर ये मुद्दा चल रहा है। सबसे बड़ी खासियत है बुंदेली भाषा।
शिवा और उनकी टीम की ऐसे मुद्दे पर आधारित फिल्म के लिए अवार्ड जीतने की कामना करते हैं और ऐसे मुद्दों पर चोट पहुंचाने के लिए खबर लहरिया टीम का सलाम!