खबर लहरिया Blog समाज की सोच को पीछे छोड़, अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों का दिल जीत रहीं रूपा #MainBhiRiz

समाज की सोच को पीछे छोड़, अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों का दिल जीत रहीं रूपा #MainBhiRiz

आज बांदा में हर पत्रकार उनकी हाज़िर जवाबी, साहस और आत्मविश्वास की मिसालें देता है। कई बार राजनीतिक से लेकर महिलाओं के मुद्दों पर जब पत्रकार रिपोर्टिंग करने से डरते हैं। लेकिन तब भी रूपा हमेशा पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए बेबाक रहती हैं।

कहते हैं कि अँधेरा छटने के बाद उजाला ज़रूर होता है , अगर उम्मीद न छोड़ी जाए तो एक न एक दिन जीत ज़रूर हासिल होती है। कुछ ऐसा ही जीवन रहा है, बांदा की पत्रकार रूपा गोयल का। रूपा छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गाँव से आती हैं जहाँ महिलाओं की शिक्षा का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है।

गाँव की हर लड़की की तरह रूपा को भी 14 साल की उम्र में शादी के बंधन में बाँध दिया गया था। जिसके बाद वो इस उम्मीद से अपने ससुराल बांदा आई थीं कि शायद उनके ससुराल वाले उनकी पढ़ाई पूरी करवाएंगे। लेकिन इतनी छोटी सी उम्र में विवाह के बोझ तले दबी रूपा को ससुराल में भी एक महिला होने का क़र्ज़ चुकाना पड़ा और वो सिर्फ घर के कामों में ही बंध कर रह गयीं। वो अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं, अपने बच्चों के लिए कुछ करना चाहती थीं, घर में आर्थिक रूप से अपना योगदान देना चाहती थीं परन्तु समाज का क्या कहेगा? जैसी सोच उनके और उनके सपनों के आड़े आ गई।

समाज की रूढ़िवादी सोच का शिकार हुईं रूपा-

साल 2012 में पति के देहांत के बाद रूपा के जीवन ने एक नया मोड़ लिया। घर में तीन बच्चों का पेट पालने से लेकर उनकी शिक्षा तक की ज़िम्मेदारी रूपा के कन्धों पर आ गिरी। पति की मृत्यु के बाद रूपा ने इलाहाबाद से नर्सिंग का कोर्स किया और एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी करना शुरू की, यहाँ पर डॉक्टर मोनिका सक्सेना ने रूपा की बहुत मदद करी। रूपा को इसके लिए महीने में 1500 रूपए मिलते थे जिससे वो अपने घर खर्च के साथ-साथ बच्चों की स्कूल की फीस भी भर्ती थीं।

रूपा को यूं घर से बाहर निकलकर काम करने जाना शायद आसपास के लोगों को रास नहीं आया और कुछ लोगों ने एक दिन उनके घर में घुंस कर उनको और उनके बच्चों के साथ मारपीट की, उनको शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और उनपर हर प्रकार के लांछन लगाए। रूपा ने अपने साथ हुई इस प्रताड़ना का पक्ष कई पत्रकारों के सामने रखा लेकिन कहीं से उन्हें सकारात्मक प्रक्रिया नहीं मिली। रूपा ने न्याय पाने के लिए और आरोपियों को सज़ा दिलवाने के कोर्ट कचेहरी के चक्कर भी काटे लेकिन उनकी फ़ाइल दफ्तर की बाकी फाइलों में मानो कहीं लुप्त ही हो गई।

महिलाओं की आवाज़ को दुनिया तक पहुंचाने के लिए रिपोर्टर बनने की ठानी-

कानपुर में खराब सडक की रिपोर्टिंग करते हुए

इस हादसे के बाद रूपा ने एक रिपोर्टर बनने की ठानी। उनका मानना था कि जो उन्होंने सहा है, वो कोई और महिला न सहे। वो महिलाओं की आवाज़ को दबाने से रोकने के लिए तत्पर थीं और हर उस महिला को दुनिया के सामने लाना चाहती थीं जो समाज की रूढ़िवादी सोच का शिकार हुई है। रूपा ने दिल्ली जाकर नेशनल वन न्यूज़ चैनल में रिपोर्टिंग का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 35 वर्षीय रूपा आज बतौर रिपोर्टर नेशनल न्यूज़ वन चैनल के लिए काम कर रही हैं। इसके साथ ही वो लखनऊ के दैनिक स्पेशल अखबार स्वतंत्र प्रभात के लिए भी लेख लिखती हैं। रूपा में सीखने की चाह हमेशा से ही थी, वो जो काम करती हैं उसे पूरी लगन और मेहनत के साथ करने को कोशिश करती हैं। रिपोर्टिंग की ट्रेनिंग लेने के लिए जब उन्हें फील्ड पर भेजा गया तो 80 फीसदी पुरुषों वाले पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें सिर्फ पुरुष ही मिले। लेकिन सीखने की लालसा रखने वाली रूपा ने माइक से लेकर कैमरा बिना किसी झिझक और डर के उठाया और सबका दिल जीत लिया। आज बांदा में हर पत्रकार उनकी हाज़िरजवाबी, साहस और आत्मविश्वास की मिसालें देता है। कई बार राजनीतिक से लेकर महिलाओं के मुद्दों पर जब पत्रकार रिपोर्टिंग करने से डरते हैं लेकिन तब भी रूपा हमेशा पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए बेबाक रहती हैं।

रिपोर्टिंग के साथ-साथ पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए भी रहती हैं तत्पर-

अपना एक ऐसा ही अनुभव साझा करते हुए रूपा ने बताया कि एक ग्रामीण युवती जिसे अगवा कर लिया गया था, युवती के घरवाले पुलिस के आगे गुहार लगा कर थक चुके थे। उन्होंने लगातार उसपर खबर करी और युवती को ढूंढने के लिए परिवार वालों की पूरी मदद करी। रूपा की रिपोर्टिंग और लगातार जारी कोशिश 6 दिन के अंदर ही रंग ले आई और पुलिस ने लड़की को ढूंढ निकाला। रूपा ने अपनी रिपोर्टिंग की सहयता से कई परिवारों को न्याय दिलवाया है और उनकी मदद की है। उन्होंने बताया कि उनकी मेहनत और लगन देख के आज कई लोग कहते हैं कि “भयी, कुछ तो बात है रूपा की रिपोर्टिंग में।”

रूपा खुले शब्दों में अपनी बात व्यक्त करने में विश्वास रखती हैं, जिसके परिणाम स्वरुप कई बार उन्हें कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। नेताओं से लेकर अधिकारियों तक आज कई लोग रूपा के तीर्व सवालों का जवाब देने में कतराते हैं और कई बार उन्हें जवाब देने से भी इनकार कर देते हैं। जब वो ग्रामीण क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करने जाती हैं तो कई बार महिलाओं से कुछ भी बुलवाना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन अपने सालों के अनुभव को रूपा बखूबी काम पर लाती हैं और महिलाओं को उनके हक़ के लिए आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित करती हैं।

कोरोना महामारी के बीच कर रही हैं लोगों की सहायता-

कोरोना महामारी के बीच रूपा ने न ही सिर्फ लोगों तक सही खबरें पहुंचाई बल्कि एक पूर्व नर्स होने के नाते कई कोविड संक्रमित लोगों की जान भी बचाई है। वो आज भी अस्पतालों से लेकर हर जगह की कोरोना से जुडी ख़बरों पर लगातार रिपोर्टिंग कर रही हैं, साथ ही जिन मरीज़ों को इलाज मिलने में मुश्किल होती है। रूपा ने घर जाकर उन मरीज़ों की मदद की और उन्हें दवाइयों से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों से फ़ोन के ज़रिये परामर्श उपलब्ध कराया है।

पारदर्शिता के साथ सही जानकारी जनता तक पहुंचाना है बड़ा काम-

जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश में पत्रकारों को कई बार अपने काम के कारण प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है और महिला पत्रकार तो ख़ास तौर पर ऐसे मामलों की शिकार होती हैं। रूपा का मानना है कि अगर सच्चाई दिखाना एक जुर्म है तो पत्रकारों को इस जुर्म को करने में झिझकना नहीं चाहिए, उनके मुताबिक़ पारदर्शिता के साथ सही जानकारी जनता तक पहुंचाना एक बहुत बड़ा काम है। इस काम को करने में कठिनाइयां तो ज़रूर आती हैं। लेकिन जब लोग उनके काम की सराहना करते हैं तो उन्हें ऐसे ही अपने काम को लेकर तत्पर रहने की प्रेरणा मिलती है। उनका कहना है कि कोई कितना भी रोक ले और उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश करले लेकिन एक पत्रकार की कलम को लिखने के लिए उठने से कोई नहीं रोक सकता।

नारीवादी सोच लोगों तक पहुंचाने का है उद्देश्य-

महिला जज के दफ्तर में रिपोर्टिंग करते हुए

रूपा ने बताया कि एक महिला रिपोर्टर होने के नाते उनका किसी भी खबर को करने का मुख्य उद्देश्य यही रहता है कि नारीवादी सोच को वो अपनी पत्रकारिता के ज़रिये लोगों तक पहुंचा सकें। वो महिला सशक्तिकरण के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं और जो महिलाएं घरेलू हिंसा या शारीरिक शोषण का शिकार हुई हैं, उनको न्याय दिलाने की भी रूपा पूरी कोशिश करती हैं। वो गाँव में लगने वाली चौपाल में भी महिलाओं की काउंसलिंग करने के लिए कई बार जाती हैं। यहाँ वो महिलाओं और युवतियों को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए जागरूक करती हैं, साथ ही उन्हें अपने मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए भी बताती हैं।

मिटता जा रहा है असली पत्रकारिता का अस्तित्व-

प्रेस आज़ादी दिवस के बारे में बात करते हुए रूपा का कहना है कि पत्रकारिता करना एक चौथा स्तम्भ माना जाता है, जिसका मकसद सिर्फ यही है कि लोग पत्रकार से सच की ही उम्मीद करते हैं। आज के ज़माने में जहाँ आधे से ज़्यादा न्यूज़ चैनल और मीडिया संस्थाएं अपना नाम बनाने और बस पैसा कमाने में यकीन रखती हैं, ऐसे में कहीं न कहीं असली पत्रकारिता का अस्तित्व मिटता सा जा रहा है। इन स्थितियों में भी रूपा का ध्यान बिना किसी मिलावट के और स्वतंत्र रिपोर्टिंग के साथ खबर को लोगों तक पहुँचाने में रहता है और वो न ही सिर्फ हमारे देश की आने वाली महिला पत्रकारों के लिए एक मिसाल हैं, बल्कि पुरुष रिपोर्टरों को भी उनके इस आत्मविश्वास से सीख ज़रूर लेनी चाहिए। हर तरह के भेदभाव, पक्षपात और ज़ुल्म को झेलने के बाद भी रूपा एक रिपोर्टर होने का कर्त्तव्य बखूबी निभा रही हैं। वो आगे चलकर पत्रकारिता के साथ-साथ नर्सिंग की सहायता से भी लोगों की सेवा करना चाहती हैं।

महिलाओं का अपने पैरों पर खड़ा होना है ज़रूरी-

हमारे देश की महिलाओं के लिए रूपा ने संदेश देते हुए कहा कि अपनी आवाज़ को दबने न दें, अपने हक़ के लिए ज़रूर लड़ें। कोशिश करें कि आप अपने पैरों पर खड़ी हों, आपको जिस भी क्षेत्र में दिलचस्पी है, उसमें करियर बनाएं। उनका कहना है कि समाज की बेड़ियों में कई महिलाएं दब के रह जाती हैं और अपने किसी अधिकार को नहीं पा पातीं, इसलिए हमारे समाज को भी अब पुरुष और महिलाओं में अंतर करना छोड़ के दोनों को एक ही नज़रिये से देखना चाहिए ताकि हर महिला एक खुशहाल जीवन जी सके और अपने सपनों की उड़ान भर सके।

इसके साथ ही वो चाहती हैं कि रिपोर्टरों और पत्रकारों का समर्थन सरकार को भी करना चाहिए और उनके लिए कुछ विकास योजनाओं और बीमा योजनाओं की शुरुआत करनी चाहिए ताकि देश के पत्रकारों का मनोबल बढ़ सके और वो अपने काम को और गुणवत्ता से करने में सक्षम हो सकें।

 

( नोट – यह आर्टिकल प्रेस फ्रीडम डे के एक सप्ताह की सीरीज़ का हिस्सा है। जो खबर लहरिया की रिपोर्टर रह चुकीं रिज़वाना तबस्सुम की याद में मनाया जा रहा है। यह 3 मई से 8 मई तक मनाया जाएगा। इस बीच हम आप लोगों के साथ ग्रामीण महिला पत्रकारों की कहानियां शेयर करते रहेंगे।)

इस सीरीज के अन्य भाग नीचे दिए गए लिंक पर देखें:

भाग 1: पत्रकारिता के लिए ली समाज से लड़ाई – ग्रामीण महिला पत्रकार शिवदेवी
भाग 2: एक ऐसी महिला पत्रकार जिसने हमले के बाद भी नहीं छोड़ी पत्रकारिता
भाग 3: समाज की सोच को पीछे छोड़, अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों का दिल जीत रहीं रूपा
भाग 4: “खबर बनाना ही नहीं, न्याय दिलाना भी मेरा काम है” – ग्रामीण युवा महिला पत्रकार सीता पाल
भाग 5: आन्दोलन ने दिखाई पत्रकारिता की राह – नवकिरण नट
भाग 6: अखबार बेच कर शुरू किया सफर, आज पत्रकारिता के ज़रिये दे रहीं समाज की सोच को चुनौती