बुखार आने के बाद गयी लोगों की जानें गयी हैं। कोरोना संक्रमण के डर की वजह से पूरे गाँव में शांति फैली हुई है।
बांदा: नरैनी तहसील में आने वाली नसेनी और जमवारा ग्राम पंचायतें जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर हैं। जो की नरैनी तहसील से लगी हुई है। इन दोनों गांवों में कोरोना संक्रमण के खौफ का सन्नाटा घर-घर देखा जा सकता है। दोपहर ही नहीं सुबह और शाम भी लोग अपने-अपने घरों से निकलने में परहेज़ करते हैं।
लगातार मौतों से फ़ैला डर
नसेनी ग्राम पंचायत के रिटायर लेखपाल सगीर अहमद ने हमें बताया कि 5 हज़ार की आबादी वाले इस गाँव में पंचायत चुनाव के बाद से ही सन्नाटा पसरा हुआ है। इसकी वजह उन्होंने गाँवो में हुई लगातार मौतों को बताया। वह बताते हैं कि 40 साल के शिक्षामित्र राकेश सोनी की चुनाव में ड्यूटी लगी थी। जब वह घर लौटें तो उन्हें खांसी-बुखार और गले में खराश की शिकायत हुई। जो की आमतौर पर कोरोना के लक्षण हैं। उन्हें दो दिन तक बुखार रहा। फिर डॉक्टरों की सलाह के अनुसार उनका इलाज चलता रहा। जब 25 अप्रैल को उनकी हालत गंभीर हो गयी तो परिवार उन्हें जिला मुख्यालय ले जाने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में ऑक्सीजन स्तर कम होने से उनकी रास्ते में ही मौत हो गयी।
वह आगे बताते हैं कि 2 मई को गाँव की ही अमीरन बीबी, 4 मई को मोमना और 70 वर्ष के मजरा गोरेपुरवा के रहने वाले बुज़ुर्ग कुल्लू की भी मौत हो गयी थी। इन्हें भी दो दिन तक बुखार था। उन्हें नरैनी अस्पताल लेकर जाया गया था। जहां डॉक्टरों ने गाड़ी में ही उन्हें देखकर दवा दे दी थी। फिर वापस घर भेज दिया था। जिसके बाद कोरोना से उनकी मौत हो गयी और पूरे गांव में डर का माहौल छा गया।
तेज़ बुखार के बाद गयी जान
अगर जमवारा ग्राम पंचायत की बात की जाए तो गांव की आबादी लगभग 48 सौ की है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी तकरीबन 42 किलोमीटर है। यहां भी कुछ लोगों की मौत के बाद ग्रामीणों ने खुद को अपने-अपने घरों में बंद कर लिया। गाँव की महिला बिट्टन को भी दी दिनों तक तेज़ बुखार रहा। परिवार बीमारी को लेकर कुछ समझ पाता। उससे पहले ही 10 मई को उसकी मौत हो गयी। संक्रमण और मौत के डर की वजह से ही दोनों गाँवों में सन्नाटे का माहौल है।
जब हमने गाँव वालों से गांव में सैनिटाइज़ेशन और आशा कार्यकर्ताओं द्वारा कोरोना महामारी को लेकर जागरूकता फैलाने और दवा की किट के बारे में पूछा कि उन्हें दिया जाता है या नहीं। इसे लेकर उनका कहना था कि आशाएं ज़्यादातर गाँव में नहीं घूमती। जिनकी भी अभी तक मौतें हुई। सब बुज़ुर्ग थे। नसेनी के राकेश और जमवारा के मंसूर ने बताया कि उनके गांव में न तो कोई आशा बहू लोगों के हालचाल लेने आती हैं। न ही सैनिटाइज़ेशन कराई जाती है।
जिस तरह से लोगों की मौतें बुखार होने के बाद गयीं हैं। यह लोगों में कोरोना महामारी के लक्षणों के बारे में कम जागरूकता और इलाज की कमी की तरफ इशारा करता है। साथ ही लोगों ने यह भी बताया कि गाँव में न तो सैनिटाइज़ेशन का कार्य किया गया है और न ही किसी प्रकार की जागरूकता फैलाई गयी है। यही कारण है कि लोगों में भयावह का माहौल बना हुआ है। लोग इस बात से भी जागरूक नहीं है कि कोरोना के शुरूआती लक्षण क्या हैं ताकि वह इलाज करा सकें। जैसे की हमें शिक्षामित्र राकेश सोनी और महिला बिट्टू के मामले में देखने को मिला। सभी मौतें तेज़ बुखार होने के बाद गयी। यह मौतें साफ तौर पर लोगों में जागरूकता की कमी को दर्शाती हैं।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए गीता देवी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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