बाँदा जिले के महुआ ब्लॉक के मनीपुर गाँव की दलित बस्ती में साल भर से न तो सफाई हुई है और न ही कोई सफाई कर्मचारी पहुंचे हैं।
जिला बांदा। सरकार स्वच्छता अभियान को लेकर कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम चलाती है। बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन अगर इसकी जमीनी हकीकत देखी जाए तो वह कुछ और ही बयां कर रही हैं। जबकि सफाई के लिए हर ग्राम पंचायतों में सफाई कर्मियों की नियुक्ति हुई है और वह अच्छा खासा वेतन भी उठा रहे हैं, लेकिन कहीं-कहीं पर तो हाल यह है कि गंदगी के अंबार लगे हुए हैं। क्योंकि सफाई कर्मी सालों से गांव में नजर नहीं आए।
बीमारियाँ फैलने का बना है डर
अगर मैं बात करूं बांदा जिले की तो इस जिले के अंतर्गत आने वाले ब्लॉक महुआ के ग्राम पंचायत मनीपुर गाँव में पिछले साल से आज तक लोगों ने सफाई करने वाले को नहीं देखा और वहां नाली नाले गंदगी से भरे बजबजा रहे हैं। यहां तक कि लोगों के दरवाजों में नालों का गंदा पानी भर जाता है जिससे लोग काफी परेशान हैं। और कई तरह की बीमारी फैलने का ग्रामीणों को डर बना हुआ है।
स्थानीय निवासी रामअवतार बताते हैं कि दलित बस्ती में नाली और नाला निकला है जो पिछले लॉकडाउन के समय से सफाई ना होने के कारण पूरी तरह से भर गया है। इतना ज्यादा बदबू मारता है कि उनको दरवाजे में बैठना और रात में नींद भर सोना मुश्किल हो जाता है। रात को 12 बजे तक वह घर के बाहर इधर-उधर टहलते रहते हैं। अभी जून के महीने में उनके यहां शादी थी जिस कारण वह बाहर से आकर तुरंत शादी में बिजी हो गए नहीं तो वह खुद अपने दरवाजे की सफाई कर लेते। पिछले साल भी उन्होंने अपने दरवाजे की सफाई की थी। उनका कहना है कि गांव में सफाई कर्मी लगे हुए हैं और वह वेतन उठाते हैं लेकिन साफ-सफाई का ध्यान नहीं देते हैं। जबकि उन्होंने कई बार सफाई के लिए कहा भी लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। वह चाहते हैं कि जल्द से जल्द उनके मोहल्ले के नालों की सफाई हो जाए ताकि लोग चैन की सांस ले सके।
धुआं करके ग्रामीण भगाते हैं मच्छर
इसी तरह गांव की कमला बताती है कि वह दलित वर्ग से हैं किसी तरह भी गुजारा कर लेंगी लेकिन अगर किसी बड़े लोगों की बस्ती होती तो वहां इतनी ज्यादा गंदगी नहीं होती। और बराबर सफाई भी हो रही होती। उनके मोहल्ले में 1 साल से किसी ने सफाई कर्मी को नहीं देखा। बदबू के कारण वह आए दिन परेशान रहते हैं उनका जीना मुश्किल हो गया है। उन्हें डर है अगर इस नाले को साफ कराने के लिए जल्दी ध्यान नहीं दिया गया तो इस तरह की बदबू में बरसात के मौसम में डायरिया बुखार जुकाम जैसे के कई तरह की बीमारियां न हो जाये।
बड़े बुजुर्ग तो किसी तरह मुंह दाब कर निकल भी जाते हैं लेकिन छोटे-छोटे बच्चों को तो वहीं पर दिनभर खेलना है वह अपने घर और मोहल्ले से कहां जाएंगे? इसलिए उन्हें बहुत ज्यादा डर बना हुआ है। गंदगी के कारण मच्छर की पैदावार ज्यादा हो गई है। लाइट भी गांव में बराबर नहीं रहती ना ही उनके पास उस तरह की व्यवस्था है कूलर पंखा की इसलिए वह खुले में आंगन में ही सोते हैं। जहां रात भर उनको मच्छर काटते हैं। किसी तरह दुआ धाकड़ करके मच्छरों को भगाते हैं लेकिन पूरी रात वह भी नहीं हो पाता। इसलिए उनकी रात में नींद तक पूरी नहीं हो पाती।
कमला कहती हैं कि अगर उस नाली और नाले की सफाई हो जाए तो उनको बहुत आराम हो जाएगा। जहां पर 1 साल से सफाई ना हुई हो वहां की स्थिति क्या होगी इसका एहसास वह इस गंदगी से महसूस कर रही है। और अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब उनके मोहल्ले में बीमारी दस्तक दे नहीं चुकी होगी। अभी भी कई लोग बीमार रहते हैं जिनको आए दिन अस्पताल में लेकर खड़ा होना पड़ता है। कमला कहती है कि एक तरफ तो सरकार कहती है कि साफ सफाई का ध्यान दें और कोरोना से बचें दूसरी तरफ इस तरफ गाँव में इस तरह की गंदगी और सफाई कर्मी गांव से नदारद रहते हैं। ऐसे में कैसे लोग साफ-सफाई का ध्यान दे पाएंगे।
ऐसी ही है कई और गांवों की दुर्दशा
इसी तरह महुआ ब्लाक के अंतर्गत आने वाले मोतियारी गांव में भी नाली कचरे से भरी हुई है, और जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ है। वहां के लोगों का कहना है कि यहां भी लगभग 3 महीनों से नाली की सफाई नहीं हुई है जिसके कारण पूरी तरह से गंदगी से भरी नालियां बज बजा रही हैं। और नाली बज बजाने से मच्छर बहुत ज्यादा बढ़ रहा है ना तो नालियों की सफाई का ध्यान दिया जाता और ना ही कभी यहां पर दवा का छिड़काव होता है। जिससे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
लेकिन आशाकार्यकर्ता ने नहीं किया गाँव में दवा का छिडकाव। नरैनी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ बीएस राजपूत का कहना है कि दवा का छिड़काव करने के लिए आशाओं को जिम्मेदारी दी जाती है और उन्हीं के द्वारा गांव में छिड़काव होता है।
जहाँ प्रधान कहते हैं वहां होती है सफाई- सफाईकर्मी
मनीपुर गांव में नियुक्त सफाई कर्मी विकास वर्मा का कहना है की जहां-जहां प्रधान कहते हैं वहां-वहां वह सफाई करते हैं। अभी 3 महीने से उनकी 11 लोगों की टोली बनी हुई है और वह हर गांव में जा जाकर सफाई का काम करते हैं। पिछला जो प्रधान था उसने ट्राली नहीं दिलाई थी तो नालियों का कूड़ा निकालने के बाद वही रख दिया जाता था। क्योंकि कूड़ा उठाने के लिए कूड़ागाड़ी नहीं थी इसलिए कूड़ा दुबारा नाली में गिर जाता था इसलिए नाली तुरंत भर जाती थी। अब नया जो प्रधान है तो वह ट्राली की मांग करेंगे। और जब टोली का काम खत्म हो जाएगा तो कोशिश करेंगे कि उस मोहल्ले की भी सफाई करें। जब सफाईकर्मी विकास वर्मा पूछा गया कि क्या वह दलित बस्ती में सफाई करने गए हैं कभी या नहीं? तो इस बात का जवाब नहीं दिया और यह कहा कि जहां पर उसको प्रधान द्वारा कहा जाता है वहां पर वह जाता है।
कितनी अजीब बात है न कि सफाई के लिए भी गाँवो में भेदभाव हो रहा है। आखिर क्यों प्रधान या सफाई कर्मी द्वारा इस तरह से दलित बस्तियों को अनदेखा किया जाता है? क्या वहां के लिए बजट नहीं आता? इस बात पर उच्चधिकारियों को संज्ञान लेना चाहिए और इसपर कार्यवाई करनी चाहिए।
इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है।
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