बांदा। देश के प्रसिद्ध विचारक और सामाजिक एवं पर्यावरण कार्यकर्ता के.एन. गोविंदाचार्य 11 सितंबर को बड़ोखर खुर्द गांव में स्थित ह्यूमन एग्रेरियन सेंटर में आयोजित राष्ट्रीय चिंतन शिविर में शामिल हुए। गोविंदाचार्य इन दिनों यमुना यात्रा एवं अध्ययन प्रवास पर हैं। उनका यह कार्यक्रम 28 अगस्त से 15 सितम्बर तक है।
सबसे बड़ी बात यह कि राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक, विचारक और संगठक के.एन. गोविंदाचार्य ने पर्यावरण और प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में विकास की बेलगाम दौड़ पर चिंता व्यक्त की। कहा कि प्रकृति आधारित संतुलित विकास के लिए सरकार और समाज के बीच आपसी तालमेल की जरूरत है। इसके लिए अनिवार्य शर्त है कि विकास की राह पर समाज आगे और सरकार पीछे चले।
ये भी देखें :
गोविंदाचार्य ने पिछले एक पखवाड़े से चल रही यमुना यात्रा और अध्ययन प्रवास के दौरान शुक्रवार को यहां बड़ोखर खुर्द स्थित ह्यूमन एग्रेरीयन सेंटर में छात्रों के साथ संवाद परिचर्चा को संबोधित करते हुए पर्यावरण एवं प्राकृतिक संतुलन के साथ विकास को समय की मांग बताया। राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के संयोजक के रूप में राष्ट्रवाद के प्रखर विचारक गोविंदाचार्य 28 अगस्त से यमुना यात्रा एवं अध्ययन प्रवास पर हैं। यात्रा के 16वें दिन शुक्रवार को बड़ोखरखुर्द गांव में एक दिन के प्रवास पर किसान विद्यापीठ पहुंचे। इस दौरान उन्होंने प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह के स्थापित ह्यूमन एग्रेरीयन सेंटर में देश के विभिन्न भागों से आए कृषि के छात्रों के साथ पर्यावरण सम्बंधी समकालीन मुद्दों पर मंथन किया।
प्रकृति के साथ समन्वय स्थापित करते हुए कृषि की आवर्तनशील पद्धति का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रों का समूह ह्यूमन एग्रेरीयन सेंटर में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है। ग्वालियर विश्वविद्यालय के अलावा कोलकाता विश्वविद्यालय और कर्नाटक के कृषि स्नातक के छात्र शामिल हैं। प्रशिक्षण के समापन सत्र में छात्रों ने अपने अनुभव गोविंदाचार्य के साथ साझा किए। छात्रों ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने कृषि की मौजूदा पद्धति में प्रकृति के संतुलन पर हो रहे कुठाराघात की चिंताजनक स्थिति को समझा। साथ ही पर्यावरण संतुलन पर आधारित जैविक खेती की आवर्तनशील खेती के उपायों को वे सभी व्यावहारिक उपयोगिता के साथ अपनाएंगे।
छात्रों को संबोधित करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा कि अर्थव्यवस्था जब समाज के नियंत्रण में होती है, तब उसके सुखकारी परिणाम मिलते हैं। लेकिन चुनिंदा हाथों के नियंत्रण में अर्थतंत्र के आने पर आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक असंतुलन पैदा होता है। इससे अमीर-गरीब की खाई बढ़ती है और बोनस पर्यावरण ध्वंस भी देखने को मिलता है। उन्होंने आगाह किया कि स्थिति अभी नहीं सुधरी तब फिर हालात बेलगाम हो जाएंगे।
ये भी देखें :
नए फैशन को पीछे छोड़कर प्रकृति की सेज में हुई शादी की रस्में
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)