विश्व मानवाधिकार दिवस पर लाइव चर्चा में जुड़े सदस्यों में सबसे ज्यादा इस बात का जोर रहा कि हर स्तर पर होते भेदभाव और वर्तमान में चल रही आर्थिक स्थिति के कारण हमारे देश में लगातार मानवाधिकार का हनन होता चला जा रहा है। आज विश्व मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में बहुत लोग मिठाईयां बांटेंगे, खुशी मनाएंगे और मानवाधिकार के हनन की बात करेंगे पर कल फिर भूल जाएंगे। या यूं कहें कि खुद भी कहीं न कहीं मानवाधिकार हनन के भागीदार बनेंगे। दुनिया के हरेक इंसान को जन्म होते ही मिलने वाले जन्म सिद्ध अधिकार ऐसे में कैसे मिल पाएंगे?
चर्चा में मौजूदा सरकार और उसकी भारतीय जनता पार्टी पर सवाल उठे। सवाल उठाना जायज भी है क्योंकि जवाबदेही के तौर पर सरकार से ये सवाल उठाना वाजिब है। हमारे समाज के लोग अपने मुखिया को देखकर ही आगे बढ़ते हैं। अगर मुखिया की लचर व्यवस्था है तो उसी व्यवस्था का निर्माण होगा और वही भविष्य होगा। ऐसी स्थिति में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हमारा देश और समाज किस क्रांति की ओर बढ़ रहा है। यहां पर ये भी बहुत जरूरी है कि बदलाव अपने घर, पड़ोसी, मोहल्ला से शुरू करना होगा। जिस मानवाधिकार के हनन की बात की जा रही है वह हनन हम ही लोग तो एक दूसरे का करते हैं। हां ये बात और है कि अपने से कमजोर लोगों के अधिकारों का हनन करते हैं किसी ताकतवर का हनन करने की क्षमता कमजोर में नहीं होती। वह किसी भी स्तर से कमजोर या ताकतवर हो सकता है जैसे को साम, दाम, दंड और भेद।छतरपुर और अयोध्या में समाधान दिवस में लोगों ने रखी अपनी मांगे, दिया ज्ञापन
मानवाधिकार दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। मानवाधिकार में स्वास्थ्य, आर्थिक, सामाजिक, और शिक्षा का अधिकार भी शामिल हैं। मानवाधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं उन्हें देने से वंचित नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के कार्यक्षेत्र में बाल विवाह, स्वास्थ्य, भोजन, बाल मजदूरी, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति और जनजाति आदि के अधिकार आते हैं। हालांकि इसके बावजूद देश के अलग-अलग राज्यों से मानवाधिकारों के उल्लंघन की दिल दहला देनी वाली घटनाओं की खबरें आती रहती हैं।
विश्व मानवाधिकार दिवस को मानवाधिकार के प्रति जानरूक करने के लिए रखा गया है। पर क्या होगा जागरूक होने से जब यह प्रवृत्ति या रूढ़िवादी सोच बन चुकी है कि गरीब और गरीब होगा, अमीर और ज्यादा अमीर। मानवाधिकार लेने और देने में भेदभावपूर्ण सोच आज की नहीं बहुत पहले से चली आ रही है, क्या इसमें कभी सुधार हो पायेगा? क्या हम खुद इतने सहज हो पाएंगे कि मानवाधिकार का हनन न करें न ही होने दें?