कोरोना महामारी के कारण पिछले कई महीनों से बंद चल रहे प्रदेश के आंगनबाड़ी केंद्र केंद्र सरकार के निर्देश पर 1 अक्टूबर 2021 से खुल गये हैं। अभी यह केंद्र सप्ताह में केवल दो ही दिन खुलेंगे लेकिन पोषाहार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जिससे बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र नहीं पहुँच रहे हैं।
जिला वाराणसी, ब्लॉक चिरईगांव, गांव पनिहारी की गुंजा का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते करीब दो साल बाद आंगनबाड़ी केन्द्रों का ताला खुला है लेकिन सुविधाएँ अभी पूरी तरह से लागू नहीं हुई हैं। बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र पर जाने के लिए उत्साहित हैं लेकिन गाँव में तैनात सहायिका अभी बच्चों को लेने नहीं आई हैं। जो बच्चे केंद्र पर पहुँच भी रहे हैं उन्हें दलिया दी जा रही है। गुंजा बताती हैं कि उनका बेटा 3 साल का है लेकिन उनके बच्चे को कोई सुविधा नहीं मिली।
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जनता की शिकायतों को किया जा रहा अनदेखा
पूजा का कहना है कि सरकार तो कई प्रकार की योजना चला रही है। चाहे पोषाहार हो चाहे दलिया बच्चों को दिया जाता था लेकिन क्या वह बच्चों या गर्भवती महिलाओं को मिल पा रहा है? नियम तो लग गया है लेकिन क्या जमीनी स्तर पर कभी इसकी जांच हुई? अगर जनता शिकायत करती है तो उसे अनदेखा कर दिया जाता है। या मौके पर कोई आला अधिकारी आते हैं तो लोगों को बोलने ही नहीं दिया जाता है। उन्हीं व्यक्ति से मिलाया जाता है जो उनके खास हो या उनकी सुने और बाकी जनता तो ताकती रह जाती है। कुछ होने वाला नहीं है इस सरकार में। यह सरकार बस लालच देती है बाकी कुछ नहीं।
मिडडे मील बंद होने से कम हुई बच्चों की रूचि
शकुंतला आंगनबाड़ी सहायिका का कहना है कि 1 अक्तूबर से स्कूल तो खुल गया है लेकिन जिस तरह से पहले बच्चे आते थे अभी नहीं आ रहे हैं। बच्चों को खाना और पोषाहार भी दिया जाता था और बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी खेलते थे लेकिन अभी बच्चों में वह लालच नहीं रहा क्योंकि अब खाना बंद हो गया है। अब सूखा राशन दिया जाता है। सरकार को इस पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि छोटे बच्चे लालची होते हैं उन्हें 4 से 5 घंटे तक भूखे कैसे रह सकते हैं। अभी शुरुआत है तो 5 या 6 बच्चे ऐसे ही हर दिन आते हैं। बच्चों की संख्या बढ़ेगी तो और भी कुछ सोचा जाएगा ताकि बच्चे बराबर आयें।
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बच्चों के लिए लागू हो पहले जैसा नियम- सीमा आशा कार्यकर्ता
सीमा आशा कार्यकर्ता ने हमें बताया कि जिस तरह से कोविड-19 का दौर चल रहा था उसकी वजह से लगभग 2 साल तक आंगनबाड़ी केंद्र बंद था। और पहले उनके और ग्राम प्रधान के ज्वाइनिंग खाते में पैसे आते थे उस पैसे से स्कूल में खुद खाना बनाकर बच्चों को खिलाया जाता था। लेकिन सरकार ने अब लागू किया है कि बच्चों को सूखा राशन जैसे दलिया और तेल मिलना चाहिए जो उनके हिसाब से बहुत ही गलत है। क्योंकि छोटे-छोटे बच्चे लगातार कुछ न कुछ खाने को मांगते हैं वे बहलाने-फुसलाने से नहीं मानते हैं। जो दलिया और तेल है उसे तो महीने में एक बार ही देंगे लेकिन जो पहले का पोषाहार था उसे बच्चों को रोज देना पड़ता था।
सीमा का कहना है की उनकी सरकार से यही गुजारिश है कि जिस तरह से पहले का पोषाहार था वह लागू किया जाए क्योंकि छोटे बच्चों को इतनी टाइम तक रोकना उनके बस की बात नहीं है। इसकी आवाज उन्होंने कई बार सुपरवाइजर तक उठाई लेकिन उनका कहना है कि जब प्रशासन से जो नियम लागू होगा वही वह करेंगे। प्रशासन ने जितनी भी योजनाएं चालू की थी पोषाहार से संबंधित सारा बंद कर दिया। यही वजह है कि पहले की संख्या 20 से 25 होती थी और आज बच्चों की संख्या 4 या 5 है। वह भी कुछ ही देर में भाग जाते हैं। इसकी शिकायत कई बार सुपरवाइजर से किया लेकिन वह बातों को नजरअंदाज कर देती हैं। कहती हैं जब सरकार की तरफ से आएगा तभी तो नियम में लागू किया जाएगा। सीमा का कहना है कि वह चाहती हैं कि प्रशासन इस पर गौर करे कि यह छोटे बच्चे हैं जब तक इन्हें बराबर पोषाहार नहीं मिलेगा वह आंगनबाड़ी केंद्र में कैसे रह पाएंगे।
क्या कहती हैं सुपरवाइज़र ?
सुपरवाइजर वंदना का कहना है कि आंगनबाड़ी केंद्र हफ्ते में 2 दिन खुलेगा। पहले जैसे पोषाहार हर रोज दिया जाता था अब वह नहीं मिलेगा। बच्चों को सूखा राशन, तेल और दाल जो प्रशासन की तरफ से आया है वही बच्चों को दिया जा रहा है। अब जिस तरह से प्रशासन जो लागू करेगी वही वह बच्चों को दे पाएंगी।
इस खबर की रिपोर्टिंग सुशीला देवी द्वारा की गयी है।
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