खबर लहरिया Blog बच्चों, युवाओं और किशोरी बालिकाओं में पाया गया कुपोषण – यूपी 

बच्चों, युवाओं और किशोरी बालिकाओं में पाया गया कुपोषण – यूपी 

यूपी में आज भी कई बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। कुपोषण छोटे बच्चों से लेकर, युवाओं और किशोरी बालिकाओं में देखा गया।

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कोरोना महामारी के इस दौर में ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जो आज भी मानव जीवन को धीरे धीरे अपना शिकार बना रही हैं। लेकिन उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इन्हीं में एक कुपोषण भी है, जो बच्चों, युवाओं विशेषकर किशोरी बालिकाओं में काफी पाया जा रहा है। इसका नकारात्मक प्रभाव आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य पर देखने को मिलेगा। शरीर के लिए आवश्यक संतुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। इसके कारण बालिकाओं और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जिससे वह आसानी से कई तरह की बीमारियों की शिकार बन जाती हैं।

शरीर के लिए आवश्यक सन्तुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। अत: कुपोषण की जानकारियाँ होना अत्यन्त जरूरी है। कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है।

कुपोषण होने के लक्षण

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कुपोषण को कैसे पहचानें यदि मानव शरीर को सन्तुलित आहार के जरूरी तत्त्व लम्बे समय न मिलें तो यह लक्षण दिखते हैं। जिनसे कुपोषण का पता चल जाता है। यह इस प्रकार हैं :-

1. शरीर की वृद्धि रुकना।
2. मांसपेशियाँ ढीली होना अथवा सिकुड़ जाना।
3. झुर्रियाँ युक्त पीले रंग की त्वचा।
4. कार्य करने पर शीघ्र थकान आना।
5. मन में उत्साह का अभाव चिड़चिड़ापन तथा घबराहट होना।
6. बाल रुखे और चमक रहित होना।
7. चेहरा कान्तिहीन, आँखें धँसी हुई तथा उनके चारों ओर काला वृत्त बनाना।
8. शरीर का वजन कम होना तथा कमजोरी।
9. नींद तथा पाचन क्रिया का गड़बड़ होना।
10. हाथ पैर पतले और पेट बढ़ा होना या शरीर में सूजन आना (अक्सर बच्चों में)। डॉक्टर को दिखलाना
चाहिए। वह पोषक तत्त्वों की कमी का पता लगाकर आवश्यक दवाइयाँ और खाने में सुधार के बारे में
बतलाएगा।

हमने उत्तर प्रदेश के कई जिले से कुपोषण पर लगभग 8 अलग सटोरियों पर कवरेज की। खासकर आदिवासी बस्तियों के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बहुत ही गंभीर देखने को मिली। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताएँगे उन गांवों का हाल कि वहां कुपोषण की क्या स्थिति है।

किशोरियों में खून की कमी

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हमने पन्ना जिले से किशोरियों के स्वास्थ्य पर कवरेज किया जहाँ किशोरियों में खून की कमी निकलकर सामने आई। ग्राम पंचायत कुंवरपुर की किशोरी श्री देवी जिनकी आयु 16 वर्ष है और वह कुपोषित हैं इनके द्वारा बताया गया कि इनका वजन 24 किलो है लेकिन उनकी उम्र 30 से 35 किलो के बीच होनी चाहिए। जब यहाँ की आशा कार्यकर्ता अनीता से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वैसे तो किशोरियां ठीक हैं लेकिन कभी-कभी जब ऐसी स्थिति आती है तो उनको एनीमिया की टैबलेट दी जाती है। किशोरियों को अच्छे पौष्टिक आहार खाने के लिए बोला जाता है। ताकि किशोरियां स्वस्थ हो सके।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अजयगढ़ के फूलचंद्र खंड प्रचार प्रसारक द्वारा बताया गया कि कुपोषित बच्चियों के लिए कार्यक्रम भी किए जाते हैं। स्कूलों में और आंगनवाड़ी केंद्रों में एनीमिया की गोली पहुंचाई जाती है और एचआईवी की जांच भी की जाती है। अगर कोई किशोरी कमजोर दिखती है तो उसके लिए डॉक्टर से सलाह लेकर ब्लड दिलवाया जाता है। और अगर यहां व्यवस्था नहीं होती है तो जिला रेफर कर दिया जाता है।

भर्ती होने से पहले से ही हुई बच्चे की मौत

ललितपुर जिले के महरौनी ब्लॉक के छपरट गांव की आदिवासी बस्ती में हर घर में बच्चे कुपोषित हैं। एक बच्चा जिसकी पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती करने की बात चल रही थी उसकी 15 अगस्त के दिन मौत हो गई। मृतक बच्चे की माँ श्रीदेवी ने बताया जब जाँच कराई तो उसमें खून की कमी और शरीर में सूजन
बताई। शाम तक आराम नहीं हुई और बच्चे की मौत हो गई। पहले से इलाज चल रहा था जहाँ से उन्हें शरीर मालिश करने के लिए तेल दिया गया था लेकिन आराम नहीं। जब टीकमगढ़ अस्पताल में इलाज के लिए ले गये तो डॉक्टर ने पीलिया बताया। काफी इलाज कराने के बाद भी वह अपने बच्चे को बचा नहीं
पाई।

छरपट गाँव के ही पूर्व प्रधान के घर में एक साल की लड़की को कुपोषित बताया जा रहा है। सोच का रोमटे खड़े हो जाते हैं कि एक साल की बच्ची में कुपोषण कैसे हो सकता है एक लड़की उम्र एक साल जो पूर्व प्रधान के घर से है वह अति कुपोषित है? यही हाल मड़ावरा ब्लाक के गांव रनगांव और गिदवाहा में भी बच्चे कुपोषित हैं। गिदवाहा की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मुन्नी राजा बुंदेला ने बताया कि उनके गांव में तीन बच्चे अति कुपोषित हैं। कोरोना के कारण वह पोषण पुनर्वास केंद्र नहीं जा पाए।

उत्तर-प्रदेश में करीब 4 लाख बच्चे कुपोषित

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कुपोषण को कम करने के उद्देश्य से मंत्रालय ने 2017-18 से 2020-21 तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 5,312.7 करोड़ रुपये जारी किए हैं, जिसमें से 31 मार्च तक 2,985.5 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया है।  महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से बताया गया कि देश में 9.3 लाख (6 महीने से 6
साल के बीच) से अधिक 39 गंभीर कुपोषित बच्चों की पहचान की गई है। इसमें उत्तर-प्रदेश से करीब 4 लाख बच्चे हैं।

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि ICSD-RRS पोर्टल (30 नवंबर, 2020 तक) के अनुसार, देश में 9,27,606 गंभीर रूप से कुपोषित की पहचान की गई है, जिनमें से 3, 98,359 उत्तर प्रदेश से हैं।

कोरोना काल में आंगनबाड़ी केंद्र की भूमिका रही नकारात्मक

2018 में महिला एवं बाल पोषाहार विभाग की तरफ से किये गए एक कार्यक्रम में गिदवाहा और रनगांव में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे निकल कर आये थे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का कहना है कि तब से स्थिति में सुधार हो गया है। इसकी हकीकत जानने के लिए हमने गिदवाहा की आदिवासी बस्ती में गर्भवती महिला ममता और धात्री हल्ली से बात की तो पता चला कि जब से कोरोना महामारी है तब से दो तीन बार ही उनको पोषाहार दिया गया। बाकी महीनों में उनको पोषाहार ही नहीं मिला है। ऐसे में उनका बच्चा और वह कैसे स्वस्थ होंगे?

टीकमगढ़ जिले के अनगढ़ा आदिवासी बस्ती में कुपोषण ने अपना पैर पसार लिया है। अनगढ़ा की रहने वाली फूलवती आदिवासी ने बताया कि है उनका आठ माह का लड़का है जो जन्म से ही कमज़ोर है। वह मजदूरी करके अपना और बच्चों का भरण-पोषण करती हैं। जंगलों से लकड़ी काटना और उनको बेंचकर परिवार का भरण-पोषण करना उनका पेशा है। उनका कहना है की उनके पास और कोई रोजगार नहीं है जो घर से किया जा सके और बच्चों की भी देखभाल हो पाये।

हनी आदिवासी ने बताया कि वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को जानती ही नहीं क्योंकि वह गाँव में कभी नहीं आई। तो उनको कैसे पता होगा की उन्हें क्या-क्या सुविधाएँ मिलती हैं। कल्लू ने बताया कि हर घर में दो- तीन कुपोषित बच्चे मिल जायेंगे। अपना और बच्चों का पेट पालना मुश्किल हो रहा है। यहाँ कोई आता नहीं है की महिलाओं को सलाह दें जिससे कुपोषण से निपटा जा सके। यही वहज है कि यहाँ के ज्यादातर बच्चों में कुपोषण पाया गया है। किसी को ज्यादा दिक्कत होती है तो वह खुद अपने बच्चों को अस्पताल ले कर जाया जाता है। इस मामले को लेकर वृजेश त्रिपाठी जिला कार्यक्रम अधिकारी टीकमगढ़ से बात करने की बहुत कोशिश की गई लेकिन उनका गैर जिम्मेदाराना व्यवहार देखने को मिला।

चौकाने वाले आंकड़े आये सामने

जी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार महिला एवं बाल कल्याण विभाग के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य में 70 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हो गए हैं। इन बच्चों में नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चे शामिल हैं। अध्ययन के अनुसार, एक तिहाई से अधिक बच्चे त्वचा और हड्डी रोग से पीड़ित हैं।

गंभीर रूप से कुपोषित 70 हजार बच्चों में 6000 बच्चों को पोषण पुनर्वास केंद्र (NRC) में भर्ती किया गया है। इनमें नवजात से लेकर 6 वर्ष तक के आयु के बच्चे शामिल हैं। तो देखा आपने देश में बढ़ते कुपोषण की गति तेजी से बढ़ रही है लेकिन इनपर काम बहुत धीमी गति से हो रही है। ऐसे में लगता है कि क्या कुपोषण हमारे देश से कभी मिटेगा? सरकारें तरह-तरह के अभियान चलाकर कोशिश तो बहुत कर रही हैं। लेकिन सुधार बहुत ही कम देखने को मिल रहा है। ऐसे में विभागों को जमीनी स्तर पर सर्वे होना चाहिए ताकि बढ़ते कुपोषण को रोंका जा सके।

ये भी देखें :

पन्ना: कुपोषण के कब्जे में किशोरी बालिकाओं का भविष्य

 

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