कहते हैं इतिहास खुद को स्वयं सुनाता है। इस बात में कोई शक़ नहीं। हर इमारत, हर पत्थर के उद्गम की शुरूआत की कहानी उसकी मौजूदगी में रहती है। जिसे हम पढ़ते, लिखते, देखते और महसूस भी करते हैं। इतिहास अपने साथ कई चीजों को जोड़कर और साथ लेकर चलता है। आज हम आपको ऐसी ही किसी जगह के बारे में बता रहे हैं, जो मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में बसी हुई है। जब आप अमरकंटक के सफ़र पर निकलते हैं तो बीच में हरे–घने पेड़ आपको रास्ते मे नज़र आएंगे। पहाड़ों के बीच सफ़र करते हुए जब ठंडी हवाएं आपके चहरे को छू कर गुजरेंगी तो उसका एहसास कुछ अलग ही होगा।
अमरकंटक मंदिर
अमरकंटक मंदिर घूमने के लिए प्रमुख स्थलों में से एक है। यह मध्यप्रदेश के जिले अनूपपुर और शहडोल के तहसील पुष्पराजगढ़ में मेकल की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह 1065 मीटर की ऊंचाई पर समाया हुआ है। पहाड़ों और घने जंगलों मे बीच मंदिर की खूबसूरती का आकर्षण कुछ अलग–सा ही प्रतीत होता है। यह छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा है। यह जगह विंध्य, सतपुड़ा, और मैदार की पहाड़ियों का मिलन स्थल है, जिसका दृश्य मन मोह लेने वाला होता है। अमरकंटक तीर्थराज के रूप में भी काफ़ी प्रसिद्ध है।
जीवन की आपा–धापी से दूर यह जगह आपके मन को शांत करेगी। यहां की शाम देखने मे ऐसी लगती है, मानो किसी ने आसमान में सिंदूर बिखेर दिया हो। घने जंगल और महकती हुई धरती, यहां सांसो में घुलती हुई महसूस होती है।
अमरकंटक के बारे में कुछ रोमांचक बातें
आयुर्वेदिक दवाईयां
अमरकंटक कई पाए जाने वाले आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी मशहूर है। लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि पाए जाने वाले आयर्वेदिक पौधों में जीवन देने की शक्ति है। लेकिन इस समय दो पौधे ऐसे हैं जो कि अब गायब होने की कगार पर हैं। वह हैं गुलाबकवाली और काली हल्दी के पौधे। गुलाबकवाली घनी छांव में दलदली जगह और साफ़ पानी मे उगता है। यह ज़्यादातर सोनमुडा, कबीर चबूतरा, दूध धारा और अमरकंटक के कुछ बगीचों में उगता है।काली हल्दी का उपयोग अस्थमा, मिरगी, गठिया और माइग्रेन आदि के उपचार के लिए किया जाता है।
- यहां टीक और महुए के पेड़ काफ़ी पाए जाते हैं। अमरकंटक का इतिहास लगभग छह हजार साल पुराना है, जब सूर्यवंशी शासक ने मन्धाता शहर की स्थापना की थी।
- मंदिर की वास्तुकला चेदि और विदर्भा वंश के काल की है। ऋग्वेद काल मे चेदि वंश के लोग यमुना और विंध्य के बीच बसे हुए थे।
- भगवान शंकर, कपिल, व्यास और भृगु ऋषि सहित कई महान ऋषि–मुनियों ने इस जगह पर सालों तक तपस्या की है।
- यहां के बायो रिज़र्व को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल किया है। यहां की खास बात यह है कि यहां घूमने के लिए किसी भी मौसम में आया जा सकता है।
- नर्मदा नदी दूसरी नदियों से अलग पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। यह ढलान की बजाय ऊंचाई की ओर बहती है, जो की सबको बहुत चौकाने वाली बात लगती है।
अमरकंटक के पास दर्शनीय स्थल
1) नर्मदा नदी का उद्गम स्थल
प्रमुख सात नदियों में से नर्मदा नदी और सोनभद्रा नदियों का उद्गम स्थल अमरकंटक है। यह आदिकाल से ही ऋषि–मुनियों की तपो भूमि रही है। नर्मदा का उद्गम यहां के एक कुंड से और सोनभद्रा के पर्वत शिखर से हुआ है। यह मेकल पर्वत से निकलती है, इसलिए इसे मेकलसुता भी कहा जाता है। साथ ही इसे ‘माँ रेवा‘ के नाम से भी जाना जाता है।
नर्मदा नदी यहां पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। इस नदी को “मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवनदायनी नदी” भी कहा जाता है क्योंकि यह नदी दोनों ही राज्यों के लोगों के काम आती है। यह जलोढ़ मिट्टी के उपजाऊ मैदानों से होकर बहती है, जिसे नर्मदा घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यह घाटी लगभग 320 किमी. में फैली हुई है।
कहा जाता है कि पहले उद्द्गम कुंड चारों ओर बांस से घिरा हुआ था। बाद में यहाँ 1939 में रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने पक्के कुंड का निर्माण करवाया। परिसर के अंदर माँ नर्मदा की एक छोटी सी धारा कुंड है जो दूसरे कुंड में जाती है, लेकिन दिखाई नहीं देती। कुंड के चारों ओर लगभग 24 मंदिर है। जिनमें नर्मदा मंदिर, शिव मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, दुर्गा मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, श्री राधा कृष्णा मंदिर, शिव परिवार, ग्यारह रुद्र मंदिर आदि प्रमुख है।
2) कलचुरी कालीन मंदिर
अमरकंटक में कलचुरी कालीन मंदिर का निर्माण कलचुरी नरेश कर्णदेव ने 1041-1073 ईसवीं के दौरान करवाया था। नर्मदा कुंड के पास दक्षिण में कलचुरी काल के मंदिरों का समूह है। वह हैं:-
????कर्ण मंदिर – यह तीन गर्भ वाला मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। इसमें प्रवेश के लिए पांच मठ है। यह मंदिर बंगाल और आसाम के मंदिरों की तरह दिखाई देता है।
????पातालेश्वर मंदिर – इस मंदिर का आकार पिरामिड जैसा है। यह पंचरथ नागर शैली में बना हुआ है।
3) सोनमुडा अमरकंटक
अमरकंटक का यह स्थान सोन नदी का उद्गम स्थल है। इससे थोड़ी ही दूर पर भद्र का भी उद्गम स्थल है। दोनों आगे जाकर एक दूसरे से मिल जाती हैं, इसलिए इन्हें ‘सोन–भद्र‘ भी कहा जाता है। सोन को ब्रह्माजी का मानस पुत्र भी कहा जाता है। यह नर्मदा नदी के उद्गम स्थल से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोन–भद्र 100 फ़ीट की पहाड़ी से झरने की तरह गिरती है।
ऐसा माना जाता है कि सोनभद्र जलप्रपात से गिरने के बाद, यह धरती के अंदर ही अंदर 60 किलोमीटर दूर “सोनबचरबार” नामक स्थान पर दोबारा प्रकट होती है और आगे जाकर गंगा में मिल जाती है।
4) दूधधारा प्रपात अमरकंटक
अमरकंटक के पास यह प्रपात कपिल धारा से 1 किलोमीटर नीचे जाने पर मिलता है। इसकी ऊंचाई 10 फुट है। कहा जाता है यहां दुर्वासा ऋषि ने तपस्या भी की थी। इस प्रपात को दुर्वासा धारा भी कहा जाता है | यहां पवित्र नर्मदा नदी दूध के समान सफेद दिखाई देती है इसलिए इस प्रपात को ‘दूधधारा‘ कहा जाता है। किसी नदी का दूध की तरह सफ़ेद होना बहुत हैरान करने वाली बात लगती है। लेकिन दूधधारा धारा को देखकर प्रकृति के अनूठे रूपों पर और भी ज़्यादा यक़ीन हो जाता है।
5) कपिल धारा प्रपात अमरकंटक
कपिल धारा पवित्र नर्मदा नदी का पहला जलप्रपात है। यह पवित्र नर्मदा उद्गम कुंड से 6 किलोमीटर दूरी पर है। इस जलप्रपात में पवित्र नर्मदा जल 100 फीट की ऊंचाई से पहाड़ियों से नीचे गिरती है। कपिल धारा के पास ही कपिल मुनि का आश्रम है। कहा जाता है कि कपिल मुनि ने यहीं कठोर तप किया था और यहीं सांख्य दर्शन की रचना की थी। उन्ही के नाम पर इस जलप्रपात का नाम कपिल धारा पड़ा।
कपिलधारा के पास ही कपिलेश्वर मंदिर है। इसके आस– पास अनेक गुफायें है, जहां साधू–संत ध्यान मुद्रा में देखे जा सकते हैं। कपिलधारा में माँ नर्मदा का एक छोर डिंडोरी जिले में और दूसरा छोर अमरकंटक में आता है।
6) श्री ज्वालेश्वर मंदिर अमरकंटक
यह मंदिर अमरकंटक – शहडोल सड़क पर 8 किलोमीटर दूरी पर है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति हुई है। यहां भगवन शिव का सुन्दर मन्दिर है। माना जाता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था। पुराणों में इस स्थान को महारुद्र मेरु भी कहा गया है। यहां भगवन शिव ने माता पार्वती के साथ निवास किया था।
7) श्रीयंत्र महामेरू मंदिर
अमरकंटक का यह मंदिर नर्मदा कुंड से 1 किलोमीटर दूर सोनमुडा मार्ग पर स्थित है। यह घने जंगलों से घिरा हुआ है। मंदिर का निर्माण सुकदेवानंद जी महराज द्वारा कराया गया।इस मंदिर की आकृति श्रीयन्त्र जैसी है , इसका निर्माण भी विशेष मुहूर्त में किया गया। अमरकंटक के श्रीयंत्र महामेरु मंदिर के लम्बाई ,चौड़ाई, ऊंचाई 52 फुट है।
8) धुनी पानी अमरकंटक
अमरकंटक में नर्मदा मंदिर से 4 किलोमीटर दक्षिण में धुनी पानी नामक तीर्थ है। कहा जाता है कि एक बार एक ऋषि तपस्या कर रहे थे और पास ही उनकी धुनी जल रही थी तभी धुनी वाले स्थान से पानी निकला और धुनी को शांत कर दिया। तभी से इस स्थान का नाम धुनी पानी पड़ गया। आज भी यहां एक कुंड और बागीचा है। यहां नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए आश्रम की व्यवस्था है ,जहां वे रुक सकते हैं। माना जाता ही कि इस कुंड का पानी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके पानी में स्नान करने से असाधारण रोग ठीक हो जाते हैं।
इसके अलावा यहां अमरेश्वर महादेव मंदिर, संत कबीर चबूतरा, भृगु कमंडल, चंडिका गुफा, बेहगढ़ नाला श्री गणेश मंदिर आदि जगहें भी घूमने के लिए काफी प्रसिद्ध है।
अमरकंटक में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव
हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर पूरे अमरकंटक को सजाया जाता है। रात को नर्मदा नदी के उद्गम स्थल पर महा आरती की जाती है। साथ ही एक विशाल मेला भी लगता है, जिसमें दूर–दूर से भक्त आते हैं।
इस तरह से पहुंचे
हवाईजहाज से : मध्यप्रदेश में सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जबलपुर डुमना हवाईअड्डा है। यह 245 किलोमीटर दूर है। रायपुर और छत्तिसगढ़ 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप कैब या बुक की हुई गाड़ी से अमरकंटक तक पहुंच सकते हैं।
सड़क से : अमरकंटक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सड़कों से जुड़ा हुआ है। यहां आने के लिए सबसे अच्छी सड़क बिलासपुर है। जबलपुर 245 किमी, बिलासपुर 125 किमी, अनूपपुर 72 किमी और शहडोल 100 किमी है।
रेल से : यहां पहुंचने के लिए बिलासपुर रेल सबसे सुविधाजनक है। अन्य रेलमार्ग पेडरा रोड और अनूपपुर से है।
यह जगह प्रकृति प्रेमी से लेकर इतिहासकारों के लिए भरपूर है। आपको यहां रहने के लिए कल्याण आश्रम, वर्फानी आश्रम, अरण्डी आश्रम सहित कई प्राइवेट होटल भी है। अक्टूबर से मार्च के महीने में यहां आने पर आपको यहां की कुछ अलग ही खूबसूरती नज़र आएगी। जून–जुलाई में हुई बारिश से यहां के जलप्रपात भर जाते हैं। हवाएं और भी ज़्यादा ठंडी और सांसे एकदम गहरी महसूस होती है। वैसे तो आप यहां साल में कभी–भी आ सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच यहां का दृश्य बेहद अलग और अतुलनीय होता है।
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