कोर्ट ने कहा कि यह विपरीत धर्म के जोड़े की शादी का मामला है। शादी से पहले धर्म परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है इसलिए, यह शादी कानून के तहत वैध नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि इस शादी में धर्मांतरण विरोधी कानून का पालन नहीं किया गया है।
अंतरधार्मिक विवाह के बाद सुरक्षा की मांग करते हुए एक जोड़े की याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज़ कर दिया। कोर्ट ने कहा, जोड़े की शादी उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अधिनियम (Uttar Pradesh Prohibition of Religious Conversion Act) या Anti-Conversion Law के प्रावधानों का पालन नहीं करती हैं।
इसके अलावा कई संबंधित जोड़ों ने अलग-अलग याचिकाओं के ज़रिये से अपने जीवन की सुरक्षा व उनके शादी-शुदा जीवन में किसी दूसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप न करने को लेकर निर्देश देने की मांग करते हुए अदालत का रुख अपनाया था। इन सभी याचिकाओं को कोर्ट ने 10 से 16 जनवरी 2024 के बीच रद्द कर दिया था।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें कुल 8 जोड़े शामिल थें। पांच मुस्लिम पुरुषों ने हिंदू महिलाओं से और तीन हिंदू पुरुषों ने मुस्लिम महिलाओं से शादी की। अदालत ने आदेश में याचिकाकर्ताओं के धर्म के बारे में बताया था।
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धर्मांतरण विरोधी कानून का पालन नहीं – कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि यह विपरीत धर्म के जोड़े की शादी का मामला है। शादी से पहले धर्म परिवर्तन की कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है इसलिए, यह शादी कानून के तहत वैध नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि इस शादी में धर्मांतरण विरोधी कानून का पालन नहीं किया गया है।
न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने कहा कि याचिका दायर करने वाले अंतर-धार्मिक जोड़ों ने धर्मांतरण विरोधी कानून की अनिवार्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया है। “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। इसके परिणामस्वरूप रिट याचिका यानी आज्ञापत्र खारिज की जाती है। हालांकि, अगर याचिकाकर्ता कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए शादी करते हैं तो वे नई रिट याचिका यानी नये सिरे से सुरक्षा की मांग कर सकते हैं – बार एंड बेंच द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार।
उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 के अनुसार, गलत बयान, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण करना निषेध है।
बता दें, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानूनों को वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा रही है।हालांकि, इसे लेकर कोई निष्कर्ष निकलता दिखाई नहीं दे रहा है। फिलहाल चुनौती का कार्यकाल काफी लम्बा दिखाई पड़ता है।
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