खबर लहरिया Blog आगरा: पुलिस थाने से 25 लाख रूपए चोरी करने वाले दलित व्यक्ति की जेल के अंदर हुई मौत

आगरा: पुलिस थाने से 25 लाख रूपए चोरी करने वाले दलित व्यक्ति की जेल के अंदर हुई मौत

पुलिस का कहना है कि अरुण के घर से कुछ रकम भी बरामद की गई थी और उसके बाद ही उसे हिरासत में लिया गया था। इस दौरान अरुण की तबीयत बिगड़ गई। इस पर पुलिस और परिजन उसे अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।

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उत्तर प्रदेश में चोरी के किस्से तो रोज़ाना आप अखबार में पढ़ते ही होंगे। किसी के घर में लाखों की डकैती की खबर तो किसी की दुकान से करोड़ों का सामान चोरी होने की खबर, लेकिन आज जिस घटना के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, व अलग ही नहीं बल्कि संदिग्ध भी है। हाल ही में यूपी के आगरा ज़िले में एक पुलिस थाने से चोरों ने 25 लाख रूपए साफ़ कर दिए और मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपी की हिरासत में ही मौत हो गई । जी हाँ, ये कोई हिंदी फिल्म की कहानी नहीं बल्कि सच्ची घटना है जो योगी सरकार और यूपी पुलिस की गैर-ज़िम्मेदारी की हकीकत बयान कर रही है।

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आइए आपको बताते हैं कि क्या है पूरा मामला-

सूत्रों के अनुसार आगरा के जगदीशपुरा थाने में 16 अक्टूबर की रात चोर ने पीछे के दरवाज़े से थाने में घुंसकर मालखाने में रखे बक्से का ताला तोड़ लिया और 25 लाख रूपए लेकर फरार हो गया। थाने में तैनात हेडमोहर्रिर सुबह के वक्त जब माल खाने पहुंचा तो उसको कुछ शक हुआ। और जब उसने माल खाने की जांच पड़ताल की तो पता चला कि माल खाने से 25 लाख रूपए की नगद रकम गायब हो चुकी है। मामले की जानकारी जब शहर के अन्य पुलिस अधिकारियों को मिली तो थाने में पुलिस का जमावड़ा लग गया।

अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले की सूचना मिलते ही एसएसपी मुनिराज जी. और एडीजी जोन राजीव कृष्ण ने थाना का निरीक्षण किया था और घटना की जानकारी ली थी। इसके साथ ही पुलिस टीम को घटना के खुलासे के लिए लगाया था। लापरवाही बरतने के आरोप में निरीक्षक अनूप कुमार तिवारी, मालखाना प्रभारी हेड मोहर्रिर प्रताप भान सिंह सहित छह को निलंबित भी किया गया था। और मामले में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था।

तबीयत ख़राब होने से हुई मौत पुलिस-

पुलिस की जांच के बाद लोहामंडी निवासी सफाई कर्मी अरुण का नाम सामने आया था। और क्यूंकि वो घटना के बाद से थाने आया भी नहीं था इसलिए पुलिस का शक और गहरा होता गया। तलाश करने के बाद सफाईकर्मी को हिरासत में ले लिया गया था, लेकिन इस मामले ने नया मोड़ तब ले लिया जब 19 अक्टूबर को हिरासत के दौरान ही अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई और उसकी मौत हो गई।

रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस का कहना है कि अरुण के घर से कुछ रकम भी बरामद की गई थी और उसके बाद ही उसे हिरासत में लिया गया था। इस दौरान अरुण की तबीयत बिगड़ गई। इस पर पुलिस और परिजन उसे अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। बता दें कि शव का पोस्टमार्टम कराया गया है और उसकी रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। शव का अंतिम संस्कार भी पुलिस की मौजूदगी में कराया गया।

30 वर्षीय अरुण की मौत के बाद मृतक के भाई सोनू ने पुलिस की कड़ाई और बदसलूकी से मौत का आरोप लगाते हुए अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा भी दर्ज करा दिया है।

घटना के बाद पुलिस महकमे में हड़कंप मचा हुआ है और हंगामे की आशंका को देखते हुए थाने पर फोर्स तैनात कर दी गई है। वहीं इस मामले में पुलिस अधिकारी कुछ भी कहने से बच रहे हैं। बता दें कि मृतक सफाईकर्मी वाल्मीकि समुदाय का बताया जा रहा है। जिसके बाद वाल्मीकि समुदाय के लोगों ने भी एकजुट होना शुरू कर दिया है। फिलहाल पुलिस ने बवाल होने की आशंका को देखते हुए आसपास के जिलों से भी फोर्स बुलाई है और थाने की सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है।

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यूपी पुलिस और प्रशासन आए जनता के कटघरे में-

इस मामले में जिस प्रकार से घटनाओं ने मोड़ लिए हैं, उससे विपक्षी पार्टियों ने योगी सरकार और यूपी पुलिस को भी घेरे में ले लिया है। इस मामले को मद्देनज़र रखते हुए अखिलेश यादव द्वारा किए गए ट्ववीट को भी आम जनता का काफी समर्थन मिल रहा है। ट्वीट में लिखा था, भाजपा सरकार में पुलिस खुद अपराध कर रही है तो फिर अपराध कैसे रुकेगा?

आगरा में पहले सांठगांठ कर थाने के मालखाने से 25 लाख की चोरी कराई गई फिर सच छिपाने के लिए गिरफ्तार किए गए सफाईकर्मी की कस्टडी में हत्या स्तब्ध करती है! हत्यारे पुलिस कर्मियों पर हो सख्त कार्रवाई।

 

क्या दलितों की जान है सबसे सस्ती?

इस पूरे मामले में जो एक बात स्पष्ट रूप से ज़ाहिर हो रही है वो है लापरवाही की। जहाँ एक तरफ थाने में पुलिस के नाम पर सिर्फ एक सिपाही मौजूद था और वो भी चोरी के समय कहाँ था किसी को पता नहीं। वहीँ दूसरी तरफ बिना किसी वारंट के सिर्फ इस आधार पर एक गरीब सफाईकर्मी को गिरफ्तार करना कि वो 2 दिन से छुट्टी पर था, ये कहाँ का इंसाफ है? और अब जब उसी सफाईकर्मी की संदिग्ध हालत में मौत हो गई है तो पुलिस या प्रशासन किसी भी प्रकार की जवाबदेही देने से कतरा रहा है। ऐसे में राज्य सरकार जो प्रदेश से गुंडा राज और क्राइम ख़तम होने का दावा करती है, वो अब क्यों चुप्पी साधी हुई है? क्या योगी सरकार भी यूपी पुलिस की ढिलाई छिपाने में जुट गई है?

एनसीआरबी के अनुसार, उत्तर प्रदेश उन शीर्ष राज्यों में से एक है जहां दलित सबसे ज़्यादा जाति आधारित हिंसा का शिकार होते हैं। ऐसे में एक गरीब दलित व्यक्ति की इस तरह मौत का मामला सामने आना यह साफ़ दर्शाता है कि यूपी में पैसे और बल के दम पर कैसे आज भी गरीबों को दबाया जा रहा है। जहाँ पुलिस ने बिना पुख्ता सबूतों के मृतक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया, वहीं हिरासत के दौरान हुई उसकी मौत के मामले में प्रशासन तो क्या राज्य सरकार भी कोई सख्त कदम नहीं उठा रही है। क्या एक गरीब, दलित व्यक्ति की जान इतनी सस्ती है कि उसे इंसाफ दिलाने में सरकार भी चुप्पी साध ले?

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