एक ऐसी महिला पत्रकार जिसने डर को कभी जाना ही नहीं और उन पर हुए कई हमलों के बावजूद भी अपनी पत्रकारिता करती रहीं।
“जब मेरी पत्रकारिता की शुरुआत एक छोटे से शहर फ़ैजाबाद में हो रही थी और उस दौरान बाबरीमस्जिद आन्दोलन अपनी तीब्र गति से बढ़ रहा था। भीड़ की मार क्या होती है ये मैंने उस दिन देखा जब रिपोर्टिंग के दौरान मेरे ऊपर 3 बार हमला हुआ। उस दिन मैंने यह नहीं सोचा था की मैं बचकर अपने घर या ऑफिस तक पहुँच सकूंगी। उस कठिन समय में भी मैंने यह नहीं सोचा की हमको पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए – जनमोर्चा की वरिष्ठ पत्रकार व सम्पादक सुमन गुप्ता”
बाबरी मस्जिद आंदोलन की रिपोर्टिंग के दौरान उनके ऊपर हुए हमले पर वह हँसते हुए बताती हैं कि उस समय मुझे एक ही चीज याद आ रही थी की इस चाक़ू में इतना जंग लगा हुआ है की वह चाकू के मारने से तो नहीं लेकिन इसमें जो जंग लगा है उसके टिटनेस का इलाज न होने से मर जायेंगी।
सुमन गुप्ता के साथ हुई इस घटना के बाद ऑफिस में लोगों ने पूछा और कुछ पुरुष प्रधान लोगों ने सोचा की ऐसी घटना के बाद शायद वह पत्रकारिता छोड़कर चली जायेगी लेकिन उस घटना ने उनके अन्दर और दृढ़ विश्वास पैदा कर दिया की वह किसी भी सूरत में अब पत्रकारिता नहीं छोड़ेंगी।
ऐसे शुरू हुआ पत्रकारिता का सफर
आज से लगभग 32 साल पहले सुमन गुप्ता की पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ था। पत्रकारिता का क्षेत्र ही क्यों चुना के मेरे सवाल पर उनका कहना था कि वैसे तो वह लॉ ग्रेजुएट हैं तो ऐसा कुछ नहीं था की वह पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करेंगी क्योंकि उनके परिवार में दूर-दूर तक पत्रकारिता से कोई रिस्ता नाता नहीं था और न अभी भी है। बचपन से ही अख़बार पढ़ने की आदत थी तो शाम को जब पिताजी के साथ बैठती तो उनका यही सवाल होता की सम्पादकीय पढ़ा? जिस दिन नहीं पढ़ा होता था उस दिन डांट पड़ती थी। पिताजी कहते अगर आपने सम्पादकीय पेज नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा? सिलसिला यूँ ही चलता रहा और इसी बीच कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हो गई की वह वकालत के क्षेत्र में तो आगे नहीं बढ़ पाई लेकिन उन्होंने पत्रकारिता ज्वॉइन किया और फिर वह पत्रकारिता को छोड़ नहीं पाई।
पत्रकारिता में आने का मतलब बहुत बड़ी चुनौती का सामना करना- सुमन गुप्ता
स्टोरी कवरेज के दौरान होने वाली चुनौतियों पर उनका कहना है कि एक लड़की के बलात्कार का मामला था जिसमें पॉलिटिकल लीडर शामिल थे और पुलिस भी मिली हुई थी। 40 किलोमीटर की दूरी तय करके जब वह लड़की के घर पहुंची तो दो बटालियन पुलिस पहले से मौजूद थी। रिपोर्टिंग के
दौरान बातचीत हुई और काफी बहस भी आईकार्ड देखने के लिए माँगा और फाड़कर फेंक देने की धमकी भी दी। रिपोर्टिंग करके वह घर आ गई। खबर छपने के बाद एक दरोगा जनमोर्चा ऑफिस में संपादक जी से शिकायत करने आया की आपके यहाँ कोई पत्रकार हैं जिनका नाम सुमन गुप्ता है।
वह कितनी गलत ख़बरें दे रही हैं। संपादक जी ने पूरी बात सुनी और कहा की जो कुछ हमारे अखबार में छपा है इसमें गलत क्या है? आप बता दीजिये की यह चीज नहीं है तो मैं कह दूंगा की उसका खंडन छाप दें। और आप जिनके बार में बात कर रहे हैं वह देखिये यह बैठी हुई हैं। वह हँसते हुए कहती हैं की दरोगा को जैसे सांप सूंघ गया। पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसी चुनौतियाँ आती है और अगर चुनौतियाँ जीवन में नहीं हो तो जीने का मतलब ही नहीं है।
वह आगे बताती हैं कि जबसे सोशल मीडिया का दौर आया है लोग किसी भी मुद्दे के तह तक नहीं जाना चाहते। लोगों ने देखा पढ़ा और आगे बढ़ गये। ये मैं समझती हूँ की जो सूचना के बिस्फोट का दौर है उसमें सूचनाओं का एक तरफ़ा प्रवाह भी है। मेरा मानना है की टेक्नालाजी किसी की बंधुवा नहीं है जिस व्यक्ति का जैसा मस्तिष्क है उस हिसाब से उसका उपयोग करता है।
प्रेस फ्रीडम का क्या मतलब है उसे अपने कामों में कितना लागू कर पाए हैं इस पर वह कहती हैं की किसी भी देश में प्रेस की स्वतंत्रता क्या होगी यह उस देश के संविधान और उस देश की स्वतंत्रता पर निर्भर करेगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार बनाया गया। इसके तहत ही हम बोल भी रहे हैं, अख़बार चला रहे हैं, चैनल चला रहे हैं। तो यह महसूस हो रहा है की प्रेशर के अंदर लोग काम कर रहे हैं या उनके ऊपर दबाव है और उस दबाव में लोगों को काम करना पड़ रहा है। आप जहाँ काम कर रहे हैं वहां काम करने के लिए सुरक्षित हैं। अपनी बात को कह पा रहे हैं या नहीं। तो प्रेस फ्रीडम निर्भर करता है की परिस्थियाँ क्या हैं।
जब कोई किसी नए पेशे में जाता है तो थोड़ा सहमा सा रहता है उसे लगता है की शायद उसे अपने सामने वाले से कम जानकारी है लेकिन एक वक्त आता है जब आपके मन में सच और झूठ को जानने का विवेक जागृत होता है और आपका कॉन्फिडेंस लेबल बढ़ जाता जाता है। और उसको लगता
है की वह खुद चुनौतियों से निपट सकता है।
32 साल के इस पत्रकारिता के सफर के दौरान इतने मुश्किलों के बावजूद भी उन्होंने पत्रकारिता नहीं छोड़ा। ऐसी निडर और साहसी महिला पत्रकार को खबर लहरिया सलाम करता है।
( नोट – यह आर्टिकल प्रेस फ्रीडम डे के एक सप्ताह की सीरीज़ का हिस्सा है। जो खबर लहरिया की रिपोर्टर रह चुकीं रिज़वाना तबस्सुम की याद में मनाया जा रहा है। यह 3 मई से 8 मई तक मनाया जाएगा। इस बीच हम आप लोगों के साथ ग्रामीण महिला पत्रकारों की कहानियां शेयर करते रहेंगे।)
इस सीरीज के अन्य भाग नीचे दिए गए लिंक पर देखें:
भाग 1: पत्रकारिता के लिए ली समाज से लड़ाई – ग्रामीण महिला पत्रकार शिवदेवी
भाग 2: एक ऐसी महिला पत्रकार जिसने हमले के बाद भी नहीं छोड़ी पत्रकारिता
भाग 3: समाज की सोच को पीछे छोड़, अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों का दिल जीत रहीं रूपा
भाग 4: “खबर बनाना ही नहीं, न्याय दिलाना भी मेरा काम है” – ग्रामीण युवा महिला पत्रकार सीता पाल
भाग 5: आन्दोलन ने दिखाई पत्रकारिता की राह – नवकिरण नट
भाग 6: अखबार बेच कर शुरू किया सफर, आज पत्रकारिता के ज़रिये दे रहीं समाज की सोच को चुनौती