पुरूष और नारी यानी शिव-शक्ति। दोनों एक-दूसरे के पूरक माने गए हैं। इस शब्द को आज के सभ्य समाज ने अलग-अलग तरीके से देखा, कहा, उसे परिभाषित किया और उसका विश्लेषण किया।
किसी ने नारी को अबला, निसहाय बताया तो किसी ने पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों के नज़रिये में दोष देखा। किसी ने नारी को उपभोग की वस्तु माना तो वहीं इसी पुरुष प्रधान समाज ने नारी को सशक्त भी माना। इस पुरुष प्रधान समाज ने उसे मां,बहन, बेटी और शक्ति की उपाधि भी दी है। उसके मान को बढ़ावा दिया। उसकी शक्ति का एहसास कराया।
यह पुरूष ही है, जो भाई बनकर उसकी आजीवन रक्षा और मान सम्मान का वचन देता है। कलाई में बंधे धागे के बदले अपने प्राणों की आहुति देने में भी पीछे नहीं हटता। वहीं पुरुष पिता बन उसको संरक्षण प्रदान करता है। ऐसे कई रिश्ते होते हैं जो नारी के सम्मान की रक्षा के प्रति जागरूक रहते हैं।
जब किसी रिश्ते के बिना भी एक पुरुष के अंदर राह चलती युवती के प्रति उपहास न हो, वह उसकी चिंता करें, वह भी बिना किसी रिश्ते बिना किसी पहचान के तो बड़ी बात हो जाती है। मन ऐसे व्यक्ति को हृदय से सलाम करने को कहता है।
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आज यह वाक्य एक महिला पत्रकार के साथ घटी। वह एक समाचार कवरेज कर रही थी। स्थान था बांदा जनपद का जिला अधिकारी कार्यालय। एक सभ्य पुरुष की नज़र उस महिला की तरफ घूमी तो वह देखता है कि वह महिला स्त्रीधर्म से पीड़ित है लेकिन वह इससे बेखबर है। वह सभ्य पुरुष निश्चल भावनाओं के साथ आगे बढ़ता है और कहता है बहन तुम्हारी पेंट की सिलाई खुली है। आप घर जाओ। उसके इस छोटे से वाक्य से वह पत्रकार महिला सोच में पड़ जाती है। अरे! यह क्या, यह पैंट तो नई हैं और मैंने आज ही पहनी हैं फिर कैसे सिलाई खुल गई है। फिर भी यह मेरे पैंट की तरफ इशारा कर रहा है, वह भी बड़ी गंभीरता से।
पहले तो उसने इसे हल्के से लिया पर उसकी बात की गंभीरता को नजरंदाज नहीं कर सकी। वह फिर नज़दीकी शौचालय (बाथरूम) में चली गई तो वहां उसे पुरुष के कहने समझाने का अर्थ मालूम हो गया। उसे पता चला कि वह स्त्रीधर्म से है और वह उस व्यक्ति को मन ही मन धन्यवाद करती है। उसकी सोच को प्रणाम किया कि उसने उसे समाज में रूसवाई व हंसी का पात्र होने से बचा लिया।
अब वह उसके विचारों से इस कदर प्रभावित हुई कि जिला अधिकारी बांदा से मिल उस पुरुष को सम्मानित करवाने तक के लिए विचार करने लगी। खुद को रोक नहीं पाई और उस व्यक्ति की सभी इशारों व बातों को सोचने लगी। आज के युवा पुरुष ऐसे ही जागरूक हो जाये तो कभी भी कोई महिला कहीं भी हँसी की पात्र नही बनेंगी।
( यह स्टोरी खबर लहरिया के 20वें साल पूरे होने पर ‘मैं भी पत्रकार’ सीरीज़ के तहत चयनित हुई है।)
द्वारा लिखित – रूपा गोयल
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“मैंने खबर लहरिया का नाम बस सुना था लेकिन जब पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना कदम रखा तब मैंने खबर लहरिया के बारे में जाना। बाँदा जनपद में खबर लहरिया की संपादक कविता जी ख़ास मुलाक़ात हुई, बातचीत हुई। उन्हीं के साथ मीरा जी से मुलाकात हुई। उन्होंने मेरा पत्रकारिता दिवस पर इंटरव्यू लिया। बहुत अच्छा अनुभव रहा। इसके बाद मैंने खबर लहरिया के बारे में और करीब से जाना। यह गर्व की बात है कि महिलाओं को आगे बढ़ने और आत्मसम्मान से कार्य करने के साथ खुलकर जीने के लिए इससे अच्छा प्लेटफार्म और कोई नहीं हो सकता।
मैं पिछले तीन-चार सालों से खबर लहरिया को फॉलो कर रही हूँ।
खबर लहरिया की जितनी तारीफ करुं कम है। महिलाओं के बारे में लिखना, ज़मीनी स्तर से कवरेज करना, महिलाओं को सशक्तिकरण के बारे में जानकारी देना, महिलाओं को उनके हक़ के बारे में जागरूक करना सबसे बड़ी बात है। सबसे बड़ी गर्व की बात है कि जनपद में खबर लहरिया में सभी रिपोर्टर्स महिला हैं जिनको घर खर्च के लिए वेतन भी प्राप्त होता है। खबर लहरिया के इस प्लेटफार्म में बहुत-सी महिला आत्मसम्मान से जी रही हैं और खुद के पैरों पर खड़ी हैं। इससे यही साबित होता है महिला हर क्षेत्र में पर्फेक्ट है।
इसके साथ ही मैं खबर लहरिया के 20 साल पूरे होने खूब सारी बधाई और शुभकामनाएं देती हूँ।”