विश्व भर में साड़ियों के लिए पहचाने जाने वाले इस शहर को दुनिया भर से लोग देखने आते हैं। उत्कृष्ट पहाड़, झीलों और जंगल से घिरा चंदेरी शहर ऐतिहासिक इमारतों से भी भरा हुआ है।
चंदेरी साड़ियों का नाम तो आप सबने सुना ही होगा, ऐसा माना जाता है कि चंदेरी की बुनाई का काम दूसरी और सातवीं शताब्दी के बीच शुरू हुआ था। इतिहास बताता है कि चंदेरी का काम मालवा और बुंदेलखंड के कारीगरों द्वारा किया जाता था। तेहरवीं शताब्दी में इस चंदेरी की बुनाई को कारीगरों ने साड़ियों के रूप में बदल दिया। शुरूआती दौर में ये सभी बुनकर मुस्लिम समुदाय के हुआ करते थे। 1350 के आसपास, झांसी के बुनकर मध्य प्रदेश के चंदेरी नामक शहर चले गए और वहीँ बस गए। मुगल काल में चंदेरी के कपड़े का व्यवसाय अपने चरम पर पहुंच गया था। और जैसे-जैसे समय बीता चंदेरी की साड़ियों के साथ-साथ यह शहर भी दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया।
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चंदेरी शहर का इतिहास-
चंदेरी शहर मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में बुंदेलखंड और मालवा की सीमाओं पर स्थित है, जिसका इतिहास हमें 11वीं शताब्दी में ले जाता है। यह शहर 11वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक के ऐतिहासिक स्थलों से भरा हुआ है। चंदेरी मालवा सुल्तानों और बुंदेला राजपूतों के समय से ही ऐतिहासिक महत्व का शहर है। इन सुल्तानों और राजपूतों ने 15वीं और 16वीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर शासन किया था। विश्व भर में साड़ियों के लिए पहचाने जाने वाले इस शहर को दुनिया भर से लोग देखने आते हैं।
उत्कृष्ट पहाड़, झीलों और जंगल से घिरा चंदेरी शहर ऐतिहासिक इमारतों से भी भरा हुआ है। हमारे देश के बीचो-बीच बसे मध्य प्रदेश के इस शहर को मुग़लों के समय में व्यापार के लिए सीधा रास्ता माना जाता था। यहाँ पर प्रकृति ने भी अपना रंग-रूप आज तक नहीं बदला है। नदी, पहाड़ और जंगल से भरपूर यह शहर हमेशा से ही ऐसा हरा-भरा दिखाई देता था।
चंदेरी में घूमने के कुछ स्थान-
चंदेरी अपने रंग-बिरंगे बाज़ारों के साथ-साथ पर्यटन स्थलों से भी भरा हुआ है। यहाँ का सबसे मशहूर चंदेरी किला देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस किले को ग्यारहवीं शताब्दी में प्रतिहारा नामक राजा ने बनवाया था। और आज इतने सालों बाद भी इस किले की चमक दूर से ही झलकती है। किले कुछ हिस्से अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं लेकिन बचे हुए हिस्सों में बनी चित्रकारी और खूबसूरत मूर्तिकलाएँ आज भी इस किले की शोभा बढ़ा रही हैं।
यहाँ मौजूद बादल महल गेट भी देशभर में अपने खूबसूरत द्वार के लिए जाना जाता है। बादल महल गेट को 1450 में सुलतान मेहमूद शाह खिलजी ने बनवाया था। इस आलिशान और भव्य द्वार को देखने लिए दुनिया भर से लोग आते हैं।
और सिर्फ यही नहीं जामा मस्जिद, लक्ष्मण मंदिर, परमेश्वर मंदिर जैसी कई अनेक जगहें मौजूद हैं चंदेरी में। हर जगह की एक अलग पहचान, जहाँ पहुंच कर पर्यटकों को भी एक अलग तरह का सुकून मिलता है।
चंदेरी का काम-
इस शहर में हो रहा चंदेरी का काम भी सदियों पुराना है। आपको इस शहर की एक-एक गली में करघे का शोर साफ़-साफ़ सुनाई देगा और प्रत्येक कारीगर के पास कम से कम 2-4 करघे मिल जाएंगे। चंदेरी का कपड़ा अपनी बनावट और हल्के वजन के लिए जाना जाता है। चंदेरी के इस कपड़े में रेशम और ज़री का काम भी होता है। यह काम ज्यादातर पुराने जमाने के सूती धागों से किया जाता है लेकिन जो कपड़ा बनकर तैयार होता है वो अत्यंत शानदार और झिलमिलाता हुआ होता है। चंदेरी के ये सुंदर कपड़े चंदेरी शहर से ही दुनिया भर में सप्लाई किए जाते हैं।
तो देखा आपने कितना भव्य और खूबसूरत है चंदेरी का इतिहास। इस शहर की शोभा यहाँ की संस्कृति और कला में ही बसी हुई है, और यह सभी गुण मिलकर भारत का धनी इतिहास दुनिया के सामने रखने में मदद करते हैं। तो अगली बार आपको मध्य प्रदेश आने का मौका मिले तो चंदेरी की भीड़भाड़ में समय बिताना बिलकुल मत भूलिएगा।
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