खबर लहरिया क्षेत्रीय इतिहास अजयगढ़ किले की तस्वीरो का राज़, जिनमे छुपे है खज़ाने के कई रहस्य

अजयगढ़ किले की तस्वीरो का राज़, जिनमे छुपे है खज़ाने के कई रहस्य

History of Ajaygarh Fort

कहानियां,रहस्य और इतिहास कुछ ऐसी चीज़े है जिसे हर कोई जानना चाहता है। करीब से देखना चाहता है, बीते हुए समय को फिर से उस जगह जाकर उनकी कहानियां सुनकर उन्हें फिर से महसूस करना चाहता है। राज़ और उसकी गहराई जितनी हो , उतना ही उसे जानने में मज़ा आता है। भारत तो हमेशा से ही ऐसी कहानियों और अपने पुराने इतिहास की वजह से मशहूर रहा है। कई लोगो ने इतिहास को जानने की बहुत कोशिश की फिर भी उसे पूरी तरह से नहीं जान पाए। मज़ा तो इसमें ही है की बारबार किसी चीज़ को जानने की कोशिश की जाए। जितनी बार हम चीज़ो को अलगअलग तरह से समझने की कोशिश करेंगे , उतनी ही बार वह हमें अपनी कहानियां और अपने इतिहास को अलगअलग तरह से दिखाती रहेंगी।

अजयगढ़ किले का इतिहास

History of Ajaygarh Fort

आज हम अजयगढ़ के किले को जानने की कोशिश करेंगे। जानने से ज़्यादा उसे महसूस करने की कोशिश करेंगे ताकि खुद को इतिहास से जुड़ा हुआ पाए। अजयगढ़ का किला मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के पास बसा हुआ है।1765 में राजा गुमान सिंह ने इसे खोजा था। वह जैतपुर के राजा पहर सिंह के भतीजे थे। अजयगढ़ से कालिंजर का किला 35 किलो मीटर दूर है। अजयगढ़ और कालिंजर के किले को जुड़वाँ किले के नाम से भी जाना जाता है। 1809 में अंग्रेज़ों द्वारा किले पर कब्ज़ा कर लिया गया था। इसके बाद यह किला मध्य भारत की एजेंसी में शामिल हो गया। फिर यह किला बुंदेलखंड की रियासत का हिस्सा बन गया। किला 2000 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है। यह किला यूपी और मध्यप्रदेश के बीच विंध्या रेंज की चोटी पर बना हुआ है। यह किला चंदेल वंश की कहानी बयां करता है।1901 में क्षेत्र में रहने वाले लोगो की आबादी 78,236 थी।

तालेचाभी की क्या है पहेली ?

राजामहाराजा बड़ेबड़े किले बनवाते थे ताकि उनमे वह कुछ राज़ो और कुछ कीमती चीज़ो को छुपा सकें। हर किला एक रहस्यमयी तरीके से बनाया जाता था ताकि लोग उन्हें समझ सके। दीवार पर बनायी गयी हर कला और हर मूर्तियां अपने अंदर एक राज़ छुपाएं बैठी होती है। बिल्कुल एक पहेली की तरह , जिसमे हमे हर एक चीज़ को एकदूसरे के साथ जोड़ कर देखना पड़ता है। किले के अंदर एक पत्थर है जिस पर चाबीताले का चित्र बना हुआ है। कहा जाता है कि यह चाबीताला किसी खज़ाने की तरफ कोई इशारा है। इस पहेली को सुलझाने पर ख़ज़ाने तक पहुंचा जा सकता है। तालेचाभी वाले पत्थर के साथ में ही एक पत्थर है जिस पर लिपि भाषा में कुछ लिखा हुआ है। कई लोगो ने उसे पढ़ने की बहुत कोशिश की , पर पढ़ नहीं पाए। वक़्त के साथसाथ पत्थर पर बनी नकाशी धुंधली होती हो गयी और राज़ गहरा होता गया

गहरी होती पहेलियाँ और उनके राज़

History of Ajaygarh Fort

राज़ ने अब अलगअलग चेहरा लेना शुरू कर दिया जैसे ही हम किले के मुख्य द्वार की चौखट पर पहुँचते है, हमें वहां कुछ अलगसी आकृतियां देखने को मिलती है। उन्हें ध्यान से देखने पर उसमें एक चौकोर आकार दिखाई पड़ता है जिसमे कुछ अक्षर और कुछ अंक लिखे हुए होते है। उन अंको और अक्षरों के नीचेऊपर भी कुछ लिखा हुआ होता है। मानों, पहेलियों को सुलझाने का कोई रास्ता लिखा हुआ हो। किले के अंदर ऐसी जाने कितनी ही कलाकृतियां , शिल्पलेख और मूर्तियां है।  जो एक दूसरे से जुड़ी तो है पर उसे समझ पाना आसान नहीं है।

और अंदर जाने पर हमें एक पत्थर पर एक गाय बना हुआ चित्र मिलता है, जिस पर भी तालेचाभी का चित्र बना हुआ है। जब पत्थर को ध्यान से देखा जाता है तो पता चलता है कि वह एक बड़ी तस्वीर का छोटासा हिस्सा है। गाय के पैरों के नीचे अगर हम ध्यान से देखें तो वहां हमे किसी भाषा में कुछ लिखा हुआ मिलेगा , लेकिन वह भी अधूरा है। दूसरी बार फिर से तालेचाभी का चित्र तो इसी ओर इशारा करता है कि यह तालाचाभी किसी बंद रहस्य का राज़ खोल सकती है। लेकिन राज़ को पढ़ पाना आसान नहीं, क्यूंकि भाषा ऐसी है जिसे पढ़ पाना मुमकिन नहीं। वहीं हर पहेली का हिस्सा आधा है।  

किले के सफर में देखिए ये सारी चीज़े

किले के अंदर घुसते ही हमें दो दरवाज़े, दो मंदिर और दो पत्थर से काटकर बनायी गयी टंकियां दिखायी देंगी , जो उत्तरी द्वार के करीब है। इन दोनों टंकियों को गंगा और यमुना का नाम दिया गया है। किले के अंदर चंदेल शासक, राजा परमर्दि देव और जैन मंदिरो को समर्पित एक पुराना मंदिर है जो की खजुराहों मंदिर के समान है। किले में देवी अष्ट शक्ति की कई सारी मूर्तियां है। इसमें एक झील भी है जिसे अजय पाल का तलाओ कहा जाता है। आने वाले सैलानी अक्सर झील की खूबसूरती देखकर मनमोहित हो जाते है। साथ ही किले से केन नदी को देखा जाए तो वह नज़ारा भी देखते ही बनता है। 

इस तरह से पहुंचे अजयगढ़ किले में

अजयगढ़ पहुंचने के लिए आप खजुराओ सकते हैं। वहां से अजयगढ़ के लिए आपको सीधी बस मिल जाएगी। वहां से अजयगढ़ की दूरी सिर्फ 65 किमी है। ट्रेन और हवाईजहाज से आने वाले यात्री भी खजुराओ हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन पहुंचकर आराम से अजयगढ़ के किले तक पहुंच सकते है।  किले तक पहुंचने के लिए खजुराओ से हर यातायत का उचित प्रबंध है। किला सुबह छह बजे से शाम के छह बजे तक खुला रहता है। किला बहुत बड़ा है जिसे घूमने में कई घंटे लग सकते है। इसलिए घूमने आते वक़्त अपने साथ पानी लाना भूले। अपने साथ ज़रुरत की सारी चीज़े रखिए और किले के सफर का मज़ा उठाइए।