खबर लहरिया पानी और स्वच्छता सरकारी योजनाओ का लाभ और समाज के लिए काम करने का जूनून

सरकारी योजनाओ का लाभ और समाज के लिए काम करने का जूनून

अथाह सरकारी बजट को खर्च करके योजना का लाभ देने की दिलासा देखना हो तो बांदा जिले आ जाइए और अगर सच में काम करने का जूनून देखना हो तो महोबा जिले के कबरई ब्लाक के बिलारी गांव चले जाएं जो बहुत कम पैसा खर्च करके असम्भव काम को सम्भव बना दिया गया है।

सीधी बात ये है कि बांदा जिले के डी एम हीरालाल पिछले महीने से कुआं तालाब जियाओ अभियान में बहुत ही कड़ी मेहनत कर रहे हैं। मेहनत ही नहीं बहुत ज्यादा धन भी खर्च कर रहे हैं। इस अभियान के तहत जिले में तालाबों की खुदाई होनी थी। साथ ही साथ कुआं की सफाई भी करवानी है। इस आभियान को सफल बनाने के लिए डी एम ने अब तक में शहर के नवाब टैंक तालाब में 27 जून 2019 को 5 हज़ार दीप्दान उत्सव किया। इसके अलावा 22 जून 2019 को जलमार्च रैली, जल गोष्ठियां, गांव गांव कुआं पूजन समेत तमाम बैठके और चौपाल की।

तालाबों की खुदाई लक्ष्य से भले ही कम हुई हो पर कुएं तालाब खुद गये। अब इनमें पानी कहां से आए जब पानी है ही नहीं। खैर ये अभियान बहुत सोची समझी रणनीती के चलते पिछ्ले हफ्ते होने वाली बारिश के चलते कुएं तालाब भर गये, और सक्सेज हो गया यह अभियान। यह अभियान सवाल खड़ा करता है कि आखिरकार यह पानी कब तक के लिए है संचयन किया गया इतना बजट खर्च करके? हां एक फायदा जो बहुत बड़ा हुआ है कि सरकारी बजट का खूब बंदरबांट हुआ होगा।

क्योकि मैं इसलिए कह रही हूं कि जिसको सच में जमीनी स्तर पर काम करने का जुनून होता है न, वह कर दिखाता है अपना काम और उसके फायदे भी सच में बहुत होते हैं। जब सच में पानी की जरूरत होती है। मई जून में बुंदेलखंड प्यास के मारे दम तोड़ता होता है, जानवर पानी के लिए दर दर भटकते हैं तब काम करते हैं हमारे किसान नि:स्वार्थ भाव से। एक कहानी मैं बताती हूं एक ऐसे ही नेक दिल इन्सान की।

कबरई ब्लाक के गांव बन्नी में बलबीर सिंह नाम के लगभग 70 वर्षीय किसान हैं। उनके पास निजी ट्यूबवेल है। जिसका बिल वह 18 हज़ार वार्षिक भरते हैं। जैसे से खेतों की कटाई हो जाती है लगभग मार्च अप्रैल से वह अपना ट्यूबवेल चलाना शुरू कर देते हैं बिजली न रहने पर ही बन्द होता है वरना 24 घन्टे ट्यूबवेल चलाकर उस गांव से गुजरने वाली चन्द्रावल नदी भर देते हैं। इस साल उन्होने अब तक में लगभग दस किलोमीटर नदी भर दी। यह काम वह 2009-2011 तक डीजल वाले इंजन और 2012 से अब तक इलेक्ट्रानिक इंजन से करते चले आ रहे हैं। उस क्षेत्र के आसपास के गांवों के लोगों, जानवरों को प्यास से राहत मिलती है। उन्होने इस काम में गांव के उन लोगों से भी ट्यूबवेल चलाने के लिए कहा जिनके पास हैं पर लोगों ने कोई मदद नहीं की। इसकी जानकारी प्रशासन को भी दी कि वह किसी भी तरह की मदद कर सकता है जैसे पाइप ही दे दे या बिजली का बिल माफ कर दे। क्योकि इसकी कीमत खर्च किए गये सरकारी बजट से बहुत कम होगी पर प्रशासन ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। जब मैने वहां के लोगों से बात की तो लोग उनको धर्मात्मा कह रहे थे ये बहुत बड़ी बात है। और प्रशासन की योजना जो करोडों लागत से लागू की जा रही है उससे सौ कदम आगे है और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती भी। प्रशासन को बलबीर सिंह जैसे इन्सान से सीख लेना चाहिए।

इसमें कुछ आकड़े और जानकारी जोडने हैं जैसे क्या इसको बुंदेलखंड पैकेज के तहत बजट मिला, हां तो कितना। किया किस काम के लिए। अब तक में इसमें कितना काम हो पाया है जैसे कितने तालाब कुएं खोदने का लक्ष्य था और कितने कुछ पाए वगैरह। ये मदद मिल सकती है किसी से