हम सभी जानते हैं कि भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में ‘शिक्षक दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन हम महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाने वाली भारत की पहली शिक्षिका सावित्रीबाई फुले को भी याद करते हैं।
सावित्री बाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ पुणे में महिलाओं के लिए पहला स्कूल शुरू किया। ये बात 1848 की है, ऐसा समय जब महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलना भी गलत समझा जाता था। सावित्री बाई ने शिक्षा के अपने इस अभियान में जात-पात और वर्ग भेद को आड़े नहीं आने दिया और सभी महिलाओं को समान शिक्षा देने के लिए समाज के तानों और प्रताड़ना को दरकिनार करते हुए इस चुनौती को स्वीकार किया।
यही नहीं, सावित्री बाई ने विधवाओं के मुंडन जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ़ अभियान चला कर उनके पुनर्विवाह कराने की पहल की। लेकिन यह बेहद दुःख कि बात है कि सावित्री बाई के इतने क्रांतिकारी और मानववादी कार्यों पर देश के सत्ताधीशों ने अनदेखी करते हुए उनके योगदान को भुला कर भूतपूर्व राष्ट्रपति के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस घोषित कर दिया।
सावित्री बाई की नारीवादी सोच थी, इस वजह से उन्होंने शिक्षा के साथ जाति और महिलाओं के साथ होने वाले भेद भाव को संबोधित किया। हिंसा सहने वाली औरतों के लिए सावित्री बाई ने एक केंद्र भी खोला जहां वे उन महिलाओं को शरण देती थीं जिनके साथ बलात्कार हुआ था और जो अपने बच्चों को कहीं जन्म नहीं दे सकती थीं। उनकी याद में पुणे विश्वविद्यालय का नाम ‘सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय’ रखा गया है।
देश की पहली महिला शिक्षक सावित्रीबाई को शिक्षक दिवस पर हमारा नमन।
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