आज कल शादियां भी पैसे का ही खेल बन गई हैं। जेब में चाहे जितना हो, दिखना खर्चा ज़्यादा से ज़्यादा दिखना मानो ज़रूरी ही हो गया है। इस समय शादी ब्याह का सीज़न चल रहा है। दुकानों में चहल पहल बनी रहती है। एक दुकान में भारी भीड़ बनी हुई थी। पता चला कि दुकानदार रुपए का हार बना रहा था।
दुकानदार ने बताया कि दूल्हे के लिए हार बनाया जा रहा है। इसे दूल्हे का बहनोई खुशी से बनवा रहा था। दुकानदार ने बताया कि तीन सौ रुपए से तीन हज़्ाार तक के नोटों का हार बनाया जाता है।
चैकाने वाली बात है कि गरीब से गरीब परिवार में भी इस रिवाज़्ा को आज भी सौ में से अस्सी लोग मानते हैं। ऊपर से जितनी कीमत का हार बनता है उससे दुगना पैसा लड़के वाले दुकानदार को देते हैं। साथ ही हार बनाने में हमें भी सौ रुपये प्रति हार में मिल जाते है। हार बनाने के लिए चमकीला और करेंसी दस-दस की और सौ-सौ की नोटों की ज़रूरत होती है। नोट पहन कर दूल्हा पैसा वाला लगने लगता है।