इतिहास पर काम करने वाली एक राष्ट्रीय संस्था ‘इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च’ की मैगजीन ‘इतिहास’ में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, मोहनजोदड़ो की प्रतीकात्मक नृत्यांगना कोई और नहीं बल्कि देवी पार्वती थीं। इतना ही नहीं सिंधु सभ्यता के लोग करीब 2500 ईसा पूर्व भगवान शिव की पूजा करते थे।
एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार, ‘वैदिक सभ्यता का पुरातत्व’ नाम से प्रकाशित हुए शोधपत्र में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्वी प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने बतौर लेखक दावा किया है कि हजारों साल पहले की सिन्धु सभ्यता एक वैदिक सभ्यता थी और इस सभ्यता के रहने वाले लोग भगवान शिव की पूजा करते थे। देवी पार्वती और मोहनजोदड़ो की सभ्यता को लेकर ऐसे तर्क पहली बार प्रकाशित किए गए हैं।
वर्मा के अनुसार, मशहूर ‘सील-420’ में देखा जा सकता है कि बीच में एक योगी बैठा है और उसके आसपास जानवर मौजूद हैं जोकि शिव पूजा का सबसे बड़ा सबूत है।
सिन्धु सभ्यता की खुदाई में कई मुहरें मिली हैँ जिनमें 420 नंबर की मुहर पर अंकित चिन्ह को शिव की आकृति माना गया है। 1931 में पुरातत्व वैज्ञानिक जॉन मार्शल ने एक चिन्ह को शिव की प्रतिकृति बताई थी। लेकिन बाद में कुछ इतिहासकारों ने इसे किसी महिला की आकृति होने की भी बात कही थी।
इसके आगे लेखक वर्मा ने सिन्धु सभ्यता के लोगों द्वारा शिव की पूजा किए जाने के सबूत बताने वाले कई और तर्क भी पेश किए। उन्होंने आगे लिखा है कि सिंधु सभ्यता की खुदाई में पुजारी राजा या प्रीस्ट किंग मिली प्रतिमा के हवाले से कहा है कि राजा के शाल में जो चिन्ह हैं वो साबित करते हैं राजा किसी हिन्दू देवता का उपासक था। इसके अलावा यहां से बेलपत्र के कुछ अवशेष मिले थे और यह बेलपत्र भगवान शिव को चढ़ाए जाते हैं जो कि शिव पूजा का एक और सबूत देते हैं।
फोटो और लेख साभार: शी द पीपल